Thursday, August 27, 2015

गृह लक्ष्मी को नौकरानी न बनाएं

मानव का जीवन भी कभी जानवरों की तरह था. परन्तु समूह बना कर रहने की भावना के होते इंसान के जीवन मे आये धीरे धीरे बदलाव ने उसे अन्य जानवरों से अलग कर दिया. पहले कबीले बने और उसके बाद परिवार. परिवार के सदस्यों को सुखी और खुशहाल रखने के लिए समय समय पर सामाजिक सुधार होते रहे और परिवारिक जीवन के कारण ही मानव का विकास सम्भव हो पाया है.  अपना वंश तो पशु पक्षी भी बढ़ा लेते हैं. परन्तु वे केवल अपने बच्चों की खाने पीने में आत्म निर्भर होने तक ही देखभाल करते हैं जबकि मानव के परिवार में पीढ़ी दर पीढ़ी का रिश्ता बना रहता है. जिससे पिछली पीढ़ियों द्वारा अर्जित ज्ञान अगली पीढ़ी को विरासत मे मिलता है. इसी कारण आज मानव ने धरती के सब जीव जंतुओं में अपनी श्रेष्ठा का लोहा मनवा लिया है.


आदिकाल से स्त्री मानव परिवार के केंद्र की धुरी बनी हुई है. उसके बिना परिवार की कल्पना भी नहीं की जा सकती. आज भी देश में अधिकतर पुरुष रोज़ी रोटी कमाने की और महिलाएं बच्चों के पालन पोषण और घर चलाने की जिम्मेवारी बखूबी निभा रही हैं. शायद इसीलिए पत्नी को गृह लक्ष्मी माना जाता है. ऐसे मे आम आदमी पार्टी के विज्ञापन के विरोध में दिया गया तर्क की इसमें महिला को नौकरानी के रूप में दिखाया गया है सही नहीं लगता.

विज्ञापन को ध्यान से देखने पर पाया की पति घर में टीवी देख रहा है और पत्नी बाजार से सब्जी खरीद कर लाती है और खाना बना कर पति को देती है. भगवान द्वारा दी गयी थोड़ी बहुत अक्ल लगा कर बहुत सोचा परन्तु उस महिला को नौकरानी मानने का मन नहीं हुआ. कारण देश मे आज भी पुरुष घर से बाहर मेहनत कर पैसा कमाते हैं और महिलाये घर की देख भाल की जिम्मेवारी संभालती हैं और आपसी मेलजोल से गृहस्थी की गाडी सुचारू ढंग से चलती रहती है. कोई भी पत्नी घर के काम करने पर अपने को नौकरानी नहीं समझती और ना ही उसका पति कभी ऐसा सोचता है. पत्नी ब़ाज़ार मे मोलभाव करके ही सब्जी या कोई अन्य समान खरीदती है जिससे पैसों की बचत होती है. इस गुण का पुरुषों मे स्वर्था अभाव ही पाया जाता है.

विज्ञापन का विरोध के और भी आधार हो सकते हैं. परन्तु उसे महिला विरोधी बता समाज में  सुचारू ढंग़ से चल रहे परिवारिक जीवन में बेवजह राजनीती कर दखल देना बिलकुल गलत है.   


कथित बाबाओं और तांत्रिकों पर रोक क्योँ नहीं लगती?


देश मे पुरातन काल से साधु महात्मा और स्वामी, लोगों के जीवन को सुखी बनाने और उनकी भलाई के काम करते रहने के कारण आदर के पात्र बने हुए हैं. सच्चे साधू महात्मा को ना तो धन का लोभ होता है और नाही वो प्रचार के पीछे भागता है. उसके व्यक्तित्व और उसके सद्कर्मों द्वारा फैली खुसबू से ही लोग अपने आप उसकी और खींचे चले आते हैं. परंतु आज कुछ कथित बाबा धन के लालच और ऐशो आराम के जीवन की लालसा के होते साधु और महात्मा के नाम को भी बदनाम करने लगें हैं. आजकल फ़र्ज़ी स्वामीओं, बाबाओं और तांत्रिकों का बोलबाला है. शातिर बाबा लोग टीवी में प्रायोजित कार्यक्रमों में देखे जा सकते हैं. कुछ बाबा तो बुद्धिमान समझे जाने वाले नेताओं को भी बेवकूफ बनाते रहते हैं. एक बाबा ने तो जमीन में गढ़े सोने का हसीन सपना दिखा भारत सरकार को भी बेवकूफ बना बड़े बड़े नेताओं को भी उपहास का पात्र बना डाला था. 

बाबाओं के चेले अमीर लोगों में इनकी महिमा का प्रचार कर मुर्गे फंसाते रहते हैं. इनके प्रोग्राम में आये बहुत से लोग तो इनके चेले ही होते हैं जो अपने काल्पनिक दुखों, बीमारियों या व्यवसाय या घरेलु परेशानियों का बाबा की कृपा से ठीक या हल हो जाने का अन्य भक्तों के सामने बखान करते हैं. इन में से कुछ  कथित समाज सेवी अपनी सेवा और शिकार को ढूंढने और अपने जाल में फंसाने के लिए सुन्दर सेविकाओं का भी सहारा लेते हैं. ऐसे बाबा लोगों से आमतौर पर समाज को कोई ख़तरा नहीं होता क्योँकि यह लोग अमीरों की जेबें ही ढीली करतें हैं. परन्तु कुछ बाबा ऐयाशी भी करने लगते हैं और उन्हें देर सवेर बड़े घर (जेल) की रोटियां तोड़नी पड़ती हैं. 

सब बाबा इतने भाग्शाली नहीं होते की टीवी पर प्रचार द्वारा लोगों को लूट सकें. ऐसे बाबा घर या एक कमरे से ही अपना कुटीर उद्योग चला अनपढ़ गरीब भक्तों की शादीऔलादतलाक, मुक़दमे, किसी गंभीर बीमारी और किसी को वश में करने की समस्यायों का सस्ते में ही समाधान कर देते हैं. ऐसे बाबा अधिक से अधिक लोगों को अपनी और आकर्षित करने के लिए कभी मशहूर रहे बंगाल के जादू का दुरूपयोग कर अपने नाम के साथ बंगाली टाइटल अवश्य लगाते हैं. इनके इश्तेहार बस स्टाप और सड़क किनारे बने शौचालयों में देखे जा सकते हैं. अगर बंगाली बाबा कुछ पैसे वाला हुआ तो उसके विज्ञापन केबल टीवी और अखबारों में भी आ जाते हैं. यह लोग कथित काले जादू का सहारा ले गरीब पीड़ित लोगों का खून चूसते हैं. इन ढोंगी तांत्रिकों का इलाज़ निम्बू से आरम्भ हो मुर्गे या बकरे की बलि और कभी कभी तो महिलाओं की इज़्ज़त लूटने और मासूम बच्चों की बलि तक चला जाता है.

ख़ज़ाने के लालच में कितने ही मूढमत लोग राक्षस बन मासूम और निरीह बच्चों तक की बलि दे देते हैं. बेवकूफ लोगों को खज़ाना तो मिलता नहीं परन्तु जेल की हवा अवश्य खाने को मिल जाती है. हाल ही मे ख़बरों के अनुसार एक व्यक्ति ने मानसिक रूप से बीमार अपनी पत्नी को ठीक करने के लिए किसी तांत्रिक की सलाह से चार नाबालिग लड़कियों का बलात्कार कर उनकी हत्या कर दी और अभी उसको ऐसी तीन और हत्याएं करने की सलाह मिली हुई थी. ऐसे घृणित कृत्यों की ख़बरें समय समय पर सुनने को मिलती रहती हैं. यदि आप काला जादू या तांत्रिक के शब्द से इंटरनेट पर खोज करें तो कितने ही ढोंगी बाबाओं के मोबाइल फ़ोन नंबर और उनकी कथित महानता के बारे में जानकारी मिल जायेगी. परन्तु पता नहीं आज तक ऐसे बदनाम बाबाओं और तांत्रिकों के खिलाफ कोई भी कार्रवाई क्यों नहीं की गयी. किसी घृणित घटना होने पर एक तांत्रिक को पकड़ लेने से से कुछ लाभ नहीं होगा. समाज में रह रहे ऐसे अन्य राक्षसी प्रवृति वाले तांत्रिकों को लोगों को बरगलाने से रोकने के लिए भी क़ानून बनना चाहिए. 


आदमी नहीं मरता

 तम्‍बाकू की वकालत करने वालों के हौसले देखकर कई सौदाइयों की हौसला अफजाई हुई है और अब वे भी अपना-अपना धंधा चमकाने के लिए अपनी क्रांतिकारी दलीलों के साथ मैदान में कूँदने की तैयारी कर रहे हैं। सबसे पहले सीना फूलाने वालों में शराब लॉबी के सज्‍जन लोग होंगे। बयान आने ही वाला है कि-शराब पीने से कोई नहीं मरता। शराब पीकर आदमी जानवर नहीं बनता न अपनी बीवी को पीटता है। शराब पीने से कभी किसी का लीवर नहीं सड़ता। शराब से कभी किसी के घर के बरतन-भांडे़ नहीं बिकते। इसलिए इसे घर पहुँच व्‍यवस्‍था के अन्‍तर्गत लाया जाना चाहिए। पाउचों और बोतल बंद पानी की तरह इसे स्‍टॉल-स्‍टॉल पर उपलब्‍ध कराया जाना चाहिए और तो और मुन्‍सीपाल्‍टी के नलों के ज़रिए इसे घर-घर पहुँचाने का व्‍यापक प्रबंध किया जाना चाहिए।

         गाँजा, भाँग, चरस, कोकीन, हेरोइन आदि-आदि पदार्थों के समर्थक भी एकजुट होने की फिराक में हैं। इनका यह मत स्‍ट्रांग होने ही वाला है कि- इन अमृत तुल्‍य पदार्थों के सेवन से कभी कोई नहीं मरता। ड्रग एडिक्‍शन एक भ्रम है। नशाखोरी एक दुष्‍प्रचार है। इससे कभी किसी का कुछ बुरा नहीं होता, बल्कि अर्थव्‍यवस्‍था और इंसान दोनों को पंख लग जाते हैं।
         इनकी देखा-देखी मिलावट के क्षेञ के विद्वान भी अपनी बिरादरी को सपोर्ट करने वाले शक्तिशाली जन-प्रतिनिधि की तलाश में लग गए हैं। उन्‍हें भारी अफसोस है कि उन्‍होंने समय रहते चुनाव में अपना आदमी नहीं खड़ा किया। उनका भी सीना ठोककर कहना है कि-मिलावट से कोई नहीं मरता। पिछले सढ़सठ सालों से हल्‍दी में पीली मिट्टी, मिर्च पाउडर में ईट का चूरा और धनिया में घोड़े की लीद मिलाई जाती आ रही है, आज तक किसी के मरने का कोई समाचार नहीं है। खान-पान की कौनसी सामग्री नकली नहीं बनती, कभी किसी की मौत हुई है? हमारे देश में तो मरीज़ लोग नकली दवाइयों से ही ठीक होते हैं और ह्रष्‍ट-पुष्‍ट बने रहते हैं। लिहाज़ा मिलावट और नकली उत्‍पादों के संरक्षण-संवर्धन के लिए शीध्र कुछ किया जाना चाहिए। अलग से एक मंञालय बना दिया जाए तो मिलावटी और नकली उत्‍पादों में इफरात वृद्धि की जा सकती है।
         फल-सब्जि़यों और तमाम तरह के कृषि उत्‍पादों में पेस्‍टीसाइड्स के इस्‍तेमाल से लोगों का स्‍वास्‍थ खराब होने की अफवाहें आम हैं, मगर इन्‍हें खाकर कभी किसी के मरने की खबर सुनी है? सुनी भी होगी तो वह सरासर झूठ है। बेवजह पेस्‍टीसाइट्स को ज़हर बताकर इन्‍हें बंद करवाने का षड़यंञ रचाया जाता है। यह लॉबी तो इस बात की भी सिफारिश करवाने की फिराक में है कि पेस्‍टीसाइट्स को नमक और चटनियों की तरह थाली में परोसकर खाने की प्रथा को प्रचलन में लाने के लिए कुछ कद्दावर जन-प्रतिनिधियों का समर्थन मिल जाए तो पेस्‍टीसाइट के उत्‍पादन के सारे रिकार्ड टूट पड़े।
         इधर हाल ही में जयपुर में खून के नाम पर थैली में लाल रंग का पानी भरकर बेच देने की अद्भुत घटना सामने आई है। किधर हैं महान लोग, आओ और मुनादी करो कि शरीर में खून की जगह लाल रंग का पानी चढ़ाने से कभी कोई नहीं मरता, क्‍योंकि आदमी का खून वैसे ही पानी हो चुका है। आदमी यूँ ही नहीं मरता।  


Saturday, May 30, 2015

आपके बच्चों का भविष्य आपके हाथ

 अपने बच्चों के लिए धनार्जन करने से भी अधिक महत्त्व पूर्ण है,उनके भविष्य का निर्माण करना,उचित दिशा निर्देश दे कर चरित्र निर्माण करना.ताकि वे अपने जीवन में सफल और संतुष्ट हो सकें,परिवार,समाज और देश के विकास में सहयोग कर सकें.
(बच्चों के ज्ञानवर्द्धन में इन्वेस्टमेंट सबसे अच्छा रिटर्न देता है फ्रेंकलिन )
जब परिवार में कोई बच्चा जन्म लेता है तो उसके लिए उसका घर उसकी सर्वप्रथम पाठशाला होता है .परिवार के सभी सदस्य उसके अध्यापक होते हैं.जब उसे होश आता है वह अपनी माँ से चलना सीखता है, फिर बोलना सीखता है.परिवार के अन्य सदस्यों से उनके व्यव्हार की नक़ल करते हुए जीवन की बहुत सी बातें जाने या अनजाने में सीखता है.परिजनों के प्रत्येक गलत या सही व्यव्हार का उसके मानस पटल पर दीर्घ कालीन प्रभाव पड़ता है.अतः यदि परिवार के सदस्य आदर्शवादी हैं,संस्कारवान हैं,बुद्धिमान हैं, तो बच्चा भी समाज का योग्य नागरिक बनता है इसी प्रकार क्रूर या अमानवीय व्यव्हार करने वाले माता पिता का बच्चा भी असामाजिक कार्यों में शामिल हो सकता है.इसी सन्दर्भ में यह भी उल्लेखनीय है की पढ़े लिखे माता पिता के बच्चे अधिक संख्या में उच्च शिक्षा प्राप्त कर देश के उच्च पदों पर आसीन हो पाते हैं,क्योंकि वे बच्चों को सटीक दिशा निर्देश दे पाने में सक्षम होते हैं,और उन्हें दुनिया की प्रतिद्वंद्विता के लिए तैयार कर पाते हैं.ऐसा नहीं है की कम पढ़े लिखे या अनपढ़ माँ बाप के बच्चे विद्वान नहीं निकल सकते ,बल्कि सच्चाई यह है उनका प्रतिशत बहुत कम होता है.अतः बच्चे के मानसिक विकास में भी परिवार की मुख्य भूमिका होती है.उसके पश्चात जो बच्चे के विकास के लिए उत्तरदायी है वह है, उसका सामाजिक वातावरण,अर्थात वह कैसी कालोनी में निवास करता है, वहाँ कैसे लोग रहते है,उनका रहन सहन कैसा है,उनका खान पान कैसा है,उनका आपसी व्यव्हार कैसा है,उनकी सोच कैसी है आदि आदि.
बच्चे के स्वस्थ्य विकास के लिए माता पिता का योगदान सर्वाधिक महत्वपूर्ण होता है, उनका संतुलित व्यव्हार ही बच्चे को ऊंचाइयों पर ले जा सकता है. तो उनकी लापरवाही बच्चे को दिग्भ्रमित कर सकती है, जिसका प्रभाव उसके भविष्य पर पड़ता है.स्पष्ट एवं उचित दिशा निर्देश के अभाव में बच्चा संशय ग्रस्त हो सकता है.उसके चरित्र निर्माण को सही दिशा नहीं मिल पाती.और उसका झुकाव अपराधों या असामाजिक कार्यों की तरफ भी जा सकता है.अतः प्रत्येक अभिभावक को अपने बच्चे के व्यक्तित्व विकास के लिए सतर्क रहना चाहिए.
अक्सर माता पिता अपने बच्चे को तीन वर्ष का होते ही किसी अच्छे स्कूल में प्रवेश दिला कर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लेते हैं.बच्चे पर ध्यान देने की आवश्यकता नहीं समझते ,उसको पर्याप्त समय नहीं देते.उनका यह समझ लेना की बच्चे को अच्छे स्कूल में डाल देना,और उसके खर्चों को पूरा करना ही उनकी जिम्मेदारी है.यह उनकी बहुत बड़ी भूल है,सही अर्थों में अब उनकी जिम्मेदारी शुरू होती है. जब उन्हें अपने बच्चे को लगातार मार्गदर्शन और सहयोग देना है.उसकी प्रत्येक गतिविधी पर नजर रखनी है.उसके खान-पान और स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं का ध्यान रखना है.ताकि शिक्षा के साथ साथ उसका शारीरिक विकास भी निर्बाध रूप से होता रहे .उसकी राह में आने वाली प्रत्येक परेशानी ,प्रत्येक बाधा को दूर करना है,ताकि बच्चे की पढाई में रूचि बनी रहे और आगे बढ़ता रहे.
वर्तमान समाज में लगभग सभी माता पिता कुछ न कुछ पढ़े लिखे होते हैं.अतः यदि अपने बच्चे को प्राईमरी शिक्षा में अपना सहयोग स्वयं दे सकें ,और उचित मार्ग दर्शन कर सकें तो अधिक उचित होगा.प्राथमिक शिक्षा में मजबूत नींव वाले बच्चे आगे दौड़ लगा पाते हैं.बच्चे में शिक्षा के प्रति रूचि पैदा करने का सर्वाधिक उचित समय यही होता है.बच्चे को शिक्षा देने का उद्देश्य सिर्फ उसे धनार्जन के लिए तैयार करना ही नहीं होता उसे वर्तमान जीवन शैली में सामान्य व्यव्हार करने और चरित्र निर्माण के लिए भी शिक्षा दिलाना आवश्यक है.आज घर पर ही इतने अधिक उपकरण आ चुके है जिन्हें समुचित रूप से चला पाने के लिए भी शिक्षित होना आवश्यक होता है.
प्राईमरी और जूनियर हाई स्कूल की शिक्षा के पश्चात आपका बच्चा अपने करिअर के मुख्य एवं प्रथम पायदान पर पहुँच जाता है.जब वह हाई स्कूल की परीक्षा में बैठने की तय्यारी करता है .यह सीढ़ी उसके भविष्य को तय करने के लिए महत्वपूर्ण होती है.अतः अभिभावकों को अपने बच्चे को अपनी योग्यता सिद्ध करने के लिए पर्याप्त सहयोग देना चाहिए. उसकी आवश्यकतानुसार पुस्तकें एवं ट्यूशन द्वारा यथा संभव मदद करनी चाहिए.बच्चे को भी उसकी प्रथम सीढ़ी का महत्त्व बताया जाना चाहिए,उसे सुनहरे भविष्य बनाने के लिए प्रेरित करना चाहिए.और बताना चाहिए की इसकी सफलता ही उसके आगे के पाठ्यक्रम की दिशा तय करने वाली है.हाई स्कूल तक पहुँचते पहुँचते बच्चा अपनी किशोरावस्था में प्रवेश कर जाता है इस दौरान मानसिक विकास के साथ साथ शारीरिक विकास का भी महत्वपूर्ण दौर होता है .इस अवस्था में वह शारीरिक अंगों की परिपक्वता के साथ योवनावस्था में प्रवेश करने लगता है.यह समय प्रत्येक किशोर के लिए भावना प्रधान होता है,उमंगें हिलोरे लेने लगती हैं,वह इस संसार को शारीरिक आकर्षण का केन्द्र मान कर भ्रमित होने लगता है.समय से पूर्व शारीरिक आकर्षण के कारण अवांछनीय व्यव्हार करना उनके शारीरिक एवं मानसिक विकास में बाधक बन सकता है .अतः अभिभावकों को उसकी भावनाओं को नियंत्रित करने के लिए उसे प्यार,भावनात्मक सहयोग और उचित मार्ग निर्देशन देना आवश्यक है, यह समय उसके चरित्रिक विकास के लिए महत्वपूर्ण है.यदि इस समय माता पिता या अभिभावक उससे उपेक्षित व्यव्हार करते हैं तो वह भटकाव के रास्ते पर जा सकता है.क्योंकि ऐसी स्थिति में वह अपनी भावनाओं को मित्रों के साथ बांटता है और वहाँ से अधकचरे ज्ञान एवं असंगत व्यव्हार के चंगुल में आने की सम्भावना बनी रहती है. उसकी प्रत्येक गतिविधी पर नजर रखनी चाहिए. विशेषकर उन्हें कम्यूटर पर कार्य करते हुए भी निगाह रखनी चाहिए.वहाँ से प्राप्त अश्लील सामग्री उसके व्यक्तित्व को नष्ट कर सकती है. दूसरी बात विशेष तौर पर ध्यान देने योग्य है की वह बीडी,सिगरेट,शराब,ड्रग्स जैसे मादक द्रव्यों के प्रभाव में तो नहीं आ रहा है.प्रत्येक अभिभावक को उस पर नियंत्रण करना आवश्यक है,परन्तु नियंत्रण में कठोरता के स्थान पर प्यार,सलाह,अपनापन का अहसास देकर मार्गदर्शन देना चाहिय.उसे अपने भविष्य निर्माण पर ध्यान देने के लिए प्रेरित करना चाहिए.आपके मार्ग निर्देशन में स्पष्टता होनी चाहिए ,आपके कथन में विरोधाभास नहीं होना चाहिए.यदि आपकी कथनी और आपकी करनी आपके व्यव्हार से मेल खाती है तो बच्चे के बेहतर चरित्र निर्माण की राह आसान हो जाती है.
हाई स्कूल की परीक्षा में सफलता के पश्चात इंटर में उसे अपनी रूचि के अनुसार एवं भावी योजना का अनुसार पाठ्यक्रम और उसके विषय चुनने होते है.अभिभावक उसको अपनी भावी रणनीति तय करने अर्थात विषयों का चयन करने में मदद कर सकते हैं,उसको अपना लक्ष्य निर्धारित करने में सहायता कर सकते हैं. यदि आप स्वयं निर्णय न ले पायें तो किसी विशेषज्ञ की राय लेने नहीं हिचकिचाना चाहिए.एक बात की सावधानी भी आवश्यक है की उस पर अपनी मर्जी न थोपी जाय.उसको अंतिम निर्णय लेने की स्वतंत्रता दी जानी चाहिए.लक्ष्य के चुनाव में किसी भी प्रकार का दबाव बच्चे का भविष्य खराब कर सकता है.प्रत्येक बच्चे की मानसिक एवं शारीरिक क्षमता भिन्न होती है,अतः यह आवश्यक नहीं की प्रत्येक बच्चा इतना मेधावी हो की वह सी.ऐ,डाक्टर ,वकील, इंजिनियर या वैज्ञानिक बन पाए. आजकल परंपरागत लाइन चुनने के अतिरिक्त भी अनेक प्रकार के नए क्षेत्र खुले है जो शायद आपके बच्चे की रूचि को देखते हुए अधिक उपलब्धि देने वाले साबित हो सकते हैं आवश्यकता है,सही पहुँच और मार्गदर्शन की. उदहारण के तौर पर गायन.अभिनय,संगीतकार,कोरियोग्राफर,टी टेस्टर,अंडर वाटर डाईविंग, पैरा मेडिकल कोर्स इत्यादि.बच्चे की क्षमता से अधिक अपेक्षाएं रखना,या उसकी रुचियों के विरुद्ध उसको किसी लाइन में जाने के लिए दबाव बनाना,उसको विद्रोही ,चिडचिडा या भयाक्रांत कर सकता है.अतः अपने बच्चे की सीमाओं को पहचान कर उसके लक्ष्य को निर्धारित करना चाहिए.उसकी योग्यता का अनुसार उचित दिशा में आगे बढते हुए भी एक अच्छा नागरिक बना जा सकता है और एक सम्मान्निये जीवन जिया जा सकता है.उसकी क्षमता को देखते हुए उसको सहयोग देते रहना चाहिए.आपका प्यार और सहयोग उसे विचलित नहीं होने देगा ,उसे हताश नहीं होने देगा,उसे पथभ्रष्ट नहीं होने देगा. और वह अधिक ऊंचाइयों पर न पहुँच कर भी सम्मान और संतुष्टि से जीवन निर्वाह कर सकता है.जो आपके लिए भी सुखदायी होगा.
अपने बच्चे के संरक्षक बनें छत्र छाया नहीं, उसे जीवन संघर्ष करने के लिए प्रेरित करें.छत्र छाया बन कर उसे कमजोर न बनायें.