लगातार पिछले एक हफ्ते डेढ़ हफ्ते से रेप और सैकड़ो बच्चों के हुई मौतों से सारा सोशल मीडिया पटा पड़ा है. सरकार सो रही है. लोग आंसू बहा रहे हैं. सच बताएं तो मुझे तनिक भी फर्क नहीं पड़ा. मैं ऐसे पोस्ट उसी स्पीड में हटा देता हूँ जैसे सड़क पर पेशाब करते आदमी से लोग नजरें!
ये व्यवस्था, ये सरकार आपने चुनी हैं. इस देश में या किसी देश में सही या गलत जो भी कुछ घटता है उसमें सरकार कम से कम 60 फीसदी जिम्मेदार होती है. वो ऐसी व्यवस्था, कानून, नीति बना नही पाई कि उस पर कुछ अंकुश हो. ये मौते नई नहीं हैं. गोरखपुर में भी ऐसे ही दर्जनो बच्चे मरे थे. सरकार सोती रही थी. आपने फिर उसी सरकार को चुना. उस सरकार पर पहले से ज्यादा भरोसा जताया तो मौतों पर रुदन क्यों? आपने अपनी अपने बच्चों की मौते खुद चुनी हैं.
आपने अपने संसद में ऐसे सांसद को भेजा है जो खुलेआम रेप को सपोर्ट करती है. और फिर रेप होने पर रोते हैं? क्यों भाई? आपने तो खुद अपने बच्चियों के लिए रेप चुना है. तो फिर ये विलाप क्यों?
पहले की सरकारों में नहीं होते थे? होते थे. बहुत होते थे. पर वो अच्छी ही कहां थी? उनने भला ही क्या किया? साठ साल में साफ पीने का पानी, सड़क, घर तक न दे पाई. शिक्षा, स्वास्थ्य, जीवन स्तर जैसी और चीजों की बात ही दूर। बौद्धिक स्तर जितना हमारा नीचे गया है शायद ही दुनिया में किसी का गया हो. मूत पीते हैं दूध बहाते हैं!
सरकार के तीन बड़े मंत्री जब पत्रकारों से कितने विकेट गिरे पूछते हैं तो आपको बुरा लगता है. क्यों भाई? आपने ही तो एक महीने पहले इनसे ऐसे गम्भीर सवाल पूछने के लिए चुना है, फिर आज क्यों भड़क रहे! ये मुस्कुराहट ये सवाल आपका औक़ात बोध है! आप पात्र ही इसी के हैं कि आपके बच्चे कीड़े मकोड़ो की तरह मरते रहें, रेप होते रहे, और आपके मुखिया मुस्कुराते रहें. प्रेस कॉन्फ्रेंस में सोते रहें. आपने अपने बच्चों की मौतों और रेप के बदले इसी खिलखिलाती मुस्कुराहट को ही तो चुना है. एन्जॉय कीजिये इसका! जश्न मनाइए अपनी इस उम्दा सेलेक्शन का. क्यों अपने रुदन भरे पोस्टों से फेसबुक को पाट रहे हैं? ठंड रखिये और पकाइये मत!
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