#घोंसला
बात कुछ दिन पहले की है हम सब परिवार के साथ धूप सेंक रहे थे।अचानक ,मेरी नज़र भूरी रंग की चिड़िया पर गयी।वो मुझे देख कर सहम गई। मैंने कहा अरे डर क्यू रही हो।मै कुछ नुकसान नहीं करूँगी तुम्हारा। तुम आराम से मेरे आँगन मे रहो।
और जो बिखरे दाना पडे ।वो सिर्फ तेरे लिये है ।
ठहर मै पानी का भी इन्तजाम करती हूँ।
तू ठहर मेरे आँगन मै अभी आयी वो मुझे दाना
छोड़ कर देख रही थी मैंने फिर कहा डरो मत यहाँ कोई नहीं आयेगा। तू खूब उछल कूद मचा आँगन मे मेरे ।कोई कुछ नही बोलेगा। तू समझ रही हो ना ।
मै जो कह रही हू। अभी भी वो देख रही है।ऐसा महसूस हो रहा था कि मेरे शब्द उसे पसंद न हो।
मै अन्दर से कुछ और दाने ले कर आयी।
अब वो अपने पंख फैला रही थी उड़ने के लिये।
मानो वो कह रही हो नहीं चाहिये तेरा दाना पानी।
नहीं कैद होना मुझे। मेरे भी माँ पिता भाई बहन है ।
सब करते है मेरा इन्तजार। पर अफसोस तुम मानव नहीं समझते। अपनी खुशी के लिये कैद कर लेते हो।
तनिक नहीं सोचते कोई करता होगा मेरा इन्तजार।
मै जा रही हू इस जहाँ को छोड़ कर तेरे आँगन को छोड़ कर। तेरे आँगन मे पडे बिखरे दाने को छोड़ कर।
उस जहाँ पर ।जहाँ हमे समझने वाला होगा। माना मेरे पंख बहुत सुन्दर है।पर ये पंख उड़ने के लिये है।
पिंजरे के लिये नहीं। कभी सोचा है छोटे से पिंजरे में हम कैसे रहते हैं। अपने माता-पिता भाई बहन को छोड़ कर। अरे मै भूल गयी मै किससे अपने मन की बात कह रही हू। न जाने तू कब जाल फैला कर मुझे कैद कर ले।अपनी खुशी के लिये। मुझे अब जाना होगा ऐसे जहाँ,जहां हमे समझने वाला हो मै अब
मौन हो गयी मेरी पलकें भी नम हो गयी। और देखते देखते वो पंख फैला कर मेरे आँगन
से हमेशा हमेशा के लिये चली गयी।
बात कुछ दिन पहले की है हम सब परिवार के साथ धूप सेंक रहे थे।अचानक ,मेरी नज़र भूरी रंग की चिड़िया पर गयी।वो मुझे देख कर सहम गई। मैंने कहा अरे डर क्यू रही हो।मै कुछ नुकसान नहीं करूँगी तुम्हारा। तुम आराम से मेरे आँगन मे रहो।
और जो बिखरे दाना पडे ।वो सिर्फ तेरे लिये है ।
ठहर मै पानी का भी इन्तजाम करती हूँ।
तू ठहर मेरे आँगन मै अभी आयी वो मुझे दाना
छोड़ कर देख रही थी मैंने फिर कहा डरो मत यहाँ कोई नहीं आयेगा। तू खूब उछल कूद मचा आँगन मे मेरे ।कोई कुछ नही बोलेगा। तू समझ रही हो ना ।
मै जो कह रही हू। अभी भी वो देख रही है।ऐसा महसूस हो रहा था कि मेरे शब्द उसे पसंद न हो।
मै अन्दर से कुछ और दाने ले कर आयी।
अब वो अपने पंख फैला रही थी उड़ने के लिये।
मानो वो कह रही हो नहीं चाहिये तेरा दाना पानी।
नहीं कैद होना मुझे। मेरे भी माँ पिता भाई बहन है ।
सब करते है मेरा इन्तजार। पर अफसोस तुम मानव नहीं समझते। अपनी खुशी के लिये कैद कर लेते हो।
तनिक नहीं सोचते कोई करता होगा मेरा इन्तजार।
मै जा रही हू इस जहाँ को छोड़ कर तेरे आँगन को छोड़ कर। तेरे आँगन मे पडे बिखरे दाने को छोड़ कर।
उस जहाँ पर ।जहाँ हमे समझने वाला होगा। माना मेरे पंख बहुत सुन्दर है।पर ये पंख उड़ने के लिये है।
पिंजरे के लिये नहीं। कभी सोचा है छोटे से पिंजरे में हम कैसे रहते हैं। अपने माता-पिता भाई बहन को छोड़ कर। अरे मै भूल गयी मै किससे अपने मन की बात कह रही हू। न जाने तू कब जाल फैला कर मुझे कैद कर ले।अपनी खुशी के लिये। मुझे अब जाना होगा ऐसे जहाँ,जहां हमे समझने वाला हो मै अब
मौन हो गयी मेरी पलकें भी नम हो गयी। और देखते देखते वो पंख फैला कर मेरे आँगन
से हमेशा हमेशा के लिये चली गयी।
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