Thursday, August 27, 2015

गृह लक्ष्मी को नौकरानी न बनाएं

मानव का जीवन भी कभी जानवरों की तरह था. परन्तु समूह बना कर रहने की भावना के होते इंसान के जीवन मे आये धीरे धीरे बदलाव ने उसे अन्य जानवरों से अलग कर दिया. पहले कबीले बने और उसके बाद परिवार. परिवार के सदस्यों को सुखी और खुशहाल रखने के लिए समय समय पर सामाजिक सुधार होते रहे और परिवारिक जीवन के कारण ही मानव का विकास सम्भव हो पाया है.  अपना वंश तो पशु पक्षी भी बढ़ा लेते हैं. परन्तु वे केवल अपने बच्चों की खाने पीने में आत्म निर्भर होने तक ही देखभाल करते हैं जबकि मानव के परिवार में पीढ़ी दर पीढ़ी का रिश्ता बना रहता है. जिससे पिछली पीढ़ियों द्वारा अर्जित ज्ञान अगली पीढ़ी को विरासत मे मिलता है. इसी कारण आज मानव ने धरती के सब जीव जंतुओं में अपनी श्रेष्ठा का लोहा मनवा लिया है.


आदिकाल से स्त्री मानव परिवार के केंद्र की धुरी बनी हुई है. उसके बिना परिवार की कल्पना भी नहीं की जा सकती. आज भी देश में अधिकतर पुरुष रोज़ी रोटी कमाने की और महिलाएं बच्चों के पालन पोषण और घर चलाने की जिम्मेवारी बखूबी निभा रही हैं. शायद इसीलिए पत्नी को गृह लक्ष्मी माना जाता है. ऐसे मे आम आदमी पार्टी के विज्ञापन के विरोध में दिया गया तर्क की इसमें महिला को नौकरानी के रूप में दिखाया गया है सही नहीं लगता.

विज्ञापन को ध्यान से देखने पर पाया की पति घर में टीवी देख रहा है और पत्नी बाजार से सब्जी खरीद कर लाती है और खाना बना कर पति को देती है. भगवान द्वारा दी गयी थोड़ी बहुत अक्ल लगा कर बहुत सोचा परन्तु उस महिला को नौकरानी मानने का मन नहीं हुआ. कारण देश मे आज भी पुरुष घर से बाहर मेहनत कर पैसा कमाते हैं और महिलाये घर की देख भाल की जिम्मेवारी संभालती हैं और आपसी मेलजोल से गृहस्थी की गाडी सुचारू ढंग से चलती रहती है. कोई भी पत्नी घर के काम करने पर अपने को नौकरानी नहीं समझती और ना ही उसका पति कभी ऐसा सोचता है. पत्नी ब़ाज़ार मे मोलभाव करके ही सब्जी या कोई अन्य समान खरीदती है जिससे पैसों की बचत होती है. इस गुण का पुरुषों मे स्वर्था अभाव ही पाया जाता है.

विज्ञापन का विरोध के और भी आधार हो सकते हैं. परन्तु उसे महिला विरोधी बता समाज में  सुचारू ढंग़ से चल रहे परिवारिक जीवन में बेवजह राजनीती कर दखल देना बिलकुल गलत है.   


कथित बाबाओं और तांत्रिकों पर रोक क्योँ नहीं लगती?


देश मे पुरातन काल से साधु महात्मा और स्वामी, लोगों के जीवन को सुखी बनाने और उनकी भलाई के काम करते रहने के कारण आदर के पात्र बने हुए हैं. सच्चे साधू महात्मा को ना तो धन का लोभ होता है और नाही वो प्रचार के पीछे भागता है. उसके व्यक्तित्व और उसके सद्कर्मों द्वारा फैली खुसबू से ही लोग अपने आप उसकी और खींचे चले आते हैं. परंतु आज कुछ कथित बाबा धन के लालच और ऐशो आराम के जीवन की लालसा के होते साधु और महात्मा के नाम को भी बदनाम करने लगें हैं. आजकल फ़र्ज़ी स्वामीओं, बाबाओं और तांत्रिकों का बोलबाला है. शातिर बाबा लोग टीवी में प्रायोजित कार्यक्रमों में देखे जा सकते हैं. कुछ बाबा तो बुद्धिमान समझे जाने वाले नेताओं को भी बेवकूफ बनाते रहते हैं. एक बाबा ने तो जमीन में गढ़े सोने का हसीन सपना दिखा भारत सरकार को भी बेवकूफ बना बड़े बड़े नेताओं को भी उपहास का पात्र बना डाला था. 

बाबाओं के चेले अमीर लोगों में इनकी महिमा का प्रचार कर मुर्गे फंसाते रहते हैं. इनके प्रोग्राम में आये बहुत से लोग तो इनके चेले ही होते हैं जो अपने काल्पनिक दुखों, बीमारियों या व्यवसाय या घरेलु परेशानियों का बाबा की कृपा से ठीक या हल हो जाने का अन्य भक्तों के सामने बखान करते हैं. इन में से कुछ  कथित समाज सेवी अपनी सेवा और शिकार को ढूंढने और अपने जाल में फंसाने के लिए सुन्दर सेविकाओं का भी सहारा लेते हैं. ऐसे बाबा लोगों से आमतौर पर समाज को कोई ख़तरा नहीं होता क्योँकि यह लोग अमीरों की जेबें ही ढीली करतें हैं. परन्तु कुछ बाबा ऐयाशी भी करने लगते हैं और उन्हें देर सवेर बड़े घर (जेल) की रोटियां तोड़नी पड़ती हैं. 

सब बाबा इतने भाग्शाली नहीं होते की टीवी पर प्रचार द्वारा लोगों को लूट सकें. ऐसे बाबा घर या एक कमरे से ही अपना कुटीर उद्योग चला अनपढ़ गरीब भक्तों की शादीऔलादतलाक, मुक़दमे, किसी गंभीर बीमारी और किसी को वश में करने की समस्यायों का सस्ते में ही समाधान कर देते हैं. ऐसे बाबा अधिक से अधिक लोगों को अपनी और आकर्षित करने के लिए कभी मशहूर रहे बंगाल के जादू का दुरूपयोग कर अपने नाम के साथ बंगाली टाइटल अवश्य लगाते हैं. इनके इश्तेहार बस स्टाप और सड़क किनारे बने शौचालयों में देखे जा सकते हैं. अगर बंगाली बाबा कुछ पैसे वाला हुआ तो उसके विज्ञापन केबल टीवी और अखबारों में भी आ जाते हैं. यह लोग कथित काले जादू का सहारा ले गरीब पीड़ित लोगों का खून चूसते हैं. इन ढोंगी तांत्रिकों का इलाज़ निम्बू से आरम्भ हो मुर्गे या बकरे की बलि और कभी कभी तो महिलाओं की इज़्ज़त लूटने और मासूम बच्चों की बलि तक चला जाता है.

ख़ज़ाने के लालच में कितने ही मूढमत लोग राक्षस बन मासूम और निरीह बच्चों तक की बलि दे देते हैं. बेवकूफ लोगों को खज़ाना तो मिलता नहीं परन्तु जेल की हवा अवश्य खाने को मिल जाती है. हाल ही मे ख़बरों के अनुसार एक व्यक्ति ने मानसिक रूप से बीमार अपनी पत्नी को ठीक करने के लिए किसी तांत्रिक की सलाह से चार नाबालिग लड़कियों का बलात्कार कर उनकी हत्या कर दी और अभी उसको ऐसी तीन और हत्याएं करने की सलाह मिली हुई थी. ऐसे घृणित कृत्यों की ख़बरें समय समय पर सुनने को मिलती रहती हैं. यदि आप काला जादू या तांत्रिक के शब्द से इंटरनेट पर खोज करें तो कितने ही ढोंगी बाबाओं के मोबाइल फ़ोन नंबर और उनकी कथित महानता के बारे में जानकारी मिल जायेगी. परन्तु पता नहीं आज तक ऐसे बदनाम बाबाओं और तांत्रिकों के खिलाफ कोई भी कार्रवाई क्यों नहीं की गयी. किसी घृणित घटना होने पर एक तांत्रिक को पकड़ लेने से से कुछ लाभ नहीं होगा. समाज में रह रहे ऐसे अन्य राक्षसी प्रवृति वाले तांत्रिकों को लोगों को बरगलाने से रोकने के लिए भी क़ानून बनना चाहिए. 


आदमी नहीं मरता

 तम्‍बाकू की वकालत करने वालों के हौसले देखकर कई सौदाइयों की हौसला अफजाई हुई है और अब वे भी अपना-अपना धंधा चमकाने के लिए अपनी क्रांतिकारी दलीलों के साथ मैदान में कूँदने की तैयारी कर रहे हैं। सबसे पहले सीना फूलाने वालों में शराब लॉबी के सज्‍जन लोग होंगे। बयान आने ही वाला है कि-शराब पीने से कोई नहीं मरता। शराब पीकर आदमी जानवर नहीं बनता न अपनी बीवी को पीटता है। शराब पीने से कभी किसी का लीवर नहीं सड़ता। शराब से कभी किसी के घर के बरतन-भांडे़ नहीं बिकते। इसलिए इसे घर पहुँच व्‍यवस्‍था के अन्‍तर्गत लाया जाना चाहिए। पाउचों और बोतल बंद पानी की तरह इसे स्‍टॉल-स्‍टॉल पर उपलब्‍ध कराया जाना चाहिए और तो और मुन्‍सीपाल्‍टी के नलों के ज़रिए इसे घर-घर पहुँचाने का व्‍यापक प्रबंध किया जाना चाहिए।

         गाँजा, भाँग, चरस, कोकीन, हेरोइन आदि-आदि पदार्थों के समर्थक भी एकजुट होने की फिराक में हैं। इनका यह मत स्‍ट्रांग होने ही वाला है कि- इन अमृत तुल्‍य पदार्थों के सेवन से कभी कोई नहीं मरता। ड्रग एडिक्‍शन एक भ्रम है। नशाखोरी एक दुष्‍प्रचार है। इससे कभी किसी का कुछ बुरा नहीं होता, बल्कि अर्थव्‍यवस्‍था और इंसान दोनों को पंख लग जाते हैं।
         इनकी देखा-देखी मिलावट के क्षेञ के विद्वान भी अपनी बिरादरी को सपोर्ट करने वाले शक्तिशाली जन-प्रतिनिधि की तलाश में लग गए हैं। उन्‍हें भारी अफसोस है कि उन्‍होंने समय रहते चुनाव में अपना आदमी नहीं खड़ा किया। उनका भी सीना ठोककर कहना है कि-मिलावट से कोई नहीं मरता। पिछले सढ़सठ सालों से हल्‍दी में पीली मिट्टी, मिर्च पाउडर में ईट का चूरा और धनिया में घोड़े की लीद मिलाई जाती आ रही है, आज तक किसी के मरने का कोई समाचार नहीं है। खान-पान की कौनसी सामग्री नकली नहीं बनती, कभी किसी की मौत हुई है? हमारे देश में तो मरीज़ लोग नकली दवाइयों से ही ठीक होते हैं और ह्रष्‍ट-पुष्‍ट बने रहते हैं। लिहाज़ा मिलावट और नकली उत्‍पादों के संरक्षण-संवर्धन के लिए शीध्र कुछ किया जाना चाहिए। अलग से एक मंञालय बना दिया जाए तो मिलावटी और नकली उत्‍पादों में इफरात वृद्धि की जा सकती है।
         फल-सब्जि़यों और तमाम तरह के कृषि उत्‍पादों में पेस्‍टीसाइड्स के इस्‍तेमाल से लोगों का स्‍वास्‍थ खराब होने की अफवाहें आम हैं, मगर इन्‍हें खाकर कभी किसी के मरने की खबर सुनी है? सुनी भी होगी तो वह सरासर झूठ है। बेवजह पेस्‍टीसाइट्स को ज़हर बताकर इन्‍हें बंद करवाने का षड़यंञ रचाया जाता है। यह लॉबी तो इस बात की भी सिफारिश करवाने की फिराक में है कि पेस्‍टीसाइट्स को नमक और चटनियों की तरह थाली में परोसकर खाने की प्रथा को प्रचलन में लाने के लिए कुछ कद्दावर जन-प्रतिनिधियों का समर्थन मिल जाए तो पेस्‍टीसाइट के उत्‍पादन के सारे रिकार्ड टूट पड़े।
         इधर हाल ही में जयपुर में खून के नाम पर थैली में लाल रंग का पानी भरकर बेच देने की अद्भुत घटना सामने आई है। किधर हैं महान लोग, आओ और मुनादी करो कि शरीर में खून की जगह लाल रंग का पानी चढ़ाने से कभी कोई नहीं मरता, क्‍योंकि आदमी का खून वैसे ही पानी हो चुका है। आदमी यूँ ही नहीं मरता।