अफसोस--
चार भाई थे ! हरेक का अपना परिवार , अपनी नौकरी, अपनी जिम्मेदारियां थी। केवल परेशानी सबकी एक थी। वह थी उनकी बूढी मां । कोई अपने पास रखने को तैयार नहीं था उन्हें। 80 साल से अधिक आयु , तरह-तरह की बीमारियां, हालत जमीन से उखड़े हुए वृक्ष की सी थी। किसी भी दिन धराशाई हो जाए । किसी वृद्ध आश्रम में रखने पर भी विचार हुआ पर सर्वसम्मति नहीं बनी। कारण था लोक लाज ! लोग क्या कहेंगे? चार चार बेटों के होते हुए मां को वृद्ध आश्रम में रखा! आखिर एक पर्याय निकल आया!
चारों में सबसे छोटे की आर्थिक हालत पतली थी। इस पर उसके बेटे को इंजीनियरिंग में एडमिशन के लिए एकमुश्त रकम की जरूरत आ पड़ी। तीनों ने कहा- तुम मां को अपने यहां रखकर उनकी देखभाल करो! इसके बदले हम सब मिलकर तुम्हें ₹50000 देंगे! छोटू ने अपने परिवार के साथ विचार-विमर्श किया! सम्मति मिलने पर मां को अपने घर ले आया! बूढ़ी मां छोटे बेटे के परिवार के साथ रहने लगी!
और 40 में दिन स्वर्ग सिधार गई। छोटे ने अपने परिवार के सदस्यों के बीच कहा - अम्मा को तो जाना ही था, थोड़ा और पहले चले जाती तो पूरे 40000 यों के क्यों बचे रहते। अन्य तीन अपने-अपने खेमे में भुनभुनाने लगे । महज 40 दिन के लिए ₹50000 देने पड़े । ऐसा मालूम होता तो हम ही ना रख लेते अपने पास साथ।
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