Saturday, June 15, 2019

कैकेई ने भगवान राम के लिए 14 वर्ष का ही वनवास क्यों मांगा 13 या 15 वर्ष का क्यों नहीं ??

13. 8 बिलियन ईयर वर्ष पुराना हमारा ब्रह्माण्ड हैं क्योंकि बिग बैंग तभी हुआ था। यही माप प्रकाश वर्ष में परिवर्तित होने पर समय की वो सबसे बड़ी इकाई हैं, जिसमें मनुष्य को समय यात्रा और अंतरिक्ष की यात्रा करना विज्ञान के अनुसार चरम रुप से सम्भव हैं।

हिंदु समय गणना में मन्वन्तर सबसे बड़ी समय इकाइयों में से एक हैं। इससे ऊपर ब्रह्मा का एक दिन और फिर ब्रह्मा के 100 वर्ष का चक्र ही होता है।

एक मन्वन्तर में 71 महायुग होतें हैं (चार युगों को मिलाकर एक महायुग होता है) अर्थात 306,720,000 प्रकाश वर्ष ।

सृष्टि कि कुल आयु : 4294080000 वर्ष हैं इसे कुल 14 मन्वन्तरों मे बाँटा गया है. 14 मन्वन्तर सृष्टि की सबसे बड़ी या पूर्ण कालावधि हो गई तो सांकेतिक रूप से समय की सबसे बड़ी इकाई के लिए रामजी को वनवास दिया गया था।

7 वर्ष में मानव के शरीर की प्रत्येक कोशिका या सेल बदल जाता है, शारीरक रूप से पूरे ढंग से एक नया व्यक्ति बन जाता हैं और 14 वर्षों में व्यक्ति के मनोवैज्ञानिक रूप से पूरी तरह बदलने की सम्भावना रहती हैं। इतने लंबे समय में व्यक्ति नई जगहों से अपने को जोड़ लेता है। तो यह एक मनोवैज्ञानिक चाल भी थीं। यह अलग बात है कि रामजी का जननी व जन्मभूमि के प्रति प्रेम इस चाल पर भारी पड़ा।

जब विभीषण को लंका सौंपकर अयोध्या वापिस जाने का निर्णय उन्होंने लिया । लक्ष्मण इससे सहमत नहीं हुए । लक्ष्मणने भगवान श्रीरामसे कहा, ‘‘ हमने अपने पराक्रमसे रावणपर विजय प्राप्त किया है । लंकामें स्वर्गीय सुख है । लंका स्वर्णमयी है । अयोध्यामें क्या रखा है ? हम अयोध्या वापिस क्यों जाएं ? हम लंकामें ही रहेंगे ।''

उस समय भगवान श्रीरामने उत्तर दिया,

अपि स्वर्णमयी लंका न मे लक्ष्मण रोचते ।
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरियसी ।।

अर्थ : हे लक्ष्मण, लंका स्वर्णमयी है, यह मैं जानता हूं; किंतु मेरी मां तथा मेरी जन्मभूमि मेरे लिए स्वर्गसे भी श्रेष्ठ है ।

हम अवश्य वापस जाएंगे ।

तो इतने लंबे काल में भी मनोवैज्ञानिक रूप से रामजी स्थिर रहे।

वैसे नाथ योगी परम्परा में और शिव सूत्र में श्रेष्ठ तपस्या का काल 14 वर्ष का बताया गया है। 14 वर्ष की समय अवधि को तपोकाल कहते हैं। तो यह एक तपस्या पूर्ण करने की अवधि हैं। इसमें रामजी की तपस्या पूर्ण होती हैं, उन्होंने वनवास में उन सभी नियमों का पालन किया जो एक तपस्वी को करने होते हैं और उनकी स्थायी वर्त्ती भी तपस्वी को हो जाती जो कैकयी की इच्छा थी, इससे भरत का राज्य सदा के लिए निष्कण्टक हो जाता। कैकेयी उन्हें राजसी वर्त्ति की तुलना में तपस्वी वर्त्ति का बनाना चाह रही थीं और जानती थी कि वे स्वाभाविक रूप से भी थोड़े तपस्या की ओर झुके व्यक्तित्व थे। रामजी ने अपने स्वाभाविक झुकाव को भी जीता और एक राजा के उत्तरदायित्व को निभाने के लिए अपने वचन के अनुसार वापस आयें।

पर इसी अवधि की वजह से रामजी को तपस्वी राजा की उपाधि भी मिली थी।

सब पर राम तपस्वी राजा।

No comments:

Post a Comment