Saturday, April 25, 2020

एक आंधी चली थी सभी सरकारी विभागों का निजीकरण कर देने की ........
रेलवे/ऑर्डिनेंस/विद्युत/बैंक/शिक्षा/ एन0टी0पी0सी0/एल0आई0सी0/ जल निगम/ स्वास्थ्य विभाग/ परिवहन/ संचार( बीएसएनएल) और न जाने कितने ही विभागों को निजी हाथों में सौंपने की तैयारी थी।

एक रोज एक हैवान आया।

हां सही पहचाना

 #कोरोना ......

तब संपूर्ण भारतीय सरकार सहित जनता को भी याद आए सरकारी कर्मचारी ।

वही कर्मचारी जो अब तक निठल्ले कहे जाते थे । वही कर्मचारी जो कामचोर कहे जाते थे । वही कर्मचारी जिन्हें भ्रष्टाचारी बताते हुए निजी करण का गुणगान किया जाता था । वही कर्मचारी जिनसे देश की अर्थव्यवस्था खतरे में जा रही थी।

वह कर्मचारी जब उसको परितोष ( सैलरी ) मिलती थी तो लोगों के पेट में दर्द होता था कि यह तो व्यर्थ खर्च किया जा रहा है । सरकार प्रत्येक मौके पर खर्च हो रहे मोटे बजट का हवाला देते हुए इसी सरकारी कर्मचारी की सुविधाओं में कटौती करती रहती थी।

आज वह सब कहां है .....

आज वह न्यूज़ चैनल कहां है जो इन्हीं सरकारी विभागों को बेचने की तैयारी में इन्हें बेचने के लाभ गिना रहे थे ?

वह न्यूज़ चैनलों के एंकर कहां हैं जो इन विभागों को बचाने के आंदोलन को दिखाने में परहेज कर रहे थे ।

आज वह मीडिया हाउस कहां है जो इन आंदोलनों को महज कुछ सिरफिरे आंदोलनकारियों की जिद कहा करते थे ?

 *सवाल तो उठेंगे..... और यह सवाल सभी सरकारी कर्मचारियों के हैं ।*

इस मुश्किल वक्त में अपने परिवार को छोड़कर दिन-रात  देश की सेवा में समर्पित *इन सभी सरकारी कर्मचारियों को हम दक्षिणा स्वरूप क्या देंगे ?*

जब हालात बेहतर होंगे क्या फिर वही निजीकरण का तोहफा।

मुझे उम्मीद है सरकार और जनता का नजरिया बदलेगा जरूर ।

आप सोच रहे होंगे आज अचानक यह सरकारी विभागों के निजी करण का जिक्र क्यों ?

तो आइए आपको यह भी बता देते हैं कि पूरे देश में  सभी सरकारी डॉक्टर, नर्स, बैंक कर्मचारी एवं स्वास्थ्य कर्मी है जो आपकी सेवा में दिन-रात अपना जीवन दाव पर लगाकर कर्तव्य पूर्ण करने में लगे हैं।

यह वही स्वास्थ्य विभाग की टीम है जिनकी कर्तव्यनिष्ठा पर देश और देश के लोग प्रश्नचिन्ह लगाते रहे हैं ।

यह वही सरकारी पुलिस है जो अपना सर्वत्र आपकी सुरक्षा में लगाए हैं उनके लिए दिन है और ना ही रात।

यह वही सरकारी सफाई कर्मी है जिनके कार्य में आप प्रतिदिन कमियां इंगित करते रहे हैं ।

यह वही सरकारी विद्युत विभाग है जिसकी बुराई का गुणगान करने का कोई अवसर आप नहीं चूकते थे।

यह वही बैंक कर्मचारी हैं जिनके बैंकों का विलय किया जा रहा हैं या एक दूसरे बैंकों को आपस में मिलाकर उन बैंक कर्मचारियों की प्रतिष्ठा और उनके कार्य पर प्रशन्नचिन्ह लगाया जा रहा हैं।

बैंक कर्मचारियों के वेतन वृद्धि नवंबर, १७ से लांबित पड़ी है, उन्हें बेकार समझा जा रहा हैं।

आज वही आपके सुकून एवं सुविधा हेतु इस इस विषम परिस्थिति में देश की लाइफ लाइन (विद्युत) को अपनी शरीर की धमनियों में दौड़ रहे रक्त के निरंतर प्रवाह के समान निर्बाध रूप से व्यवस्थित कर रहा है,  जिससे कि किसी भी आकस्मिक सेवा में व्यवधान न हो।

यह वही रेलवे है जिसकी सेवाएं सुविधा का मूल्यांकन एक तुलनात्मक विवरण आप प्रतिदिन अपने व्याख्यान में करते रहे हैं। उसी रेलवे के कुछ डिब्बे में अस्थाई अस्पताल, रेल कोच फैक्ट्री कपूरथला में स्वास्थ्य कर्मियों के लिए PPE ड्रेसेस का निर्माण, सस्ते वेंटिलेटरका  निर्माण आदि हो रहा है।

सरकारी शिक्षकों की काबिलियत पर आप हमेशा प्रश्न चिन्ह लगाते रहे हैं आज वही शिक्षक अपने उसी समाज की रक्षा के लिए देश के बड़े वॉलिंटियर बनकर अपने प्राणों का दांव लगाए हुए हैं।

और भी अनेकों ऐसे सरकारी कर्मचारी (युद्धवीर) हैं जो बिना किसी तरह की परवाह करें सदैव की तरह अपने दायित्व व कर्तव्यों का पूर्ण निष्ठा पूर्वक निर्वहन कर रहे हैं।

ऐसे तमाम सरकारी विभाग है, एयर इंडिया, सरकारी तेल कम्पनिया, सरकारी टीचर, सरकारी स्कूल के परिसर, इत्यादि जो आज काम आ रहे।

बैंक कर्मचारियों से जन धन खाते खुलवाए, नोट बंदी में दिन रात काम करवाया और आज जन धन के खातों में पैसा देकर इन्हीं बैंक वालों से भुगतान करवा रहे हैं।

क्या बैंक कर्मचारियों को वायरस का खतरा नहीं है?

जब तक सरकारी सम्पतियाँ, सरकारी तंत्र, सरकारी विभाग हैं, तभी तक आप सरकार हैं, वरना आप का भी कोई बजूद नहीं, जिस पर अधिकार के साथ हुक्म चला सकें।

स्थिति सामान्य होने के बाद सोचिएगा जरूर।

 **सरकार की हर विपदा में यही सरकारी कर्मचारी अपनी उसी वेतन धनराशि से सर्वप्रथम देश हित एवं अपने समाज के प्रति दायित्व का निर्वहन करते हुए अपने और अपने परिवार का 1-2 दिन का सर्वत्र दान करता रहा है ।*

 यह भी एक तरह से युद्ध ही है जिसमें यह पता नहीं कि कोरोना रूपी दुश्मन किस ओर से प्रहार कर देगा।

सरकार से यह अनुरोध है कि कर्मचारियों के देश एवं समाज के प्रति त्याग, बलिदान एवं सर्वथ समर्पण को ध्यान में रखते हुए अपने आगामी निर्णयों के समय यह न भूलें की विपदा के समय सबसे पहले व्यक्तिगत, सामाजिक एवं आर्थिक रूप से सरकारी कर्मचारी ही हर लड़ाई की शुरुआत करता है एवं अंत तक अगर कोई उस लड़ाई को लड़ता है तो सरकारी कर्मचारी ही होता है।

 *सुन इस धरा के लिए मैं,*
 *बता और क्या क्या करूं मैं,*
 *बस यही आरजू शेष है मुझमे,*
 *कि सौ सौ बार मरूं मैं ।*
 *सौ सौ बार जियूं में ।*

कोरोना#सरकारी कर्मचारी#पुरानी पेंशन#वेतन विसंगति#निजी करण#आंदोलन

आप सभी से अनुरोध है कि आप हर माध्यम व्हाट्सएप, फेसबुक, टि्वटर, इंस्टाग्राम आदि के द्वारा *सरकारी कर्मचारियों* और सरकारी बैंकों द्वारा संकट के इस समय में किये गए कार्यो को देश हित में अधिक से अधिक शेयर करें। जिससे यह मैसेज देश एवं हर प्रदेश के नीति निर्माताओं तक पहुंच सके।

*जब तक सरकारी सम्पतियाँ, सरकारी तंत्र, सरकारी विभाग और सरकारी बैंक हैं, तभी तक आप सरकार हैं, वरना आप का भी कोई बजूद नहीं,  जिस पर आप लोग अधिकार के साथ हुक्म चला सकें। स्थिति सामान्य होने के बाद सोचिएगा जरूर।*👌👌👌👍👍

जय भारत, जय भारतीय।

Wednesday, November 6, 2019

Vaidic Library, [06.11.19 11:11] Vaidic Library, [06.11.19 11:11]
यदि भारत में मुस्लिम बहुसंख्यक हो जाएंगे तो ?

डॉ विवेक आर्य

 NDTV के कार्यक्रम में रविश कुमार ने कहा कि यदि भारत में मुस्लिम बहुसंख्यक हो जाएंगे तो कौनसी बिजली टूट पड़ेगी। क्या अंतर पड़ेगा। सभी सौहार्द से क्यों नहीं रह सकते। हिन्दू मुस्लिम के रूप में ही हम क्यों देखते हैं। क्या केवल इंसान के रूप में हम क्यों नहीं देख सकते। विषय रोहिंग्या मुसलमानों को लेकर था जिन्हें भारत में बसाने के लिए मीडिया, कम्युनिस्ट, नास्तिक, मोमिन खूब जोर लगा रहे हैं। जैसे हमारा देश कोई धर्मशाला हो। ये लोग न व्यवाहरिक रूप से सोचते हैं, न इतिहास से सबक लेते है। क्यूंकि इतिहास से सबक सिखने वाला समझदार कहलाता है।

पाकिस्तान के हालात आज इतने खराब हैं कि गैर मुस्लिम का अस्तित्व ही खतरे में हो गया है. पिछले 70 साल में पाकिस्तान ने ...सिर्फ सुसाइड बॉम्बर बनाने में प्रगति की हैं। अन्य कोई योगदान नहीं।

2005 में समाजशास्त्री डा. पीटर हैमंड ने गहरे शोध के बाद इस्लाम धर्म के मानने वालों की दुनियाभर में प्रवृत्ति पर एक पुस्तक लिखी, जिसका शीर्षक है ‘स्लेवरी, टैररिज्म एंड इस्लाम-द हिस्टोरिकल रूट्स एंड कंटेम्पररी थ्रैट’। इसके साथ ही ‘द हज’के लेखक लियोन यूरिस ने भी इस विषय पर अपनी पुस्तक में विस्तार से प्रकाश डाला है। जो तथ्य निकल करआए हैं, वे न सिर्फ चौंकाने वाले हैं, बल्कि चिंताजनक हैं।

उपरोक्त शोध ग्रंथों के अनुसार जब तक मुसलमानों की जनसंख्या किसी देश-प्रदेश क्षेत्र में लगभग 2 प्रतिशत के आसपास होती है, तब वे एकदम शांतिप्रिय, कानूनपसंद अल्पसंख्यक बन कर रहते हैं और किसी को विशेष शिकायत का मौका नहीं देते। जैसे अमरीका में वे (0.6 प्रतिशत) हैं, आस्ट्रेलिया में 1.5, कनाडा में 1.9, चीन में 1.8, इटली में 1.5 और नॉर्वे में मुसलमानों की संख्या 1.8 प्रतिशत है। इसलिए यहां मुसलमानों से किसी को कोई परेशानी नहीं है।
जब मुसलमानों की जनसंख्या 2 से 5 प्रतिशत के बीच तक पहुंच जाती है, तब वे अन्य धर्मावलंबियों में अपना धर्मप्रचार शुरू कर देते हैं। जैसा कि डेनमार्क, जर्मनी, ब्रिटेन, स्पेन और थाईलैंड में जहां क्रमश: 2, 3.7, 2.7, 4 और 4.6 प्रतिशत मुसलमान हैं।

जब मुसलमानों की जनसंख्या किसी देश या क्षेत्र में 5 प्रतिशत से ऊपर हो जाती है, तब वे अपने अनुपात के हिसाब से अन्य धर्मावलंबियों पर दबाव बढ़ाने लगते हैं और अपना प्रभाव जमाने की कोशिश करने लगते हैं। उदाहरण के लिए वे सरकारों और शॉपिंग मॉल पर ‘हलाल’ का मांस रखने का दबाव बनाने लगते हैं, वे कहते हैं कि ‘हलाल’ का मांस न खाने से उनकी धार्मिक मान्यताएं प्रभावित होती हैं। इस कदम से कई पश्चिमी देशों में खाद्य वस्तुओं के बाजार में मुसलमानों की तगड़ी पैठ बन गई है। उन्होंने कई देशों के सुपरमार्कीट के मालिकों पर दबाव डालकर उनके यहां ‘हलाल’ का मांस रखने को बाध्य किया। दुकानदार भी धंधे को देखते हुए उनका कहा मान लेते हैं।

इस तरह अधिक जनसंख्या होने का फैक्टर यहां से मजबूत होना शुरू हो जाता है, जिन देशों में ऐसा हो चुका है, वे फ्रांस, फिलीपींस, स्वीडन, स्विट्जरलैंड, नीदरलैंड, त्रिनिदाद और टोबैगो हैं। इन देशों में मुसलमानों की संख्या क्रमश: 5 से 8 फीसदी तक है। इस स्थिति पर पहुंचकर मुसलमान उन देशों की सरकारों पर यह दबाव बनाने लगते हैं कि उन्हें उनके क्षेत्रों में शरीयत कानून (इस्लामिक कानून) के मुताबिक चलने दिया जाए। दरअसल, उनका अंतिम लक्ष्य तो यही है कि समूचा विश्व शरीयत कानून के हिसाब से चले।

जब मुस्लिम जनसंख्या किसी देश में 10 प्रतिशत से अधिक हो जाती है, तब वे उस देश, प्रदेश, राज्य, क्षेत्र विशेष में कानून-व्यवस्था के लिए परेशानी पैदा करना शुरू कर देते हैं, शिकायतें करना शुरू कर देते हैं, उनकी ‘आॢथक परिस्थिति’ का रोना लेकर बैठ जाते हैं, छोटी-छोटी बातों को सहिष्णुता से लेने की बजाय दंगे, तोड़-फोड़ आदि पर उतर आते हैं, चाहे वह फ्रांस के दंगे हों डेनमार्क का कार्टून विवाद हो या फिर एम्सटर्डम में कारों का जलाना हो, हरेक विवादको समझबूझ, बातचीत से खत्म करने की बजाय खामख्वाह और गहरा किया जाता है। ऐसा गुयाना (मुसलमान 10 प्रतिशत), इसराईल (16 प्रतिशत), केन्या (11 प्रतिशत), रूस (15 प्रतिशत) में हो चुका है।

जब किसी क्षेत्र में मुसलमानों की संख्या 20 प्रतिशत से ऊपर हो जाती है तब विभिन्न ‘सैनिक शाखाएं’ जेहाद के नारे लगाने लगती हैं, असहिष्णुता और धार्मिक हत्याओं का दौर शुरू हो जाता है, जैसा इथियोपिया (मुसलमान 32.8 प्रतिशत) और भारत (मुसलमान 22 प्रतिशत) में अक्सर देखा जाता है। मुसलमानों की जनसंख्या के 40 प्रतिशत के स्तर से ऊपर पहुंच जाने पर बड़ी संख्या में सामूहिक हत्याएं, आतंकवादी कार्रवाइयां आदि चलने लगती हैं। जैसा बोस्निया (मुसलमान 40 प्रतिशत), चाड (मुसलमान 54.2 प्रतिशत) और लेबनान (मुसलमान 59 प्रतिशत) में देखा गया है। शोधकत्र्ता और लेखक डा. पीटर हैमंड बताते हैं कि जब किसी देश में मुसलमानों की जनसंख्या 60 प्रतिशत से ऊपर हो जाती है, तब अन्य धर्मावलंबियों का ‘जातीय सफाया’ शुरू किया जाता है (उदाहरण भारत का कश्मीर), जबरिया मुस्लिम बनाना, अन्य धर्मों के धार्मिक स्थल तोडऩा, जजिया जैसा कोई अन्य कर वसूलना आदि किया जाता है। जैसे अल्बानिया (मुसलमान 70 प्रतिशत), कतर (मुसलमान 78 प्रतिशत) व सूडान (मुसलमान 75 प्रतिशत) में देखा गया है।

किसी देश में जब मुसलमान बाकी आबादी का 80 प्रतिशत हो जाते हैं, तो उस देश में सत्ता या शासन प्रायोजित जातीय सफाई की जाती है। अन्य धर्मों के अल्पसंख्यकों को उनके मूल नागरिक अधिकारों से भी वंचित कर दिया जाता है। सभी प्रकार के हथकंडे अपनाकर जनसंख्या को 100 प्रतिशत तक ले जाने का लक्ष्य रखा जाता है। जैसे बंगलादेश (मुसलमान 83 प्रतिशत), मिस्र (90 प्रतिशत), गाजापट्टी (98 प्रतिशत), ईरान (98 प्रतिशत), ईराक (97 प्रतिशत), जोर्डन (93 प्रतिशत), मोरक्को (98 प्रतिशत), पाकिस्तान (97 प्रतिशत), सीरिया (90 प्रतिशत) व संयुक्त अरब अमीरात (96 प्रतिशत) में देखा जा रहा है।

यूरोप के अनेक देशों में प्रजनन दर संसार के सभी देशों में सबसे कम हैं। ऐसे में भारी संख्या में मुस्लिम शरणार्थी उन देशों के पर धर्म के आधार जनसंख्या के समीकरण को किस प्रकार से प्रभावित करेंगे इसका अनुमान लगाना सरल हैं। किसी भी मुस्लिम देश ने जिनकी सीमा तक सीरिया से लगती थी एक भी शरणार्थी को अपने यहाँ पर शरण क्यों नहीं दी? क्या इसे इस्लामिक साम्राज्यवाद का फैलाव करने की सोची समझी साजिश नहीं कहा जायेगा? मेरे विचार से इस समस्या का उचित समाधान का एक ही विकल्प हैं। ISIS का सफाया जिससे किसी भी मुस्लमान को शरणार्थी बनने की आवश्यकता ही नहीं होगी। अंत में
एक ही सन्देश के साथ अपनी बात समाप्त करना चाहता हूँ।

इतिहास से सबक सिखने वाला समझदार कहलाता है।

#PolulationJihad

Saturday, October 19, 2019

HIGHWAY HOTEL WITH HINDU NAMES AND CHELIA MUSLIM OWNER, NOT ALLOWING ANY HINDU HOTEL TO RUN IN COMPITITION ... एक खतरनाक बिजनेस मॉडल का पर्दाफाश ...
---------------
आपको राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात के हाइवे पर तमाम ऐसे होटल्स मिलेंगे, जिनका नाम 'आशिर्वाद', 'सहयोग' 'भाग्योदय', 'सर्वोदय', 'अलंकार', 'तुलसी', 'सर्वोत्तम' आदि हिन्दू नाम वाला होगा ..!! लेकिन, इन होटलोंं की चेन, जिसमे हजारो हॉटेल्स है, उन्हें गुजरात के बनासकांठा के रहने वाले 'चेलिया मुस्लिम' " चलाते है ..!!
.
इन होटलों में एक भी हिन्दू को नौकरी नही दी जाती .. चेलिया ग्रुप ऑफ़ हॉटेल्स का हेड ऑफिस अहमदाबाद में है । इनकी पूरी खरीद 'सेंट्रलाइज्ड' होती है । ये डायरेक्ट कोल्डड्रिंक, नमकीन आदि बनाने वाली कम्पनीज के साथ 'बल्क' में डील करते हैं .. फिर उसे हर एक होटल में सप्लाई करते है । जहाँ तक सम्भव हो, ये खरीदारी सिर्फ मुस्लिम से ही करते है । इनके होटल्स में इन्वर्टर बैटरी, आर. ओ. पानी आदि सप्लाई करने वाला भी मुस्लिम ही होता है ..।
*
चूँकि ये अपने होटल्स का नाम भी हिन्दू नाम जैसा ही रखते है और "ओनली व्हेज" लिखते है । और इनके होटल्स भी साफ सुथरे दिखते है .. इसलिए, हिन्दू इनकी होटल्स की तरफ आकर्षित होते है ..। इनका ये मानना है की, हिन्दुओ से पैसा निकालो और उसे मुस्लिमो के बीच लाओ ..!!
*
इनका पूरा बिजनस फ्रेंचाइजी मॉडेल पर आधारित होता है ..। इनकी एक सहकारी कमिटी है, जो अल्पसंख्यक आयोग में, अल्पसंख्यक कमेटी के रूप में रजिस्टर्ड है .. इस कमिटी में, देश विदेश के लाखो चेलिया मुस्लिम्स मेम्बर है और सब अपना अपना योगदान देते है । फिर ये हाइवे पर कोई अच्छा सा जगह देखकर उसे काफी ऊँची कीमत देकर खरीद लेते है । फिर उस हॉटेल का एक खरीदी बिक्री का अकाउंट बनाते है .. और उस हॉटेल को किसी चेलिया मुस्लिम को चलाने के लिए सौंप देते है ..!!
*
पुरे विश्व के 'चेलिया मुस्लिम' सिर्फ मुहर्रम में, अपने गाँव में इकठ्ठे होते है । फिर हर एक हॉटेल के लाभ-हानि का हिसाब करते है । इसलिए, मुहर्रम के दौरान, करीब २० दिनों तक, गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान के हाइवे पर के 90% हॉटेल्स बंद रहते है ..।
*
ये बसों के ड्राइवर को बेहद महंगे गिफ्ट देते है ताकि, ड्राइवर इनके ही हॉटेल पर ही बस रोके ..!!
*
अहमदाबाद के सरखेज में इनका बहुत बड़ा सेंट्रलाइज्ड परचेज डिपो है । खुद का आलू प्याज आदि रखने के लिए कोल्ड स्टोरेज है ..। ये सीजन पर सीधे किसानो से, बेहद सस्ते दाम पर आलू प्याज अदरक, आदि खरीद लेते है ..!!
*
"इकोनॉमिक्स टाइम्स - अहमदाबाद" में छपे एक रिपोर्ट में, इस चेलिया हॉटेल्स की कुल पूंजी इस समय, करीब 3000 करोड़ रूपये पहुंच चुकी है ..!! और इनकी कुल परिसम्पत्तियों की कीमत, इस समय 10,000 करोड़ रूपये होगी ..।
*
हिन्दुओ के जेब से पैसा निकालकर उसे मुसलमानों में बांटने का ये "चेलिया ग्रुप्स ऑफ़ हॉटेल्स" बेहद खतरनाक मॉडल है ..।
*
दुःख इस बात का है की अभी तक, हिन्दू लोग चेलिया मुस्लिमो के इस गंदे खेल को नही समझ सके और इनके होटलों में खाना खाकर इन्हें आर्थिक रूप से और मज़बूत करते है ... और फिर येही पैसा आतंकियों को जाता है ..।

इससे बड़ा खतरनाक ये है की ये लोग किसी हिन्दू के हॉटेल को चलने ही नही देते ..।

 Forward to ALL
 ( मुंबई-नासिक हाईवे पर सभी- होटल्स इन मुस्लिम लोगों के हैं हिन्दू नामों से)

कई हिन्दू ऐसे भी डरपोक हैं जो इस मैसेज को फॉरवर्ड भी नहीं करेंगे यही लोग जिम्मेदार हैं मानसिक गुलामी की परंपरा को जिन्दा रखने के में, ऐसे मूर्खों को इग्नोर करें और इस जानकारी को आगे सभी से साझा करने में अपना सहयोग दें

🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩

Wednesday, October 9, 2019

अफसोस-- चार भाई थे ! हरेक का अपना परिवार , अपनी नौकरी, अपनी जिम्मेदारियां थी। केवल परेशानी सबकी एक थी। वह थी उनकी बूढी मां । कोई अपने पास रखने को तैयार नहीं था उन्हें। 80 साल से अधिक आयु , तरह-तरह की बीमारियां, हालत जमीन से उखड़े हुए वृक्ष की सी थी। किसी भी दिन धराशाई हो जाए । किसी वृद्ध आश्रम में रखने पर भी विचार हुआ पर सर्वसम्मति नहीं बनी। कारण था लोक लाज ! लोग क्या कहेंगे? चार चार बेटों के होते हुए मां को वृद्ध आश्रम में रखा! आखिर एक पर्याय निकल आया! चारों में सबसे छोटे की आर्थिक हालत पतली थी। इस पर उसके बेटे को इंजीनियरिंग में एडमिशन के लिए एकमुश्त रकम की जरूरत आ पड़ी। तीनों ने कहा- तुम मां को अपने यहां रखकर उनकी देखभाल करो! इसके बदले हम सब मिलकर तुम्हें ₹50000 देंगे! छोटू ने अपने परिवार के साथ विचार-विमर्श किया! सम्मति मिलने पर मां को अपने घर ले आया! बूढ़ी मां छोटे बेटे के परिवार के साथ रहने लगी! और 40 में दिन स्वर्ग सिधार गई। छोटे ने अपने परिवार के सदस्यों के बीच कहा - अम्मा को तो जाना ही था, थोड़ा और पहले चले जाती तो पूरे 40000 यों के क्यों बचे रहते। अन्य तीन अपने-अपने खेमे में भुनभुनाने लगे । महज 40 दिन के लिए ₹50000 देने पड़े । ऐसा मालूम होता तो हम ही ना रख लेते अपने पास साथ।
पॉश का अपना अपना अर्थ

एक महिला ने अपनी किचन से सभी पुराने बर्तन निकाले। पुराने डिब्बे, प्लास्टिक के डिब्बे,पुराने डोंगे,कटोरियां,प्याले और थालियां आदि। सब कुछ काफी पुराना हो चुका था।
फिर सभी पुराने बर्तन उसने एक कोने में रख दिए और नए लाए हुए बर्तन करीने से रखकर सजा दिए।

बड़ा ही पॉश लग रहा था अब किचन। फिर वो सोचने लगी कि अब ये जूनापुराना सामान भंगारवाले‌ को दे दिया तो समझो हो गया काम।

इतने में उस महिला की कामवाली आ गई। दुपट्टा खोंसकर वो फर्श साफ करने ही वाली थी कि उसकी नजर कोने में पड़े हुए बर्तनों पर गई और बोली- बाप रे! मैडम आज इतने सारे बर्तन घिसने होंगे क्या? और फिर उसका चेहरा जरा तनावग्रस्त हो गया।

महिला बोली-अरी नहीं!ये सब तो भंगारवाले को देने हैं।

कामवाली ने जब ये सुना तो उसकी आंखें एक आशा से चमक उठीं और फिर बोली- मैडम! अगर आपको ऐतराज ना हो तो ये एक पतीला मैं ले लूं?(साथ ही साथ में उसकी आंखों के सामने घर में पड़ा हुआ उसका तलहटी में पतला हुआ और किनारे से चीर पड़ा हुआ इकलौता पतीला नजर आ रहा था)

महिला बोली- अरी एक क्यों! जितने भी उस कोने में रखे हैं, तू वो सब कुछ ले जा। उतना ही पसारा कम होगा।

कामवाली की आंखें फैल गईं- क्या! सब कुछ?
उसे तो जैसे आज अलीबाबा की गुफा ही मिल गई थी।
फिर उसने अपना काम फटाफट खतम किया और सभी पतीले, डिब्बे और प्याले वगैरह सब कुछ थैले में भर लिए और बड़े ही उत्साह से अपने घर के ओर निकली।
आज तो जैसे उसे चार पांव लग गए थे। घर आते ही उसने पानी भी नहीं पिया और सबसे पहले अपना जूना पुराना और टूटने की कगार पर आया हुआ पतीला और टेढ़ा मेढ़ा चमचा वगैरह सब कुछ एक कोने में जमा किया, और फिर अभी लाया हुआ खजाना (बर्तन) ठीक से जमा दिया।
आज उसके एक कमरेवाला किचन का कोना पॉश दिख रहा था।
तभी उसकी नजर अपने जूने पुराने बर्तनों पर पड़ी और फिर खुद से ही बुदबुदाई- अब ये जूना सामान भंगारवाले को दे दिया कि समझो हो गया काम।

तभी दरवाजे पर एक भिखारी पानी मांगता हुआ हाथों की अंजुल करके खड़ा था- मां! पानी दे।

कामवाली उसके हाथों की अंजुल में पानी देने ही जा रही थी कि उसे अपना पुराना पतीला नजर आ गया और फिर उसने वो पतीला भरकर पानी भिखारी को दे दिया।

जब पानी पीकर और तृप्त होकर वो भिखारी बर्तन वापिस करने लगा तो कामवाली बोली- फेंक दो कहीं भी।

वो भिखारी बोला- तुम्हें नहीं चाहिए? क्या मैं रख लूं मेरे पास?

कामवाली बोली- रख लो, और ये बाकी बचे हुए बर्तन भी ले जाओ और फिर उसने जो-जो भी भंगार समझा वो उस भिखारी के झोले में डाल दिया।

वो भिखारी खुश हो गया।
पानी पीने को पतीला और किसी ने खाने को कुछ दिया तो चावल, सब्जी और दाल आदि लेने के लिए अलग-अलग छोटे-बड़े बर्तन, और कभी मन हुआ कि चम्मच से खाये तो एक टेढ़ा मेढ़ा चम्मच भी था।
आज ऊसकी फटी झोली पॉश दिख रही थी।

पाॅश क्या है? सुख किसमें माने, ये हर किसी की परिस्थिति पर अवलंबित होता है।

हमें हमेशा अपने से छोटे को देखकर खुश होना चाहिए कि हमारी स्थिति इससे तो अच्छी है। जबकि हम हमेशा अपनों से बड़ों को देखकर दुखी ही होते हैं और यही हमारे दुख का सबसे बड़ा कारण होता है।

Saturday, October 5, 2019

गुरु का स्थान

एक राजा था. उसे पढने लिखने का बहुत शौक था. एक बार उसने मंत्री-परिषद् के माध्यम से अपने लिए एक शिक्षक की व्यवस्था की. शिक्षक राजा को पढ़ाने के लिए आने लगा. राजा को शिक्षा ग्रहण करते हुए कई महीने बीत गए, मगर राजा को कोई लाभ नहीं हुआ. गुरु तो रोज खूब मेहनत करता थे परन्तु राजा को उस शिक्षा का कोई फ़ायदा नहीं हो रहा था.

राजा बड़ा परेशान, गुरु की प्रतिभा और योग्यता पर सवाल उठाना भी गलत था क्योंकि वो एक बहुत ही प्रसिद्द और योग्य गुरु थे. आखिर में एक दिन रानी ने राजा को सलाह दी कि राजन आप इस सवाल का जवाब गुरु जी से ही पूछ कर देखिये.

राजा ने एक दिन हिम्मत करके गुरूजी के सामने अपनी जिज्ञासा रखी, ” हे गुरुवर , क्षमा कीजियेगा , मैं कई महीनो से आपसे शिक्षा ग्रहण कर रहा हूँ पर मुझे इसका कोई लाभ नहीं हो रहा है. ऐसा क्यों है ?”

गुरु जी ने बड़े ही शांत स्वर में जवाब दिया, ” राजन इसका कारण बहुत ही सीधा सा है…”

” गुरुवर कृपा कर के आप शीघ्र इस प्रश्न का उत्तर दीजिये “, राजा ने विनती की.

गुरूजी ने कहा, “राजन बात बहुत छोटी है परन्तु आप अपने ‘बड़े’ होने के अहंकार के कारण इसे समझ नहीं पा रहे हैं और परेशान और दुखी हैं. माना कि आप एक बहुत बड़े राजा हैं. आप हर दृष्टि से मुझ से पद और प्रतिष्ठा में बड़े हैं परन्तु यहाँ पर आप का और मेरा रिश्ता एक गुरु और शिष्य का है.

गुरु होने के नाते मेरा स्थान आपसे उच्च होना चाहिए, परन्तु आप स्वंय ऊँचे सिंहासन पर बैठते हैं और मुझे अपने से नीचे के आसन पर बैठाते हैं. बस यही एक कारण है जिससे आपको न तो कोई शिक्षा प्राप्त हो रही है और न ही कोई ज्ञान मिल रहा है. आपके राजा होने के कारण मैं आप से यह बात नहीं कह पा रहा था.

कल से अगर आप मुझे ऊँचे आसन पर बैठाएं और स्वंय नीचे बैठें तो कोई कारण नहीं कि आप शिक्षा प्राप्त न कर पायें.”

राजा की समझ में सारी बात आ गई और उसने तुरंत अपनी गलती को स्वीकारा और गुरुवर से उच्च शिक्षा प्राप्त की .

हम रिश्ते-नाते, पद या धन वैभव किसी में भी कितने ही बड़े क्यों न हों हम अगर अपने गुरु को उसका उचित स्थान नहीं देते तो हमारा भला होना मुश्किल है. और यहाँ स्थान का अर्थ सिर्फ ऊँचा या नीचे बैठने से नहीं है , इसका सही अर्थ है कि हम अपने मन में गुरु को क्या स्थान दे रहे हैं।

क्या हम सही मायने में उनको सम्मान दे रहे हैं या स्वयं के ही श्रेस्ठ होने का घमंड कर रहे हैं ? अगर हम अपने गुरु या शिक्षक के प्रति हेय भावना रखेंगे तो हमें उनकी योग्यताओं एवं अच्छाइयों का कोई लाभ नहीं मिलने वाला और अगर हम उनका आदर करेंगे, उन्हें महत्व देंगे तो उनका आशीर्वाद हमें सहज ही प्राप्त होगा
भगवान की खोज !

🙏🏻🚩🌹   👁❗👁   🌹🚩🙏🏻

तेरहवीं सदी में महाराष्ट्र में एक प्रसिद्द संत हुए संत नामदेव। कहा जाता है कि जब वे बहुत छोटे थे तभी से भगवान की भक्ति में डूबे रहते थे। बाल -काल में ही एक बार उनकी माता ने उन्हें भगवान विठोबा को प्रसाद चढाने के लिए दिया तो वे उसे लेकर मंदिर पहुंचे और उनके हठ के आगे भगवान को स्वयं प्रसाद ग्रहण करने आना पड़ा।  आज हम उसी महान संत से सम्बंधित एक प्रेरक प्रसंग आपसे साझा कर रहे हैं।

एक बार संत नामदेव अपने शिष्यों को ज्ञान -भक्ति का प्रवचन दे रहे थे। तभी श्रोताओं में बैठे किसी शिष्य ने एक प्रश्न किया , ” गुरुवर , हमें बताया जाता है कि ईश्वर हर जगह मौजूद है , पर यदि ऐसा है तो वो हमें कभी दिखाई क्यों नहीं देता , हम कैसे मान लें कि वो सचमुच है , और यदि वो है तो हम उसे कैसे प्राप्त कर सकते हैं ?”

 नामदेव मुस्कुराये और एक शिष्य को एक लोटा पानी और थोड़ा सा नमक लाने का आदेश दिया।

शिष्य तुरंत दोनों चीजें लेकर आ गया।

वहां बैठे शिष्य सोच रहे थे कि भला इन चीजों का प्रश्न से क्या सम्बन्ध , तभी संत नामदेव ने पुनः उस शिष्य से कहा , ” पुत्र , तुम नमक को लोटे में डाल कर मिला दो। “

शिष्य ने ठीक वैसा ही किया।

संत बोले , ” बताइये , क्या इस पानी में किसी को नमक दिखाई दे रहा है ?”

सबने  ‘नहीं ‘ में सिर हिला दिए।

“ठीक है !, अब कोई ज़रा इसे चख कर देखे , क्या चखने पर नमक का स्वाद आ रहा है ?”, संत ने पुछा।

“जी ” , एक शिष्य पानी चखते हुए बोला।

“अच्छा , अब जरा इस पानी को कुछ देर उबालो।”, संत ने निर्देश दिया।

कुछ देर तक पानी उबलता रहा और जब सारा पानी भाप बन कर उड़ गया , तो संत ने पुनः शिष्यों को लोटे में देखने को कहा और पुछा , ” क्या अब आपको इसमें कुछ दिखाई दे रहा है ?”

“जी , हमें नमक के कण दिख रहे हैं।”, एक शिष्य बोला।

संत मुस्कुराये और समझाते हुए बोले ,” जिस प्रकार तुम पानी में नमक का स्वाद तो अनुभव कर पाये पर उसे देख नहीं पाये उसी प्रकार इस जग में तुम्हे ईश्वर हर जगह दिखाई नहीं देता पर तुम उसे अनुभव कर सकते हो। और जिस तरह अग्नि के ताप से पानी भाप बन कर उड़ गया और नमक दिखाई देने लगा उसी प्रकार तुम भक्ति ,ध्यान और सत्कर्म द्वारा अपने विकारों का अंत कर भगवान को प्राप्त कर सकते हो।”

   🌹🙏🏻🚩 जय सियाराम 🚩🙏🏻🌹
      🚩🙏🏻 जय श्री महाकाल 🙏🏻🚩
    🌹🙏🏻 जय श्री पेड़ा हनुमान 🙏🏻🌹
🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻