Thursday, June 20, 2019

"क्षितिज अपने-अपने" -- लघुकथा
लोहे के बड़े फाटक को खोलकर हरीराम अंदर दाखिल हुआ ही था कि बूंदा-बांदी शुरू हो गई। तेज चलने के बाद भी फाटक से बंगले के बरामदे तक पहुंचते-पहुंचते वह थोड़ा भीग गया।
अवकाश होने के कारण साहब घर पर ही थे। हरीराम को भीगा देख उन्होंने बारिश के बारे में पूछा। उसके हाँ कहते ही उनके चेहरे पर प्रसन्नता आ गई। अंदर से मेमसाब भी खुश होकर बारिश होने की सूचना देती हुई आयीं।
बरामदे में बच्चे भी धामा-चौकड़ी करने लगे। 
- हरी राम, आज तो खाने की जगह पालक के पकौड़े और धनिया की चटनी बना लो। मौसम बहुत सुहावना है। हम लोग बाहर बगीचे में छतरी के नीचे जा रहे है। तुम पकौड़े और चटनी वहीं ले आना। - मेमसाब चहकती हुई आदेश देकर बाहर निकल गईं।
साहब ने घर के बाहर बने बगीचे में छतरी बनवाई हुई है। बारिश के दिनों में मौसम का लुत्फ उठाने के लिए वहां लगीं टेबिल-कुर्सियों पर ही पार्टी होती थी।
हरीराम पकौड़े बनाने की तैयारी में लग गया। सारा परिवार छतरी के नीचे आ गया। परिवार हंसी-ठिठोली करते हुए मौसम का मजा लेने लगा। बच्चें भीगे बिना कहां मानने वाले हैं। मना करने के बावजूद वे थोड़े-थोड़े समय बाद कभी हाथ तो कभी पैर छतरी के बाहर बारिश के नीचे कर देते और पानी के छींटे दूसरे पर फैंक कर खिलखिला उठते। सभी बहुत खुश थे।
हरीराम अंदर रसोई से गरम-गरम पकौड़े तलकर देता रहा। अब तक बारिश भी मूसलाधार हो चुकी थी।
- अब तुम जाओ, हरीराम - मेमसाब ने जूंठे बर्तन उठाते हरीराम से कहा।
- और सुनो। जो पकौड़े बच गये हैं, उन्हें अपने बच्चों के लिए ले जाना - मेमसाब ने दयानतदारी दिखाते हुए कहा।
बारिश तेज देख मेमसाब ने उसे एक छाता भी दे दिया था।
दोपहर के दो बज रहे थे। आधे भीगे हुए हरीराम ने अपने कच्चे मकान में प्रवेश किया।
टपक रहे छप्पर से गृहस्थी के सामान को बचाने के लिए पत्नी बच्चों सहित जद्दो-जहद कर रही थी।
हरीराम बहुत खुश था। नीचे जमीन पर बैठकर उसने प्यार से बच्चों को अपने पास बुलाया और साथ में लाये पकौड़ों को बीच में अखबार पर फैला लिया।
बच्चे और पत्नी चटकारे ले-लेकर पकौड़े खाने लगे।
आसपास छप्पर से टपक रहे पानी में बच्चे अपने हाथ गीले कर एक-दूसरे पर छींटे फैंकने लगे।
उन्हें अठखेलियां करते देख हरीराम के चेहरे पर तृप्ति फैल गई।
-कमलेश झा/झांसी

Tuesday, June 18, 2019


बच्चे जब मर रहे थे
वे शपथ ग्रहण कर रहे थे
बच्चे जब मर रहे थे
वे मैच का स्कोर पूछ रहे थे
बच्चे जब मर रहे थे
बच्चे जब मर रहे थे
वे जय श्रीराम के नारे लगा रहे थे .
तब चुनाव ख़त्म हो गया था
वे वन्दे मातरम गा रहे थे बच्चे जब मर रहे थे
बच्चे नही मर रहे थे
वे बच्चे की लाशों पर अब तिरंगा फहरा रहे थे . यह पूरा देश मर रहा था यह एक नया इंडिया था
जो मरते हुए देश मे इस तरह जन्म ले रहा था.
लगातार पिछले एक हफ्ते डेढ़ हफ्ते से रेप और सैकड़ो बच्चों के हुई मौतों से सारा सोशल मीडिया पटा पड़ा है. सरकार सो रही है. लोग आंसू बहा रहे हैं. सच बताएं तो मुझे तनिक भी फर्क नहीं पड़ा. मैं ऐसे पोस्ट उसी स्पीड में हटा देता हूँ जैसे सड़क पर पेशाब करते आदमी से लोग नजरें! ये व्यवस्था, ये सरकार आपने चुनी हैं. इस देश में या किसी देश में सही या गलत जो भी कुछ घटता है उसमें सरकार कम से कम 60 फीसदी जिम्मेदार होती है. वो ऐसी व्यवस्था, कानून, नीति बना नही पाई कि उस पर कुछ अंकुश हो. ये मौते नई नहीं हैं. गोरखपुर में भी ऐसे ही दर्जनो बच्चे मरे थे. सरकार सोती रही थी. आपने फिर उसी सरकार को चुना. उस सरकार पर पहले से ज्यादा भरोसा जताया तो मौतों पर रुदन क्यों? आपने अपनी अपने बच्चों की मौते खुद चुनी हैं. आपने अपने संसद में ऐसे सांसद को भेजा है जो खुलेआम रेप को सपोर्ट करती है. और फिर रेप होने पर रोते हैं? क्यों भाई? आपने तो खुद अपने बच्चियों के लिए रेप चुना है. तो फिर ये विलाप क्यों? पहले की सरकारों में नहीं होते थे? होते थे. बहुत होते थे. पर वो अच्छी ही कहां थी? उनने भला ही क्या किया? साठ साल में साफ पीने का पानी, सड़क, घर तक न दे पाई. शिक्षा, स्वास्थ्य, जीवन स्तर जैसी और चीजों की बात ही दूर। बौद्धिक स्तर जितना हमारा नीचे गया है शायद ही दुनिया में किसी का गया हो. मूत पीते हैं दूध बहाते हैं! सरकार के तीन बड़े मंत्री जब पत्रकारों से कितने विकेट गिरे पूछते हैं तो आपको बुरा लगता है. क्यों भाई? आपने ही तो एक महीने पहले इनसे ऐसे गम्भीर सवाल पूछने के लिए चुना है, फिर आज क्यों भड़क रहे! ये मुस्कुराहट ये सवाल आपका औक़ात बोध है! आप पात्र ही इसी के हैं कि आपके बच्चे कीड़े मकोड़ो की तरह मरते रहें, रेप होते रहे, और आपके मुखिया मुस्कुराते रहें. प्रेस कॉन्फ्रेंस में सोते रहें. आपने अपने बच्चों की मौतों और रेप के बदले इसी खिलखिलाती मुस्कुराहट को ही तो चुना है. एन्जॉय कीजिये इसका! जश्न मनाइए अपनी इस उम्दा सेलेक्शन का. क्यों अपने रुदन भरे पोस्टों से फेसबुक को पाट रहे हैं? ठंड रखिये और पकाइये मत!

Sunday, June 16, 2019

#घोंसला
बात  कुछ दिन  पहले की है हम सब परिवार के साथ धूप सेंक रहे थे।अचानक ,मेरी नज़र भूरी रंग की चिड़िया पर गयी।वो मुझे देख कर सहम गई। मैंने कहा  अरे  डर क्यू रही हो।मै कुछ  नुकसान नहीं करूँगी तुम्हारा। तुम  आराम से  मेरे  आँगन मे रहो।
और जो  बिखरे दाना पडे ।वो सिर्फ तेरे लिये है ।
ठहर  मै पानी का भी इन्तजाम करती हूँ।
तू ठहर मेरे  आँगन  मै अभी आयी वो मुझे दाना
छोड़ कर  देख रही थी मैंने  फिर कहा  डरो मत यहाँ कोई नहीं आयेगा। तू खूब उछल कूद मचा  आँगन मे मेरे ।कोई कुछ नही बोलेगा। तू समझ रही हो ना ।
मै जो कह रही हू। अभी भी वो देख रही है।ऐसा महसूस हो रहा था कि मेरे शब्द उसे पसंद न हो।
मै अन्दर से  कुछ और दाने ले कर आयी।
अब वो अपने पंख फैला रही थी उड़ने के लिये।
मानो वो कह रही हो नहीं  चाहिये  तेरा दाना पानी।
नहीं  कैद होना मुझे। मेरे भी माँ पिता भाई बहन है ।
सब करते  है  मेरा  इन्तजार। पर अफसोस तुम मानव नहीं  समझते। अपनी खुशी के लिये कैद कर लेते हो।
तनिक नहीं  सोचते कोई  करता होगा मेरा इन्तजार।
मै जा रही हू इस जहाँ को छोड़ कर तेरे  आँगन को छोड़ कर। तेरे आँगन मे पडे बिखरे दाने को छोड़ कर।
उस जहाँ  पर ।जहाँ  हमे समझने वाला होगा। माना मेरे पंख  बहुत सुन्दर है।पर ये पंख उड़ने के लिये है।
पिंजरे के लिये नहीं। कभी सोचा है छोटे से पिंजरे में हम कैसे रहते हैं। अपने माता-पिता भाई बहन को छोड़ कर। अरे मै भूल गयी मै किससे  अपने मन की बात कह रही हू। न जाने तू कब जाल फैला कर मुझे कैद कर ले।अपनी खुशी के लिये। मुझे अब जाना होगा ऐसे जहाँ,जहां हमे समझने वाला हो मै अब
मौन हो गयी मेरी पलकें भी नम हो गयी। और देखते  देखते  वो पंख फैला कर मेरे आँगन
से हमेशा हमेशा के लिये चली गयी। 

Saturday, June 15, 2019

Rejection से डरो नही, उसके बाद जो जीत मिलती है ना, वो एहसास जिंदगी भर रहता है। 
सुखी होने के बहुत सारे रास्ते हैं,
मगर
औरों से ज्यादा,
सुखी होने का,
कोई रास्ता नहीं है.....
चार दिन है जि़न्दगी,हंसी खुशी में
                      काट ले
मत किसी का दिल दुखा ,दर्द सबके
                      बाँट ले

कुछ नही हैं साथ जाना,एक नेकी
                     के सिवा,
कर भला होगा भला, गाँठ में ये
                     बांध ले!
कैकेई ने भगवान राम के लिए 14 वर्ष का ही वनवास क्यों मांगा 13 या 15 वर्ष का क्यों नहीं ??

13. 8 बिलियन ईयर वर्ष पुराना हमारा ब्रह्माण्ड हैं क्योंकि बिग बैंग तभी हुआ था। यही माप प्रकाश वर्ष में परिवर्तित होने पर समय की वो सबसे बड़ी इकाई हैं, जिसमें मनुष्य को समय यात्रा और अंतरिक्ष की यात्रा करना विज्ञान के अनुसार चरम रुप से सम्भव हैं।

हिंदु समय गणना में मन्वन्तर सबसे बड़ी समय इकाइयों में से एक हैं। इससे ऊपर ब्रह्मा का एक दिन और फिर ब्रह्मा के 100 वर्ष का चक्र ही होता है।

एक मन्वन्तर में 71 महायुग होतें हैं (चार युगों को मिलाकर एक महायुग होता है) अर्थात 306,720,000 प्रकाश वर्ष ।

सृष्टि कि कुल आयु : 4294080000 वर्ष हैं इसे कुल 14 मन्वन्तरों मे बाँटा गया है. 14 मन्वन्तर सृष्टि की सबसे बड़ी या पूर्ण कालावधि हो गई तो सांकेतिक रूप से समय की सबसे बड़ी इकाई के लिए रामजी को वनवास दिया गया था।

7 वर्ष में मानव के शरीर की प्रत्येक कोशिका या सेल बदल जाता है, शारीरक रूप से पूरे ढंग से एक नया व्यक्ति बन जाता हैं और 14 वर्षों में व्यक्ति के मनोवैज्ञानिक रूप से पूरी तरह बदलने की सम्भावना रहती हैं। इतने लंबे समय में व्यक्ति नई जगहों से अपने को जोड़ लेता है। तो यह एक मनोवैज्ञानिक चाल भी थीं। यह अलग बात है कि रामजी का जननी व जन्मभूमि के प्रति प्रेम इस चाल पर भारी पड़ा।

जब विभीषण को लंका सौंपकर अयोध्या वापिस जाने का निर्णय उन्होंने लिया । लक्ष्मण इससे सहमत नहीं हुए । लक्ष्मणने भगवान श्रीरामसे कहा, ‘‘ हमने अपने पराक्रमसे रावणपर विजय प्राप्त किया है । लंकामें स्वर्गीय सुख है । लंका स्वर्णमयी है । अयोध्यामें क्या रखा है ? हम अयोध्या वापिस क्यों जाएं ? हम लंकामें ही रहेंगे ।''

उस समय भगवान श्रीरामने उत्तर दिया,

अपि स्वर्णमयी लंका न मे लक्ष्मण रोचते ।
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरियसी ।।

अर्थ : हे लक्ष्मण, लंका स्वर्णमयी है, यह मैं जानता हूं; किंतु मेरी मां तथा मेरी जन्मभूमि मेरे लिए स्वर्गसे भी श्रेष्ठ है ।

हम अवश्य वापस जाएंगे ।

तो इतने लंबे काल में भी मनोवैज्ञानिक रूप से रामजी स्थिर रहे।

वैसे नाथ योगी परम्परा में और शिव सूत्र में श्रेष्ठ तपस्या का काल 14 वर्ष का बताया गया है। 14 वर्ष की समय अवधि को तपोकाल कहते हैं। तो यह एक तपस्या पूर्ण करने की अवधि हैं। इसमें रामजी की तपस्या पूर्ण होती हैं, उन्होंने वनवास में उन सभी नियमों का पालन किया जो एक तपस्वी को करने होते हैं और उनकी स्थायी वर्त्ती भी तपस्वी को हो जाती जो कैकयी की इच्छा थी, इससे भरत का राज्य सदा के लिए निष्कण्टक हो जाता। कैकेयी उन्हें राजसी वर्त्ति की तुलना में तपस्वी वर्त्ति का बनाना चाह रही थीं और जानती थी कि वे स्वाभाविक रूप से भी थोड़े तपस्या की ओर झुके व्यक्तित्व थे। रामजी ने अपने स्वाभाविक झुकाव को भी जीता और एक राजा के उत्तरदायित्व को निभाने के लिए अपने वचन के अनुसार वापस आयें।

पर इसी अवधि की वजह से रामजी को तपस्वी राजा की उपाधि भी मिली थी।

सब पर राम तपस्वी राजा।

💐आज का विचार💐






कच्चे धागे की गाँठ लगाकर ही पक्के रिश्तों की प्रार्थना की जाती है !

कभी हँसते हुए छोड़ देती है ये जिंदगी, कभी रोते हुए छोड़ देती है ये जिंदगी, न पूर्ण विराम सुख में, न पूर्ण विराम दुःख में, बस जहाँ देखो वहाँ अल्पविराम छोड़ देती है ये जिंदगी।

बोधकथा -- सन्यासी बनने का अर्थ








सन्यासी बनना एक राजकुमार वृक्ष के नीचे ईंट का तकिया लगा कर सो रहा था। उधर से गुजर रही एक पनिहारिन ने दूसरी से कहा ' साधु बन गया पर राजसी ठाठ अभी नहीं छूटा। ईंट का तकिया लगा कर सो रहा है ।'राजकुमार को बात लग गई वह ईंट हटा कर सो गया।

पनिहारिनें जब लौटी तो उसे देखकर एक बोली ' साधु बन गया तो क्या हुआ अभिमान तो छूटा नहीं हमने इतना सा कहा और ईंट का तकिया हटा दिया।'
सन्यासी ने उठकर उनसे पूछा -तो मुझे क्या करना चाहिए? एक पनिहारिन बोली -'जो करो अपनी सूझबूझ से करो दूसरे के कहने से चलोगे तो साधना कैसे होगी।'?


राजकुमार को सन्यासी बनने का अर्थ समझ आ गया।

आंखें




आँखों ने तुझे देखा था,और दिल ने पसंद किया…
बता,आँखे निकाल दूँ, या  सीने से दिल..