Saturday, June 15, 2019

बोधकथा -- सन्यासी बनने का अर्थ








सन्यासी बनना एक राजकुमार वृक्ष के नीचे ईंट का तकिया लगा कर सो रहा था। उधर से गुजर रही एक पनिहारिन ने दूसरी से कहा ' साधु बन गया पर राजसी ठाठ अभी नहीं छूटा। ईंट का तकिया लगा कर सो रहा है ।'राजकुमार को बात लग गई वह ईंट हटा कर सो गया।

पनिहारिनें जब लौटी तो उसे देखकर एक बोली ' साधु बन गया तो क्या हुआ अभिमान तो छूटा नहीं हमने इतना सा कहा और ईंट का तकिया हटा दिया।'
सन्यासी ने उठकर उनसे पूछा -तो मुझे क्या करना चाहिए? एक पनिहारिन बोली -'जो करो अपनी सूझबूझ से करो दूसरे के कहने से चलोगे तो साधना कैसे होगी।'?


राजकुमार को सन्यासी बनने का अर्थ समझ आ गया।

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