Wednesday, November 6, 2019

Vaidic Library, [06.11.19 11:11] Vaidic Library, [06.11.19 11:11]
यदि भारत में मुस्लिम बहुसंख्यक हो जाएंगे तो ?

डॉ विवेक आर्य

 NDTV के कार्यक्रम में रविश कुमार ने कहा कि यदि भारत में मुस्लिम बहुसंख्यक हो जाएंगे तो कौनसी बिजली टूट पड़ेगी। क्या अंतर पड़ेगा। सभी सौहार्द से क्यों नहीं रह सकते। हिन्दू मुस्लिम के रूप में ही हम क्यों देखते हैं। क्या केवल इंसान के रूप में हम क्यों नहीं देख सकते। विषय रोहिंग्या मुसलमानों को लेकर था जिन्हें भारत में बसाने के लिए मीडिया, कम्युनिस्ट, नास्तिक, मोमिन खूब जोर लगा रहे हैं। जैसे हमारा देश कोई धर्मशाला हो। ये लोग न व्यवाहरिक रूप से सोचते हैं, न इतिहास से सबक लेते है। क्यूंकि इतिहास से सबक सिखने वाला समझदार कहलाता है।

पाकिस्तान के हालात आज इतने खराब हैं कि गैर मुस्लिम का अस्तित्व ही खतरे में हो गया है. पिछले 70 साल में पाकिस्तान ने ...सिर्फ सुसाइड बॉम्बर बनाने में प्रगति की हैं। अन्य कोई योगदान नहीं।

2005 में समाजशास्त्री डा. पीटर हैमंड ने गहरे शोध के बाद इस्लाम धर्म के मानने वालों की दुनियाभर में प्रवृत्ति पर एक पुस्तक लिखी, जिसका शीर्षक है ‘स्लेवरी, टैररिज्म एंड इस्लाम-द हिस्टोरिकल रूट्स एंड कंटेम्पररी थ्रैट’। इसके साथ ही ‘द हज’के लेखक लियोन यूरिस ने भी इस विषय पर अपनी पुस्तक में विस्तार से प्रकाश डाला है। जो तथ्य निकल करआए हैं, वे न सिर्फ चौंकाने वाले हैं, बल्कि चिंताजनक हैं।

उपरोक्त शोध ग्रंथों के अनुसार जब तक मुसलमानों की जनसंख्या किसी देश-प्रदेश क्षेत्र में लगभग 2 प्रतिशत के आसपास होती है, तब वे एकदम शांतिप्रिय, कानूनपसंद अल्पसंख्यक बन कर रहते हैं और किसी को विशेष शिकायत का मौका नहीं देते। जैसे अमरीका में वे (0.6 प्रतिशत) हैं, आस्ट्रेलिया में 1.5, कनाडा में 1.9, चीन में 1.8, इटली में 1.5 और नॉर्वे में मुसलमानों की संख्या 1.8 प्रतिशत है। इसलिए यहां मुसलमानों से किसी को कोई परेशानी नहीं है।
जब मुसलमानों की जनसंख्या 2 से 5 प्रतिशत के बीच तक पहुंच जाती है, तब वे अन्य धर्मावलंबियों में अपना धर्मप्रचार शुरू कर देते हैं। जैसा कि डेनमार्क, जर्मनी, ब्रिटेन, स्पेन और थाईलैंड में जहां क्रमश: 2, 3.7, 2.7, 4 और 4.6 प्रतिशत मुसलमान हैं।

जब मुसलमानों की जनसंख्या किसी देश या क्षेत्र में 5 प्रतिशत से ऊपर हो जाती है, तब वे अपने अनुपात के हिसाब से अन्य धर्मावलंबियों पर दबाव बढ़ाने लगते हैं और अपना प्रभाव जमाने की कोशिश करने लगते हैं। उदाहरण के लिए वे सरकारों और शॉपिंग मॉल पर ‘हलाल’ का मांस रखने का दबाव बनाने लगते हैं, वे कहते हैं कि ‘हलाल’ का मांस न खाने से उनकी धार्मिक मान्यताएं प्रभावित होती हैं। इस कदम से कई पश्चिमी देशों में खाद्य वस्तुओं के बाजार में मुसलमानों की तगड़ी पैठ बन गई है। उन्होंने कई देशों के सुपरमार्कीट के मालिकों पर दबाव डालकर उनके यहां ‘हलाल’ का मांस रखने को बाध्य किया। दुकानदार भी धंधे को देखते हुए उनका कहा मान लेते हैं।

इस तरह अधिक जनसंख्या होने का फैक्टर यहां से मजबूत होना शुरू हो जाता है, जिन देशों में ऐसा हो चुका है, वे फ्रांस, फिलीपींस, स्वीडन, स्विट्जरलैंड, नीदरलैंड, त्रिनिदाद और टोबैगो हैं। इन देशों में मुसलमानों की संख्या क्रमश: 5 से 8 फीसदी तक है। इस स्थिति पर पहुंचकर मुसलमान उन देशों की सरकारों पर यह दबाव बनाने लगते हैं कि उन्हें उनके क्षेत्रों में शरीयत कानून (इस्लामिक कानून) के मुताबिक चलने दिया जाए। दरअसल, उनका अंतिम लक्ष्य तो यही है कि समूचा विश्व शरीयत कानून के हिसाब से चले।

जब मुस्लिम जनसंख्या किसी देश में 10 प्रतिशत से अधिक हो जाती है, तब वे उस देश, प्रदेश, राज्य, क्षेत्र विशेष में कानून-व्यवस्था के लिए परेशानी पैदा करना शुरू कर देते हैं, शिकायतें करना शुरू कर देते हैं, उनकी ‘आॢथक परिस्थिति’ का रोना लेकर बैठ जाते हैं, छोटी-छोटी बातों को सहिष्णुता से लेने की बजाय दंगे, तोड़-फोड़ आदि पर उतर आते हैं, चाहे वह फ्रांस के दंगे हों डेनमार्क का कार्टून विवाद हो या फिर एम्सटर्डम में कारों का जलाना हो, हरेक विवादको समझबूझ, बातचीत से खत्म करने की बजाय खामख्वाह और गहरा किया जाता है। ऐसा गुयाना (मुसलमान 10 प्रतिशत), इसराईल (16 प्रतिशत), केन्या (11 प्रतिशत), रूस (15 प्रतिशत) में हो चुका है।

जब किसी क्षेत्र में मुसलमानों की संख्या 20 प्रतिशत से ऊपर हो जाती है तब विभिन्न ‘सैनिक शाखाएं’ जेहाद के नारे लगाने लगती हैं, असहिष्णुता और धार्मिक हत्याओं का दौर शुरू हो जाता है, जैसा इथियोपिया (मुसलमान 32.8 प्रतिशत) और भारत (मुसलमान 22 प्रतिशत) में अक्सर देखा जाता है। मुसलमानों की जनसंख्या के 40 प्रतिशत के स्तर से ऊपर पहुंच जाने पर बड़ी संख्या में सामूहिक हत्याएं, आतंकवादी कार्रवाइयां आदि चलने लगती हैं। जैसा बोस्निया (मुसलमान 40 प्रतिशत), चाड (मुसलमान 54.2 प्रतिशत) और लेबनान (मुसलमान 59 प्रतिशत) में देखा गया है। शोधकत्र्ता और लेखक डा. पीटर हैमंड बताते हैं कि जब किसी देश में मुसलमानों की जनसंख्या 60 प्रतिशत से ऊपर हो जाती है, तब अन्य धर्मावलंबियों का ‘जातीय सफाया’ शुरू किया जाता है (उदाहरण भारत का कश्मीर), जबरिया मुस्लिम बनाना, अन्य धर्मों के धार्मिक स्थल तोडऩा, जजिया जैसा कोई अन्य कर वसूलना आदि किया जाता है। जैसे अल्बानिया (मुसलमान 70 प्रतिशत), कतर (मुसलमान 78 प्रतिशत) व सूडान (मुसलमान 75 प्रतिशत) में देखा गया है।

किसी देश में जब मुसलमान बाकी आबादी का 80 प्रतिशत हो जाते हैं, तो उस देश में सत्ता या शासन प्रायोजित जातीय सफाई की जाती है। अन्य धर्मों के अल्पसंख्यकों को उनके मूल नागरिक अधिकारों से भी वंचित कर दिया जाता है। सभी प्रकार के हथकंडे अपनाकर जनसंख्या को 100 प्रतिशत तक ले जाने का लक्ष्य रखा जाता है। जैसे बंगलादेश (मुसलमान 83 प्रतिशत), मिस्र (90 प्रतिशत), गाजापट्टी (98 प्रतिशत), ईरान (98 प्रतिशत), ईराक (97 प्रतिशत), जोर्डन (93 प्रतिशत), मोरक्को (98 प्रतिशत), पाकिस्तान (97 प्रतिशत), सीरिया (90 प्रतिशत) व संयुक्त अरब अमीरात (96 प्रतिशत) में देखा जा रहा है।

यूरोप के अनेक देशों में प्रजनन दर संसार के सभी देशों में सबसे कम हैं। ऐसे में भारी संख्या में मुस्लिम शरणार्थी उन देशों के पर धर्म के आधार जनसंख्या के समीकरण को किस प्रकार से प्रभावित करेंगे इसका अनुमान लगाना सरल हैं। किसी भी मुस्लिम देश ने जिनकी सीमा तक सीरिया से लगती थी एक भी शरणार्थी को अपने यहाँ पर शरण क्यों नहीं दी? क्या इसे इस्लामिक साम्राज्यवाद का फैलाव करने की सोची समझी साजिश नहीं कहा जायेगा? मेरे विचार से इस समस्या का उचित समाधान का एक ही विकल्प हैं। ISIS का सफाया जिससे किसी भी मुस्लमान को शरणार्थी बनने की आवश्यकता ही नहीं होगी। अंत में
एक ही सन्देश के साथ अपनी बात समाप्त करना चाहता हूँ।

इतिहास से सबक सिखने वाला समझदार कहलाता है।

#PolulationJihad

Saturday, October 19, 2019

HIGHWAY HOTEL WITH HINDU NAMES AND CHELIA MUSLIM OWNER, NOT ALLOWING ANY HINDU HOTEL TO RUN IN COMPITITION ... एक खतरनाक बिजनेस मॉडल का पर्दाफाश ...
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आपको राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात के हाइवे पर तमाम ऐसे होटल्स मिलेंगे, जिनका नाम 'आशिर्वाद', 'सहयोग' 'भाग्योदय', 'सर्वोदय', 'अलंकार', 'तुलसी', 'सर्वोत्तम' आदि हिन्दू नाम वाला होगा ..!! लेकिन, इन होटलोंं की चेन, जिसमे हजारो हॉटेल्स है, उन्हें गुजरात के बनासकांठा के रहने वाले 'चेलिया मुस्लिम' " चलाते है ..!!
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इन होटलों में एक भी हिन्दू को नौकरी नही दी जाती .. चेलिया ग्रुप ऑफ़ हॉटेल्स का हेड ऑफिस अहमदाबाद में है । इनकी पूरी खरीद 'सेंट्रलाइज्ड' होती है । ये डायरेक्ट कोल्डड्रिंक, नमकीन आदि बनाने वाली कम्पनीज के साथ 'बल्क' में डील करते हैं .. फिर उसे हर एक होटल में सप्लाई करते है । जहाँ तक सम्भव हो, ये खरीदारी सिर्फ मुस्लिम से ही करते है । इनके होटल्स में इन्वर्टर बैटरी, आर. ओ. पानी आदि सप्लाई करने वाला भी मुस्लिम ही होता है ..।
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चूँकि ये अपने होटल्स का नाम भी हिन्दू नाम जैसा ही रखते है और "ओनली व्हेज" लिखते है । और इनके होटल्स भी साफ सुथरे दिखते है .. इसलिए, हिन्दू इनकी होटल्स की तरफ आकर्षित होते है ..। इनका ये मानना है की, हिन्दुओ से पैसा निकालो और उसे मुस्लिमो के बीच लाओ ..!!
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इनका पूरा बिजनस फ्रेंचाइजी मॉडेल पर आधारित होता है ..। इनकी एक सहकारी कमिटी है, जो अल्पसंख्यक आयोग में, अल्पसंख्यक कमेटी के रूप में रजिस्टर्ड है .. इस कमिटी में, देश विदेश के लाखो चेलिया मुस्लिम्स मेम्बर है और सब अपना अपना योगदान देते है । फिर ये हाइवे पर कोई अच्छा सा जगह देखकर उसे काफी ऊँची कीमत देकर खरीद लेते है । फिर उस हॉटेल का एक खरीदी बिक्री का अकाउंट बनाते है .. और उस हॉटेल को किसी चेलिया मुस्लिम को चलाने के लिए सौंप देते है ..!!
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पुरे विश्व के 'चेलिया मुस्लिम' सिर्फ मुहर्रम में, अपने गाँव में इकठ्ठे होते है । फिर हर एक हॉटेल के लाभ-हानि का हिसाब करते है । इसलिए, मुहर्रम के दौरान, करीब २० दिनों तक, गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान के हाइवे पर के 90% हॉटेल्स बंद रहते है ..।
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ये बसों के ड्राइवर को बेहद महंगे गिफ्ट देते है ताकि, ड्राइवर इनके ही हॉटेल पर ही बस रोके ..!!
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अहमदाबाद के सरखेज में इनका बहुत बड़ा सेंट्रलाइज्ड परचेज डिपो है । खुद का आलू प्याज आदि रखने के लिए कोल्ड स्टोरेज है ..। ये सीजन पर सीधे किसानो से, बेहद सस्ते दाम पर आलू प्याज अदरक, आदि खरीद लेते है ..!!
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"इकोनॉमिक्स टाइम्स - अहमदाबाद" में छपे एक रिपोर्ट में, इस चेलिया हॉटेल्स की कुल पूंजी इस समय, करीब 3000 करोड़ रूपये पहुंच चुकी है ..!! और इनकी कुल परिसम्पत्तियों की कीमत, इस समय 10,000 करोड़ रूपये होगी ..।
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हिन्दुओ के जेब से पैसा निकालकर उसे मुसलमानों में बांटने का ये "चेलिया ग्रुप्स ऑफ़ हॉटेल्स" बेहद खतरनाक मॉडल है ..।
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दुःख इस बात का है की अभी तक, हिन्दू लोग चेलिया मुस्लिमो के इस गंदे खेल को नही समझ सके और इनके होटलों में खाना खाकर इन्हें आर्थिक रूप से और मज़बूत करते है ... और फिर येही पैसा आतंकियों को जाता है ..।

इससे बड़ा खतरनाक ये है की ये लोग किसी हिन्दू के हॉटेल को चलने ही नही देते ..।

 Forward to ALL
 ( मुंबई-नासिक हाईवे पर सभी- होटल्स इन मुस्लिम लोगों के हैं हिन्दू नामों से)

कई हिन्दू ऐसे भी डरपोक हैं जो इस मैसेज को फॉरवर्ड भी नहीं करेंगे यही लोग जिम्मेदार हैं मानसिक गुलामी की परंपरा को जिन्दा रखने के में, ऐसे मूर्खों को इग्नोर करें और इस जानकारी को आगे सभी से साझा करने में अपना सहयोग दें

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Wednesday, October 9, 2019

अफसोस-- चार भाई थे ! हरेक का अपना परिवार , अपनी नौकरी, अपनी जिम्मेदारियां थी। केवल परेशानी सबकी एक थी। वह थी उनकी बूढी मां । कोई अपने पास रखने को तैयार नहीं था उन्हें। 80 साल से अधिक आयु , तरह-तरह की बीमारियां, हालत जमीन से उखड़े हुए वृक्ष की सी थी। किसी भी दिन धराशाई हो जाए । किसी वृद्ध आश्रम में रखने पर भी विचार हुआ पर सर्वसम्मति नहीं बनी। कारण था लोक लाज ! लोग क्या कहेंगे? चार चार बेटों के होते हुए मां को वृद्ध आश्रम में रखा! आखिर एक पर्याय निकल आया! चारों में सबसे छोटे की आर्थिक हालत पतली थी। इस पर उसके बेटे को इंजीनियरिंग में एडमिशन के लिए एकमुश्त रकम की जरूरत आ पड़ी। तीनों ने कहा- तुम मां को अपने यहां रखकर उनकी देखभाल करो! इसके बदले हम सब मिलकर तुम्हें ₹50000 देंगे! छोटू ने अपने परिवार के साथ विचार-विमर्श किया! सम्मति मिलने पर मां को अपने घर ले आया! बूढ़ी मां छोटे बेटे के परिवार के साथ रहने लगी! और 40 में दिन स्वर्ग सिधार गई। छोटे ने अपने परिवार के सदस्यों के बीच कहा - अम्मा को तो जाना ही था, थोड़ा और पहले चले जाती तो पूरे 40000 यों के क्यों बचे रहते। अन्य तीन अपने-अपने खेमे में भुनभुनाने लगे । महज 40 दिन के लिए ₹50000 देने पड़े । ऐसा मालूम होता तो हम ही ना रख लेते अपने पास साथ।
पॉश का अपना अपना अर्थ

एक महिला ने अपनी किचन से सभी पुराने बर्तन निकाले। पुराने डिब्बे, प्लास्टिक के डिब्बे,पुराने डोंगे,कटोरियां,प्याले और थालियां आदि। सब कुछ काफी पुराना हो चुका था।
फिर सभी पुराने बर्तन उसने एक कोने में रख दिए और नए लाए हुए बर्तन करीने से रखकर सजा दिए।

बड़ा ही पॉश लग रहा था अब किचन। फिर वो सोचने लगी कि अब ये जूनापुराना सामान भंगारवाले‌ को दे दिया तो समझो हो गया काम।

इतने में उस महिला की कामवाली आ गई। दुपट्टा खोंसकर वो फर्श साफ करने ही वाली थी कि उसकी नजर कोने में पड़े हुए बर्तनों पर गई और बोली- बाप रे! मैडम आज इतने सारे बर्तन घिसने होंगे क्या? और फिर उसका चेहरा जरा तनावग्रस्त हो गया।

महिला बोली-अरी नहीं!ये सब तो भंगारवाले को देने हैं।

कामवाली ने जब ये सुना तो उसकी आंखें एक आशा से चमक उठीं और फिर बोली- मैडम! अगर आपको ऐतराज ना हो तो ये एक पतीला मैं ले लूं?(साथ ही साथ में उसकी आंखों के सामने घर में पड़ा हुआ उसका तलहटी में पतला हुआ और किनारे से चीर पड़ा हुआ इकलौता पतीला नजर आ रहा था)

महिला बोली- अरी एक क्यों! जितने भी उस कोने में रखे हैं, तू वो सब कुछ ले जा। उतना ही पसारा कम होगा।

कामवाली की आंखें फैल गईं- क्या! सब कुछ?
उसे तो जैसे आज अलीबाबा की गुफा ही मिल गई थी।
फिर उसने अपना काम फटाफट खतम किया और सभी पतीले, डिब्बे और प्याले वगैरह सब कुछ थैले में भर लिए और बड़े ही उत्साह से अपने घर के ओर निकली।
आज तो जैसे उसे चार पांव लग गए थे। घर आते ही उसने पानी भी नहीं पिया और सबसे पहले अपना जूना पुराना और टूटने की कगार पर आया हुआ पतीला और टेढ़ा मेढ़ा चमचा वगैरह सब कुछ एक कोने में जमा किया, और फिर अभी लाया हुआ खजाना (बर्तन) ठीक से जमा दिया।
आज उसके एक कमरेवाला किचन का कोना पॉश दिख रहा था।
तभी उसकी नजर अपने जूने पुराने बर्तनों पर पड़ी और फिर खुद से ही बुदबुदाई- अब ये जूना सामान भंगारवाले को दे दिया कि समझो हो गया काम।

तभी दरवाजे पर एक भिखारी पानी मांगता हुआ हाथों की अंजुल करके खड़ा था- मां! पानी दे।

कामवाली उसके हाथों की अंजुल में पानी देने ही जा रही थी कि उसे अपना पुराना पतीला नजर आ गया और फिर उसने वो पतीला भरकर पानी भिखारी को दे दिया।

जब पानी पीकर और तृप्त होकर वो भिखारी बर्तन वापिस करने लगा तो कामवाली बोली- फेंक दो कहीं भी।

वो भिखारी बोला- तुम्हें नहीं चाहिए? क्या मैं रख लूं मेरे पास?

कामवाली बोली- रख लो, और ये बाकी बचे हुए बर्तन भी ले जाओ और फिर उसने जो-जो भी भंगार समझा वो उस भिखारी के झोले में डाल दिया।

वो भिखारी खुश हो गया।
पानी पीने को पतीला और किसी ने खाने को कुछ दिया तो चावल, सब्जी और दाल आदि लेने के लिए अलग-अलग छोटे-बड़े बर्तन, और कभी मन हुआ कि चम्मच से खाये तो एक टेढ़ा मेढ़ा चम्मच भी था।
आज ऊसकी फटी झोली पॉश दिख रही थी।

पाॅश क्या है? सुख किसमें माने, ये हर किसी की परिस्थिति पर अवलंबित होता है।

हमें हमेशा अपने से छोटे को देखकर खुश होना चाहिए कि हमारी स्थिति इससे तो अच्छी है। जबकि हम हमेशा अपनों से बड़ों को देखकर दुखी ही होते हैं और यही हमारे दुख का सबसे बड़ा कारण होता है।

Saturday, October 5, 2019

गुरु का स्थान

एक राजा था. उसे पढने लिखने का बहुत शौक था. एक बार उसने मंत्री-परिषद् के माध्यम से अपने लिए एक शिक्षक की व्यवस्था की. शिक्षक राजा को पढ़ाने के लिए आने लगा. राजा को शिक्षा ग्रहण करते हुए कई महीने बीत गए, मगर राजा को कोई लाभ नहीं हुआ. गुरु तो रोज खूब मेहनत करता थे परन्तु राजा को उस शिक्षा का कोई फ़ायदा नहीं हो रहा था.

राजा बड़ा परेशान, गुरु की प्रतिभा और योग्यता पर सवाल उठाना भी गलत था क्योंकि वो एक बहुत ही प्रसिद्द और योग्य गुरु थे. आखिर में एक दिन रानी ने राजा को सलाह दी कि राजन आप इस सवाल का जवाब गुरु जी से ही पूछ कर देखिये.

राजा ने एक दिन हिम्मत करके गुरूजी के सामने अपनी जिज्ञासा रखी, ” हे गुरुवर , क्षमा कीजियेगा , मैं कई महीनो से आपसे शिक्षा ग्रहण कर रहा हूँ पर मुझे इसका कोई लाभ नहीं हो रहा है. ऐसा क्यों है ?”

गुरु जी ने बड़े ही शांत स्वर में जवाब दिया, ” राजन इसका कारण बहुत ही सीधा सा है…”

” गुरुवर कृपा कर के आप शीघ्र इस प्रश्न का उत्तर दीजिये “, राजा ने विनती की.

गुरूजी ने कहा, “राजन बात बहुत छोटी है परन्तु आप अपने ‘बड़े’ होने के अहंकार के कारण इसे समझ नहीं पा रहे हैं और परेशान और दुखी हैं. माना कि आप एक बहुत बड़े राजा हैं. आप हर दृष्टि से मुझ से पद और प्रतिष्ठा में बड़े हैं परन्तु यहाँ पर आप का और मेरा रिश्ता एक गुरु और शिष्य का है.

गुरु होने के नाते मेरा स्थान आपसे उच्च होना चाहिए, परन्तु आप स्वंय ऊँचे सिंहासन पर बैठते हैं और मुझे अपने से नीचे के आसन पर बैठाते हैं. बस यही एक कारण है जिससे आपको न तो कोई शिक्षा प्राप्त हो रही है और न ही कोई ज्ञान मिल रहा है. आपके राजा होने के कारण मैं आप से यह बात नहीं कह पा रहा था.

कल से अगर आप मुझे ऊँचे आसन पर बैठाएं और स्वंय नीचे बैठें तो कोई कारण नहीं कि आप शिक्षा प्राप्त न कर पायें.”

राजा की समझ में सारी बात आ गई और उसने तुरंत अपनी गलती को स्वीकारा और गुरुवर से उच्च शिक्षा प्राप्त की .

हम रिश्ते-नाते, पद या धन वैभव किसी में भी कितने ही बड़े क्यों न हों हम अगर अपने गुरु को उसका उचित स्थान नहीं देते तो हमारा भला होना मुश्किल है. और यहाँ स्थान का अर्थ सिर्फ ऊँचा या नीचे बैठने से नहीं है , इसका सही अर्थ है कि हम अपने मन में गुरु को क्या स्थान दे रहे हैं।

क्या हम सही मायने में उनको सम्मान दे रहे हैं या स्वयं के ही श्रेस्ठ होने का घमंड कर रहे हैं ? अगर हम अपने गुरु या शिक्षक के प्रति हेय भावना रखेंगे तो हमें उनकी योग्यताओं एवं अच्छाइयों का कोई लाभ नहीं मिलने वाला और अगर हम उनका आदर करेंगे, उन्हें महत्व देंगे तो उनका आशीर्वाद हमें सहज ही प्राप्त होगा
भगवान की खोज !

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तेरहवीं सदी में महाराष्ट्र में एक प्रसिद्द संत हुए संत नामदेव। कहा जाता है कि जब वे बहुत छोटे थे तभी से भगवान की भक्ति में डूबे रहते थे। बाल -काल में ही एक बार उनकी माता ने उन्हें भगवान विठोबा को प्रसाद चढाने के लिए दिया तो वे उसे लेकर मंदिर पहुंचे और उनके हठ के आगे भगवान को स्वयं प्रसाद ग्रहण करने आना पड़ा।  आज हम उसी महान संत से सम्बंधित एक प्रेरक प्रसंग आपसे साझा कर रहे हैं।

एक बार संत नामदेव अपने शिष्यों को ज्ञान -भक्ति का प्रवचन दे रहे थे। तभी श्रोताओं में बैठे किसी शिष्य ने एक प्रश्न किया , ” गुरुवर , हमें बताया जाता है कि ईश्वर हर जगह मौजूद है , पर यदि ऐसा है तो वो हमें कभी दिखाई क्यों नहीं देता , हम कैसे मान लें कि वो सचमुच है , और यदि वो है तो हम उसे कैसे प्राप्त कर सकते हैं ?”

 नामदेव मुस्कुराये और एक शिष्य को एक लोटा पानी और थोड़ा सा नमक लाने का आदेश दिया।

शिष्य तुरंत दोनों चीजें लेकर आ गया।

वहां बैठे शिष्य सोच रहे थे कि भला इन चीजों का प्रश्न से क्या सम्बन्ध , तभी संत नामदेव ने पुनः उस शिष्य से कहा , ” पुत्र , तुम नमक को लोटे में डाल कर मिला दो। “

शिष्य ने ठीक वैसा ही किया।

संत बोले , ” बताइये , क्या इस पानी में किसी को नमक दिखाई दे रहा है ?”

सबने  ‘नहीं ‘ में सिर हिला दिए।

“ठीक है !, अब कोई ज़रा इसे चख कर देखे , क्या चखने पर नमक का स्वाद आ रहा है ?”, संत ने पुछा।

“जी ” , एक शिष्य पानी चखते हुए बोला।

“अच्छा , अब जरा इस पानी को कुछ देर उबालो।”, संत ने निर्देश दिया।

कुछ देर तक पानी उबलता रहा और जब सारा पानी भाप बन कर उड़ गया , तो संत ने पुनः शिष्यों को लोटे में देखने को कहा और पुछा , ” क्या अब आपको इसमें कुछ दिखाई दे रहा है ?”

“जी , हमें नमक के कण दिख रहे हैं।”, एक शिष्य बोला।

संत मुस्कुराये और समझाते हुए बोले ,” जिस प्रकार तुम पानी में नमक का स्वाद तो अनुभव कर पाये पर उसे देख नहीं पाये उसी प्रकार इस जग में तुम्हे ईश्वर हर जगह दिखाई नहीं देता पर तुम उसे अनुभव कर सकते हो। और जिस तरह अग्नि के ताप से पानी भाप बन कर उड़ गया और नमक दिखाई देने लगा उसी प्रकार तुम भक्ति ,ध्यान और सत्कर्म द्वारा अपने विकारों का अंत कर भगवान को प्राप्त कर सकते हो।”

   🌹🙏🏻🚩 जय सियाराम 🚩🙏🏻🌹
      🚩🙏🏻 जय श्री महाकाल 🙏🏻🚩
    🌹🙏🏻 जय श्री पेड़ा हनुमान 🙏🏻🌹
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बचपन के उस स्कूली दौर में निब पेन का चलन जोरो पे था। बॉलपेन से लिखने वालों को तो हेय दृष्टि से देखा जाता था। मासाब भी निब पेन वालों को आगे की पंक्तियों में स्थान देकर सम्मानित करते थे।
चूंकि उस समय भैया प्रदत्त दो निब पेन मेरे पास थे तो इस विशेष योग्यता के कारण मुझे मॉनिटर का पद भी प्राप्त हुआ था।
*उस समय कैमल और चेलपार्क की ब्लू या ब्लैक या फिर ब्लू-ब्लैक स्याही प्रायः हर घर बड़े आले में रखी मिल ही जाती थी और लाल रंग की स्याही घर मे शान का प्रतीक थी*
और
जिन्होंने भी पेन में स्याही डाली होगी वो ड्रॉपर के महत्व से भली भांति परिचित होंगे,
*तब महीने में दो-तीन बार निब पेन को गरम पानी में डालकर उसकी सर्विसिंग भी की जाती थी,*
तब लगता था की निब को उल्टा कर के लिखने से हैंडराइटिंग बड़ी सुन्दर बनती है, और हर क्लास में मेरे जैसा एक ऐसा एक्सपर्ट जरूर होता था जो सभी (खास-तौर पर लड़कियों) की पेन ठीक से नहीं चलने पे ब्लेड लेकर निब के बीच वाले हिस्से में बारिकी से कचरा निकालने का दावा करके अपनी धाक जमाने का प्रयास करता था, ये अलग बात है कि मेरी लालबुझक्कड़ी धाक कभी नही जम पायी।
दुकान में *नयी निब खरीदने से पहले उसे पेन में लगाकर सेट करना फिर कागज़ में स्याही की कुछ बूंदे छिड़क कर निब उन गिरी हुयी स्याही की बूंदो पे लगाकर निब की स्याही सोखने की क्षमता नापना ही किसी बड़े साइंटिस्ट वाली फीलिंग दे जाता था,*
निब पेन कभी ना चले तो हम में से सभी ने हाथ से झटका के देखने के चक्कर में आजू बाजू वालो पे स्याही जरूर छिड़कायी होगी,
मेरे कुछ मित्र ऐसे भी होते थे जो पढ़ते लिखते तो कुछ नहीं थे लेकिन घर जाने से पहले उंगलियो में स्याही जरूर लगा लेते थे, ताकि *घरवालो को लगे कि बच्चा स्कूल में बहुत मेहनत करता है,*
उसी दौर में अपने बाजू की सीट पे एक न्यू एडमिशन सुन्दर सी लड़की आई,
लेकिन जैसे ही उसने "हीरो" की फाउंटेन पेन अपने बैग से निकाली, अपना बच्चा सा दिल छन से आवाज़ करके टूट गया
*कहाँ वो साठ रूपये वाले "हीरो" के पेन से लिखने वाला राजकुमारी और कहाँ अपन दो रूपये वाली कैमल की पेन से लिखने वाले देसी लड़के,*
दिल तो पूरा टूट ही जाता
किन्तु तभी हमारे गुरु जी ने मेरी मनःस्थिति भाँप कर सिखाया- कि _महँगी पेन खरीदना अच्छी आर्थिक स्थिति का सूचक है लेकिन पेन से सुन्दर हैंडराइटिंग बनाना टैलेंट,_
और *टैलेंट कभी भी पैसो से नहीं ख़रीदा जा सकता, तब जाकर मुझे कुछ राहत मिली।*
ऐसी अनगिनत यादों के साथ बालपन की पुनः यादें मुबारक।

Monday, September 30, 2019

अकबर के नौरत्नों से इतिहास भर दिया पर महाराजा विक्रमादित्य के नवरत्नों की कोई चर्चा पाठ्यपुस्तकों में नहीं है !


राजा विक्रमादित्य के नवरत्नों को जानने का प्रयास करते हैं ...✍️ राजा विक्रमादित्य के दरबार के नवरत्नों के विषय में बहुत कुछ पढ़ा-देखा जाता है। लेकिन बहुत ही कम लोग ये जानते हैं कि आखिर ये नवरत्न थे कौन-कौन। राजा विक्रमादित्य के दरबार में मौजूद नवरत्नों में उच्च कोटि के कवि, विद्वान, गायक और गणित के प्रकांड पंडित शामिल थे, जिनकी योग्यता का डंका देश-विदेश में बजता था। चलिए जानते हैं कौन थे। ये हैं नवरत्न – 1–धन्वन्तरि- नवरत्नों में इनका स्थान गिनाया गया है। इनके रचित नौ ग्रंथ पाये जाते हैं। वे सभी आयुर्वेद चिकित्सा शास्त्र से सम्बन्धित हैं। चिकित्सा में ये बड़े सिद्धहस्त थे। आज भी किसी वैद्य की प्रशंसा करनी हो तो उसकी ‘धन्वन्तरि’ से उपमा दी जाती है। 2–क्षपणक- जैसा कि इनके नाम से प्रतीत होता है, ये बौद्ध संन्यासी थे। इससे एक बात यह भी सिद्ध होती है कि प्राचीन काल में मन्त्रित्व आजीविका का साधन नहीं था अपितु जनकल्याण की भावना से मन्त्रिपरिषद का गठन किया जाता था। यही कारण है कि संन्यासी भी मन्त्रिमण्डल के सदस्य होते थे। इन्होंने कुछ ग्रंथ लिखे जिनमें ‘भिक्षाटन’ और ‘नानार्थकोश’ ही उपलब्ध बताये जाते हैं। 3–अमरसिंह- ये प्रकाण्ड विद्वान थे। बोध-गया के वर्तमान बुद्ध-मन्दिर से प्राप्य एक शिलालेख के आधार पर इनको उस मन्दिर का निर्माता कहा जाता है। उनके अनेक ग्रन्थों में एक मात्र ‘अमरकोश’ ग्रन्थ ऐसा है कि उसके आधार पर उनका यश अखण्ड है। संस्कृतज्ञों में एक उक्ति चरितार्थ है जिसका अर्थ है ‘अष्टाध्यायी’ पण्डितों की माता है और ‘अमरकोश’ पण्डितों का पिता। अर्थात् यदि कोई इन दोनों ग्रंथों को पढ़ ले तो वह महान् पण्डित बन जाता है। 4–शंकु – इनका पूरा नाम ‘शङ्कुक’ है। इनका एक ही काव्य-ग्रन्थ ‘भुवनाभ्युदयम्’ बहुत प्रसिद्ध रहा है। किन्तु आज वह भी पुरातत्व का विषय बना हुआ है। इनको संस्कृत का प्रकाण्ड विद्वान् माना गया है। 5–वेतालभट्ट – विक्रम और वेताल की कहानी जगतप्रसिद्ध है। ‘वेताल पंचविंशति’ के रचयिता यही थे, किन्तु कहीं भी इनका नाम देखने सुनने को अब नहीं मिलता। ‘वेताल-पच्चीसी’ से ही यह सिद्ध होता है कि सम्राट विक्रम के वर्चस्व से वेतालभट्ट कितने प्रभावित थे। यही इनकी एक मात्र रचना उपलब्ध है। 6–घटखर्पर – जो संस्कृत जानते हैं वे समझ सकते हैं कि ‘घटखर्पर’ किसी व्यक्ति का नाम नहीं हो सकता। इनका भी वास्तविक नाम यह नहीं है। मान्यता है कि इनकी प्रतिज्ञा थी कि जो कवि अनुप्रास और यमक में इनको पराजित कर देगा उनके यहां वे फूटे घ
ड़े से पानी भरेंगे। बस तब से ही इनका नाम ‘घटखर्पर’ प्रसिद्ध हो गया और वास्तविक नाम लुप्त हो गया। इनकी रचना का नाम भी ‘घटखर्पर काव्यम्’ ही है। यमक और अनुप्रास का वह अनुपमेय ग्रन्थ है। इनका एक अन्य ग्रन्थ ‘नीतिसार’ के नाम से भी प्राप्त होता है। 7–कालिदास – ऐसा माना जाता है कि कालिदास सम्राट विक्रमादित्य के प्राणप्रिय कवि थे। उन्होंने भी अपने ग्रन्थों में विक्रम के व्यक्तित्व का उज्जवल स्वरूप निरूपित किया है। कालिदास की कथा विचित्र है। कहा जाता है कि उनको देवी ‘काली’ की कृपा से विद्या प्राप्त हुई थी। इसीलिए इनका नाम ‘कालिदास’ पड़ गया। संस्कृत व्याकरण की दृष्टि से यह कालीदास होना चाहिए था किन्तु अपवाद रूप में कालिदास की प्रतिभा को देखकर इसमें उसी प्रकार परिवर्तन नहीं किया गया जिस प्रकार कि ‘विश्वामित्र’ को उसी रूप में रखा गया। जो हो, कालिदास की विद्वता और काव्य प्रतिभा के विषय में अब दो मत नहीं है। वे न केवल अपने समय के अप्रितम साहित्यकार थे अपितु आज तक भी कोई उन जैसा अप्रितम साहित्यकार उत्पन्न नहीं हुआ है। उनके चार काव्य और तीन नाटक प्रसिद्ध हैं। शकुन्तला उनकी अन्यतम कृति मानी जाती है। 8–वराहमिहिर – भारतीय ज्योतिष-शास्त्र इनसे गौरवास्पद हो गया है। इन्होंने अनेक ग्रन्थों का प्रणयन किया है। इनमें-‘बृहज्जातक‘, सुर्यसिद्धांत, ‘बृहस्पति संहिता’, ‘पंचसिद्धान्ती’ मुख्य हैं। गणक तरंगिणी’, ‘लघु-जातक’, ‘समास संहिता’, ‘विवाह पटल’, ‘योग यात्रा’, आदि-आदि का भी इनके नाम से उल्लेख पाया जाता है। 9–वररुचि- कालिदास की भांति ही वररुचि भी अन्यतम काव्यकर्ताओं में गिने जाते हैं। ‘सदुक्तिकर्णामृत’, ‘सुभाषितावलि’ तथा ‘शार्ङ्धर संहिता’, इनकी रचनाओं में गिनी जाती हैं। इनके नाम पर मतभेद है। क्योंकि इस नाम के तीन व्यक्ति हुए हैं उनमें से- 1.पाणिनीय व्याकरण के वार्तिककार-वररुचि कात्यायन, 2.‘प्राकृत प्रकाश के प्रणेता-वररुचि 3.सूक्ति ग्रन्थों में प्राप्त कवि-वररुचि
शिकायतो की पाई पाई..
जोड़ कर रखी थी मैंने..

दोस्त ने गले लगा कर..
सारा हिसाब बिगाड़ दिया।
Very Good Story for all teachers and parents. Please do read
गड़बड़ कहाँ हुई ..

एक बहुत ब्रिलियंट लड़का था। सारी जिंदगी फर्स्ट आया। साइंस में हमेशा 100% स्कोर किया। अब ऐसे लड़के आम तौर पर इंजिनियर बनने चले जाते हैं, सो उसका भी सिलेक्शन IIT चेन्नई में हो गया। वहां से B Tech किया और वहां से आगे पढने अमेरिका चला गया और यूनिवर्सिटी ऑफ़ केलिफ़ोर्निया से MBA किया।
अब इतना पढने के बाद तो वहां अच्छी नौकरी मिल ही जाती है। उसने वहां भी हमेशा टॉप ही किया। वहीं नौकरी करने लगा।  5बेडरूम का घर  उसके पास। शादी यहाँ चेन्नई की ही एक बेहद खूबसूरत लड़की से हुई।
एक आदमी और क्या मांग सकता है अपने जीवन में ? पढ़ लिख के इंजिनियर बन गए, अमेरिका में सेटल हो गए, मोटी तनख्वाह की नौकरी, बीवी बच्चे, सुख ही सुख।
लेकिन दुर्भाग्य वश आज से चार साल पहले उसने वहीं अमेरिका में, सपरिवार आत्महत्या कर ली.अपनी पत्नी और बच्चों को गोली मार कर खुद को भी गोली मार ली। What went wrong? आखिर ऐसा क्या हुआ, गड़बड़ कहाँ हुई।
ये कदम उठाने से पहले उसने बाकायदा अपनी wife से discuss किया,फिर एक लम्बा suicide नोट लिखा और उसमें बाकायदा अपने इस कदम को justify किया और यहाँ तक लिखा कि यही सबसे श्रेष्ठ रास्ता था इन परिस्थितयों में।उनके इस केस को और उस suicide नोट को California Institute of Clinical Psychology ने ‘What went wrong'? जानने के लिए study किया।
पहले कारण क्या था, suicide नोट से और मित्रों से पता किया। अमेरिका की आर्थिक मंदी में उसकी नौकरी चली गयी। बहुत दिन खाली बैठे रहे। नौकरियां ढूंढते रहे। फिर अपनी तनख्वाह कम करते गए और फिर भी जब नौकरी न मिली, मकान की किश्त जब टूट गयी, तो सड़क पर आने की नौबत आ गयी। कुछ दिन किसी पेट्रोल पम्प पर तेल भरा बताते हैं। साल भर ये सब बर्दाश्त किया और फिर पति पत्नी ने अंत में ख़ुदकुशी कर ली...
इस case study को ऐसे conclude किया है experts ने :This man was programmed for success but he was not trained, how to handle failure.यह व्यक्ति सफलता के लिए तो तैयार था,पर इसे जीवन में ये नहीं सिखाया गया कि असफलता का सामना कैसे किया जाए।
अब उसके जीवन पर शुरू से नज़र डालते हैं। पढने में बहुत तेज़ था, हमेशा फर्स्ट ही आया। ऐसे बहुत से Parents को मैं जानता हूँ जो यही चाहते हैं कि बस उनका बच्चा हमेशा फर्स्ट ही आये, कोई गलती न हो उस से। गलती करना तो यूँ मानो कोई बहुत बड़ा पाप कर दिया और इसके लिए वो सब कुछ करते हैं, हमेशा फर्स्ट आने के लिए। फिर ऐसे बच्चे चूंकि पढ़ाकू कुछ ज्यादा होते हैं सो खेल कूद, घूमना फिरना, लड़ाई झगडा, मार पीट, ऐसे पंगों का मौका कम मिलता है बेचारों को, 12th कर के निकले तो इंजीनियरिंग कॉलेज का बोझ लद गया बेचारे पर, वहां से निकले तो MBA और अभी पढ़ ही रहे थे की मोटी तनख्वाह की नौकरी। अब मोटी तनख्वाह तो बड़ी जिम्मेवारी, यानी बड़े बड़े targets
कमबख्त ये दुनिया, बड़ी कठोर है और ये ज़िदगी,अलग से इम्तहान लेती है। आपकी कॉलेज की डिग्री और मार्कशीट से कोई मतलब नहीं उसे। वहां कितने नंबर लिए कोई फर्क नहीं पड़ता। ये ज़िदगी अपना अलग question paper सेट करती है। और सवाल, सब out ऑफ़ syllabus होते हैं, टेढ़े मेढ़े, ऊट पटाँग और रोज़ इम्तहान लेती है। कोई डेट sheet नहीं।
एक अंग्रेजी उपन्यास में एक किस्सा पढ़ा था। एक मेमना अपनी माँ से दूर निकल गया। आगे जा कर पहले तो भैंसों के झुण्ड से घिर गया। उनके पैरों तले कुचले जाने से बचा किसी तरह। अभी थोडा ही आगे बढ़ा था कि एक सियार उसकी तरफ झपटा। किसी तरह झाड़ियों में घुस के जान बचाई तो सामने से भेड़िये आते दिखे। बहुत देर वहीं झाड़ियों में दुबका रहा, किसी तरह माँ के पास वापस पहुंचा तो बोला, माँ, वहां तो बहुत खतरनाक जंगल है
इस खतरनाक जंगल में जिंदा बचे रहने की ट्रेनिंग बच्चों को अवश्य दीजिये।

*विशेष -बच्चों को बस किताबी कीडा मत बनाईये, बच्चों को पढ़ाई के साथ-साथ धार्मिक, समाजिक व संस्कार भी देना जरूरी है, हर परिस्थिति को ख़ुशी ख़ुशी धैर्य के साथ झेलने की क्षमता और उससे उबरने का ज्ञान और विवेक बच्चों में होना ज़रूरी है।*
*Don't  make them machine with brain rather humans with emotions and feelings 

बच्चे हमारे है, जान से प्यारे है।
चाणक्य

क्या आप जानते हैं कि चाणक्य सीरियल बीच में ही सरकारी दबाव पर रोक दिया गया था।

90 के दशक में, चाणक्य एक बहुत ही लोकप्रिय सीरियल हुआ करता था। सीरियल का कथानक, एक्टिंग और इसमें दिया गया सन्देश इतना प्रभावी था, कि लोग उसका बेसब्री से इन्तजार किया करते थे।

इस पोस्ट के मूल लेखक JNU से पढ़े हुए हैं, वे भी इस सीरियल का बेसब्री से इन्तज़ार किया करते थे।

इस सीरियल में प्राचीन भारत के महान लोगों और हमारे इतिहास व संस्कृति के बारे में बहुत अच्छे ढंग से दिखाया गया था, कई ऐसे तथ्य थे, जो हमें कभी इतिहास की किताबों में नहीं पढ़ाये गए और ये तथ्य ऐसे थे, जिन पर हर भारतीय को गर्व की अनुभूति होती। उस ज़माने में युवाओं को ये जानकारी पहली बार मिल रही थी, जिस वजह से उन्हें अपने इतिहास को लेकर जिज्ञासा भी हुई और साथ ही इस इतिहास से जुड़ाव भी होने लगा, क्योंकि अब तक तो हमें बस हुमायूं से औरंगजेब और फिर अंग्रेजों की कहानियां ही पता थीं.....उससे पहले भारत में 5000 सालों में क्या हुआ, कैसे हुआ, ये सब हमसे छुपाया गया एक एजेण्डे के तहत।

अब जैसी की उम्मीद थी ही, ये सीरियल वामपन्थी गैंग को पचा नहीं। 80 के दशक के अन्त में रामायण और महाभारत जैसे सीरियल अति लोकप्रिय हो चुके थे, इन सीरियल्स की वजह से हिन्दू जनचेतना और राष्ट्रचेतना उभरने लगी थी...और इन दोनों ही चीजों से वामपन्थियों को सख्त नफरत होती है। उन्हें लगा कि चाणक्य सीरियल 'सेक्युलर' भारत पर एक 'हिन्दुत्व' का हमला था। फिर शुरू हुआ इस सीरियल के खिलाफ एक प्रोपेगण्डा का खेल।

R Champakalakshmi एक History की प्रोफेसर थी JNU में, उन्हें चाणक्य सीरियल में एक 'प्रो हिन्दुत्व' और 'nationalist' एजेण्डा दिखा। उन्हें आपत्ति थी कि क्यों सीरियल में 'भगवा' झण्डों का उपयोग किया जाता है, क्यों बारम्बार 'हर हर महादेव' के नारे लगाए जाते हैं......उन्हें ये सब आपत्तिजनक लगा।

उन्होंने बताया कि ऐसा कोई ऐतिहासिक तथ्य (उनके कुण्ठित ज्ञान के अनुसार) नहीं, जो ये साबित करे कि उस समय मगध के लोग युद्ध में भगवा झण्डों का उपयोग करते थे.....उन्होंने ये भी कहा कि 'हर हर महादेव' के नारे लगाने का भी कोई ऐतिहासिक सबूत नहीं है।

चाणक्य सीरियल के निर्देशक Dr. Chandra Prakash Dwivedi ने इन आपत्तियों को खारिज किया और उल्टा चम्पकलक्ष्मी से पूछा कि वे बताएं कि सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य की सेना उनके ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार किस रंग के झण्डों का उपयोग करती थी? और साथ ही इनके सबूत भी दिखाएं।

जैसी कि उम्मीद थी, आज तक इन सवालों के कोई जवाब नहीं दिए गए हैं।
चम्पकलक्ष्मी ने क्या किया, उन्होंने वामपन्थी एजेण्डे के तहत भगवा झण्डे पर सवाल उठाया, उन्होंने युद्धकाल में लगाये जाने वाले हमारे आराध्यों के नारों पर सवाल उठाए......क्यों?

क्योंकि वामपन्थी हमेशा ही राष्ट्रीयता और धार्मिक प्रतीकों से चिढ़ते हैं. उन्हें चिढ़ है भगवा रंग से, क्योंकि ये रंग हमेशा से शौर्य का प्रतीक रहा है हमारी संस्कृति में। उन्हें चिढ़ है हमारे आराध्यों के नारों से, क्योंकि उन्हें पता है इन नारों को लगाने से हमारा जुड़ाव हमारे धर्म से और बढ़ता है।

वामपन्थी ऐसे प्रतीकों का दोष आरएसएस की विचारधारा पर मढ़ देते हैं और आम जनता के बीच गलत सन्देश देने की कोशिश करते हैं और ये आज़ादी के बाद से चला आ रहा है, सैकड़ों हजारों ऐसे उदाहरण हैं।

JNU, DU और AMU में एक वामपन्थी इतिहास माफिया कार्य करता है, इनका काम ही है हमारे इतिहास को विकृत करना, और अगर कोई सही इतिहास बताए तो उसे बदनाम करना और उसे बायकाट करना।

चाणक्य सीरियल के साथ भी यही हुआ। इस इतिहास माफिया ने अपनी मशीनरी (मीडिया, एकेडेमियां, सरकार, बॉलीवुड) का इस्तेमाल किया और एक धारणा को जन्म दिया। इन्होंने आरोप लगाया कि मगध साम्राज्य के समय (चौथी सदी ईसा पूर्व), कोई भारत देश था ही नहीं, और ना लोगों में देशभक्ति जैसी कोई भावना होती थी। इन लोगों ने चाणक्य सीरियल के निर्माताओं पर आरोप लगाया कि ये लोग झूठ फैला रहे हैं, और एक 'वृहद भारतीय पहचान' बनाने की कोशिश कर रहे हैं, जो उस समय नहीं हुआ करती थी।

ABVP ने इस इतिहास माफिया को चुनाती दी और कहा कि अंग्रेजों द्वारा कथित रूप से 'भारत देश' बनाने से पहले अगर कुछ नहीं था, कोलम्बस किस देश की खोज करने निकला था और 15वीं सदी में वास्कोडिगामा 'किस' जगह की खोज करने के लिए आया था?
वो भारत था या कोई अन्य देश था?

वो कौन सा देश था जिसका वर्णन मेगस्थनीज ने अपने यात्रा वृत्तान्तों में किया था? क्या वो भारत देश था? या अलग थलग पड़े हुए राजे रजवाड़े थे?
उम्मीद के अनुसार, इन सवालों के कभी जवाब नहीं आये।

दरअसल समस्या वामपन्थियों के दर्शन में है। मार्क्सिस्ट थ्योरी के अनुसार देश एक स्टेट होता है, जिस पर कोई सरकार शासन करती है और जनता उनके बनाये नियमों का पालन करती है।
सांस्कृतिक जुड़ाव और एकात्मकता की भावना से वामपन्थ का दूर दूर तक कोई लेना देना नहीं होता।

एक ऐसा क्षेत्र, जिसमें अलग अलग बोली बोलने वाले, अलग अलग मतों को मानने वाले लोग रहते हों, वृहद संस्कृति को मानने वाले लोग रहते हों और उन पर किसी का राज हो या ना हो, ऐसा क्षेत्र वामपन्थियों के लिए 'देश' नहीं होता।
दरअसल यही तो भारत था, मुगलों और अंग्रेजों के आने से पहले।

सम्राट अशोक ने क्या किया? उन्होंने एक महान देश की स्थापना की, उन्होंने छोटे बड़े राज्यों को सम्मिलित किया और अन्त में अपना राज्य ही त्याग कर दिया और सन्यास ने लिया। राज्य बनाना और उस पर शासन करना उनका एजेण्डा नहीं था, एजेण्डा तो यही था कि इस भूमि पर सभी एक हो कर रहें, एक देश की तरह रहें, जिसे भारत कहा जाता था, और ये कोई आज की धारणा नहीं थी, 5000 साल से पुराना इतिहास उठा कर देख लीजिए, यही मिलेगा।

वामपन्थियों के क्रियाकलाप यहीं नहीं रुके, एक समालोचक इकबाल मसूद तो एक कदम आगे ही बढ़ गए, उन्होंने उस समय के माहौल को देखते हुए आरोप लगाया कि "आज के हिंसात्मक माहौल (90 के दशक के शुरुआती समय) में  सीरियल में दिखाए गए ब्राह्मण (शिखा रखे हुए और सर मुंड़ाये हुए) और सीरियल में दिखाए गए वैदिक मन्त्रों के उच्चारण से धार्मिक ध्रुवीकरण हो सकता है और लोगों के (हिन्दुओं) के मन में धर्म को लेकर उत्तेजना का संचार हो सकता है"।

वामपन्थियों ने ऐसे सैकड़ों हथकण्डे अपनाए और तत्कालीन कांग्रेस सरकार पर जबरदस्त दबाव बनाया इस सीरियल को बन्द कराने के लिए, क्योंकि ये सीरियल उन इतिहास माफिया के बताए हुए प्रोपगण्डे को तोड़ रहा था।

अन्ततः कांग्रेस की सरकार दबाव में आई और इस सीरियल को बन्द कर दिया गया। इस तरह एक रिसर्च पर आधारित, alternative  और असली इतिहास के दर्शन कराने वाला सीरियल, 'सेकुलरिज्म' की भेंट चढ़ गया।
मैं पैदल घर आ रहा था । रास्ते में एक बिजली के खंभे पर एक कागज लगा हुआ था । पास जाकर देखा, लिखा था: 

कृपया पढ़ें

"इस रास्ते पर मैंने कल एक 50 का नोट गंवा दिया है । मुझे ठीक से दिखाई नहीं देता । जिसे भी मिले कृपया इस पते पर दे सकते हैं ।" ...

यह पढ़कर पता नहीं क्यों उस पते पर जाने की इच्छा हुई । पता याद रखा । यह उस गली के आखिरी में एक घऱ था । वहाँ जाकर आवाज लगाया तो एक वृद्धा लाठी के सहारे धीरे-धीरे बाहर आई । मुझे मालूम हुआ कि वह अकेली रहती है । उसे ठीक से दिखाई नहीं देता ।

"माँ जी", मैंने कहा - "आपका खोया हुआ 50 मुझे मिला है उसे देने आया हूँ ।"

यह सुन वह वृद्धा रोने लगी ।

"बेटा, अभी तक करीब 50-60 व्यक्ति मुझे 50-50 दे चुके हैं । मै पढ़ी-लिखी नहीं हूँ, । ठीक से दिखाई नहीं देता । पता नहीं कौन मेरी इस हालत को देख मेरी मदद करने के उद्देश्य से लिख गया है ।"

बहुत ही कहने पर माँ जी ने पैसे तो रख लिए । पर एक विनती की - ' बेटा, वह मैंने नहीं लिखा है । किसी ने मुझ पर तरस खाकर लिखा होगा । जाते-जाते उसे फाड़कर फेंक देना बेटा ।'मैनें हाँ कहकर टाल तो दिया पर मेरी अंतरात्मा ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया कि उन 50-60 लोगों से भी "माँ" ने यही कहा होगा । किसी ने भी नहीं फाड़ा ।जिंदगी मे हम कितने सही और कितने गलत है, ये सिर्फ दो ही शक्स जानते है..
परमात्मा और अपनी अंतरआत्मा..!! मेरा हृदय उस व्यक्ति के प्रति कृतज्ञता से भर गया । जिसने इस वृद्धा की सेवा का उपाय ढूँढा । सहायता के तो बहुत से मार्ग हैं , पर इस तरह की सेवा मेरे हृदय को छू गई । और मैंने भी उस कागज को फाड़ा नहीं ।मदद के तरीके कई हैं सिर्फ कर्म करने की तीव्र इच्छा मन मॆ होनी चाहिए
🌿
                 कुछ नेकियाँ
                    और

                कुछ अच्छाइयां..

  अपने जीवन में ऐसी भी करनी चाहिए,

          जिनका ईश्वर के सिवाय..

          कोई और गवाह् ना हो...!!
।। ब्रिटेन का विरोध अनिवार्य क्यों?।।
*- सजग हिन्दू करें ब्रिटेन का विरोध।
*- धारा ३७० के मुद्दे पर भारतवर्ष की संसद का विरोध करने का ब्रिटेन पार्लियामेंट में आएगा बिल।
*- मुस्लिम मेयर बहुत चालाकी से स्थानीय सांसदों को कर रहा है गोलबंद।
* ब्रिटेन में तेजी से बढ़ी है मुस्लिम आबादी और लन्दन बनने जा रहा है भारत विरोध का केंद्र।
*-बी.बी.सी. के द्वारा निरन्तर धारा ३७० पर विरोध का झंडा लहराना यही साबित करता है कि हिन्दू कहीं भी विश्व में शांति चैन के साथ न जी सके।
*- यदि धारा ३७० के समर्थन में जले ब्रिटेन में भारत का राष्ट्र ध्वज तो भारत में ब्रिटेन के ध्वज के साथ कैसा हो व्यवहार?
      वक्त  की आंधी से खबरदार रहना है।
      अपने राष्ट्र के प्रति होशियार रहना है।
आर्य भट्ट ने शून्य की खोज की तो रामायण में रावण के दस सर की गणना कैसे की गयी?

रावण के दस सिर कैसे हो सकते हैं, जबकि शून्य की खोज आर्यभट्ट ने की?

कुछ लोग हिन्दू धर्म व "रामायण" महाभारत "गीता" को काल्पनिक दिखाने के लिए यह प्रश्न करते है कि जब आर्यभट्ट ने लगभग 6 वी शताब्दी मे (शून्य/जीरो) की खोज की तो आर्यभट्ट की खोज से लगभग 5000 हजार वर्ष पहले रामायण मे रावण के 10 सिर की गिनती कैसे की गई !!!

और महाभारत मे कौरवो की 100 की संख्या की गिनीती कैसे की गई !!

जबकि उस समय लोग (जीरो) को जानते ही नही थे !!

तो लोगो ने गिनती को कैसे गिना !!!!

अब मै इस प्रश्न का उत्तर दे रहा हु !!

कृपया इसे पूरा ध्यान से पढे!

आर्यभट्ट से पहले संसार 0(शुन्य) को नही जानता था !!

आर्यभट्ट ने ही (शुन्य / जीरो) की खोज की, यह एक सत्य है !!

लेकिन आर्यभट्ट ने "0( जीरो )"" की खोज अंको मे की थी, शब्दों में खोज नहीं की थी, उससे पहले 0 (अंक को) शब्दो मे शुन्य कहा जाता था !!!

उस समय मे भी हिन्दू धर्म ग्रंथो मे जैसे शिव पुराण,स्कन्द पुराण आदि मे आकाश को शुन्य कहा गया है !!

यहाँ पे "शुन्य" का मतलव अनंत से होता है !!

लेकिन रामायण व महाभारत काल मे गिनती अंको मे न होकर शब्दो मे होता था,और वह भी संस्कृत मे !!

उस समय 1,2,3,4,5,6,7,8, 9,10 अंक के स्थान पे शब्दो का प्रयोग होता था वह भी संस्कृत के शव्दो का प्रयोग होता था !!!

जैसे !

1 = प्रथम

2 = द्वितीय

3 = तृतीय"

4 = चतुर्थ

5 = पंचम""

6 = षष्टं"

7 = सप्तम""

8 = अष्टम""

9 = नवंम""

10 = दशम !!

दशम = दस

यानी" दशम मे दस तो आ गया,लेकिन अंक का

0 (जीरो/शुन्य ) नही आया,‍‍रावण को दशानन कहा जाता है !!

दशानन मतलव दश+आनन =दश सिर वाला

अब देखो

रावण के दस सिर की गिनती तो हो गई !!

लेकिन अंको का 0 (जीरो) नही आया !!

इसी प्रकार महाभारत काल मे संस्कृत शब्द मे कौरवो की सौ की संख्या को शत-शतम ""बताया गया !!

शत् एक संस्कृत का "शब्द है,

जिसका हिन्दी मे अर्थ सौ (100) होता है !!

सौ(100) "को संस्कृत मे शत् कहते है !!

शत = सौ

इस प्रकार महाभारत काल मे कौरवो की संख्या गिनने मे सौ हो गई !!

लेकिन इस गिनती मे भी अंक का 00(डबल जीरो) नही आया,और गिनती भी पूरी हो गई !!!

महाभारत धर्मग्रंथ में कौरव की संख्या शत बताया गया है!

रोमन मे भी

1-2-3-4-5-6-7-8-9-10 की

जगह पे (¡)''(¡¡)"""(¡¡¡)""

पाँच को V कहा जाता है !!

दस को x कहा जाता है !!

रोमन मे x को दस कहा जाता है !!

X= दस

इस रोमन x मे अंक का (जीरो/0) नही आया !!

और हम" दश पढ "भी लिए

और" गिनती पूरी हो गई!!

इस प्रकार रोमन word मे "कही 0 (जीरो) "नही आता है!!

और आप भी" रोमन मे""एक से लेकर "सौ की गिनती "पढ लिख सकते है !!

आपको 0 या 00 लिखने की जरूरत भी नही पड़ती है !!

पहले के जमाने मे गिनती को शब्दो मे लिखा जाता था !!

उस समय अंको का ज्ञान नही था !!

जैसे गीता,रामायण मे 1"2"3"4"5"6 या बाकी पाठो (lesson ) को इस प्रकार पढा जाता है !!

जैसे

(प्रथम अध्याय, द्वितीय अध्याय, पंचम अध्याय,दशम अध्याय... आदि !!)

इनके"" दशम अध्याय ' मतलब

दशवा पाठ (10 lesson) "" होता है !!

दशम अध्याय= दसवा पाठ

इसमे दश शब्द तो आ गया !!

लेकिन इस दश मे अंको का 0 (जीरो)" का प्रयोग नही हुआ !!

बिना 0 आए पाठो (lesson) की गिनती दश हो गई !!

(हिन्दू बिरोधी और नास्तिक लोग सिर्फ अपने गलत कुतर्क द्वारा

‍ हिन्दू धर्म व हिन्दू धर्मग्रंथो को काल्पनिक साबित करना चाहते है !!)

जिससे हिन्दूओ के मन मे हिन्दू धर्म के प्रति नफरत भरकर और हिन्दू धर्म को काल्पनिक साबित करके,हिन्दू समाज को अन्य धर्मों में परिवर्तित किया जाए !!!

लेकिन आज का हिन्दू समाज अपने धार्मिक शिक्षा को ग्रहण ना करने के कारण इन लोगो के झुठ को सही मान बैठता है !!!
अगर नवरात्रि का व्रत साबुदाना खाकर करती हैं तो सच जान लें, क्योंकि ये असल में होता है मांसाहारी

आपको मालुम है व्रत में जो साबुदाना आप खा रहे हैं वो असल में मांसाहारी होता है।

नवरात्रि का व्रत ज्यादातर लोग करते हैं। घर की महिलाएं तो जरूर ही रखती हैं।

लेकिन नौ दिन का व्रत ... ये काफी दिन होते हैं। इसलिए लोग इस व्रत में साबुदाना की खिचड़ी या हलवा खाते हैं।

व्रत के दिनों में साबूदाना खाना काफी नार्मल है। बल्कि कई लोग तो इसका भोग भी लगाते हैं। लेकिन अगर आपको पता चले कि व्रत के दिनों में खाया जाने वाला साबुदाना असल में शाकाहारी है तो आप कैसा रिएक्शन देंगे...?

चौंकिए मत... यकीन मानिए। व्रत में आप जो साबुदाना खाते हैं वो मांसाहारी होता है।

अगर हमारी बातों पर विश्वास नहीं हो तो ये आर्टिकल पढ़ें। क्योंकि इस आर्टिकल में जब आप साबूदाना बनाने की तकनीक पढ़ेंगी तो खुद ही सोचने में मजबूर हो जाएंगी कि साबुदाना सच में मांसाहानी है?

व्रत का आहार साबूदाना ?
साबुदाना से कई सारी चीजें जैसे, लड्‍डू, हलवा, खिचड़ी आदि बनाई जाती हैं। इन सारी चीजों का इस्तेमाल व्रत में खाने के लिए  किया जाता है। व्रत के दौरान फल की तुलना में लोग साबुदाना इसलिए खाते हैं क्योंकि इससे कार्बोहाइड्रेट मिलता है जो बॉडी को एनर्जी देता है। लेकिन क्या साबूदाना सच में मांसाहारी है या फिर फलाहारी? या फिर कहीं साबूदाना खाने से व्रत ही तो नहीं टूट जाता?

इसे ऐसे समझें
इसमें कोई दो राय नहीं है कि साबूदाना एक प्राकृतिक वनस्पति है। क्योंकि यह सागो पाम के एक पौधे के तने व जड़ में जो गूदा होता है उससे बनाया जाता है। लेकिन इसे जिस तरह से बनाया जाता है उसके बाद ये कहना गलत है कि ये वानस्पतिक होता है। क्योंकि जिस तरह से इसे बनाया जाता है उस पूरे process के बाद साबूदाना मांसाहारी हो जाता है।

Specially वे साबूदाने जो तमिलनाडु की कई बड़ी फैक्ट्र‍ियों में बनाए जाते हैं। वो भी इसलिए क्योंकि तमिलनाडु में बड़े पैमाने पर सागो पाम के पेड़ हैं। इस कारण ही तमिलनाडु देश साबूदाना का सबसे बड़ा स्रोत माना जाता है। 

इस तरह से बनाया जाता है साबूदाना
फैक्ट्रियों में सबसे पहले सागो पाम की जड़ों को इकट्ठा किया जाता है।
फिर इन गुदों से साबूदाना बनाने के लिए महीनों तक इन गुदों को बड़े-बड़े गड्ढों में सड़ाया जाता है। आपको हम बता दें कि ये गड्ढे पूरी तरह से खुले होते हैं और इनके ऊपर लाइट्स लगी होती हैं।
लाइट्स के आसापस जो कीड़े-मकोड़े आते हैं वे गड्ढों के खुले होने के कारण उसमें गिरते रहते हैं।
साथ ही इन सड़े हुए गूदे में भी सफेद रंग के सूक्ष्म जीव पैदा होते रहते हैं।
अब इस गूदे को, बगैर कीड़े-मकोड़े और सूक्ष्म जीवों से बिना अलग किए, पैरों से मसला जाता है जिसमें सभी सूक्ष्मजीव और कीटाणु भी पूरी तरह से मिल जाते हैं। फिर इन मसले हुए गुदों से मावे की तरह वाला आटा तैयार होता है। अब इसे मशीनों की सहायता से छोटे-छोटे दानों में अर्थात साबूदाने के रुप में तैयार किया जाता है और फिर पॉलिश किया जाता है।

अब आप ही सोचिए की इस पूरे process के दौरान कैसे ये शाकाहारी रहा?
सेब के बारे में  रोचक जानकारियाँ 🍎🍎🍎
               
1. सेब को फ्रिज से बाहर रखने पर वह 10 गुना तेजी से पकता है।

2. कभी आपने सोचा है कि सेब पानी में क्यों तैरते हैं? इसका कारण यह है कि इसके अंदर का 25 प्रतिशत भाग हवा से बना होता है।

3. धरती पर सेब बहुत पहले से मौजूद हैं। 6500 ईसा पूर्व आसपास से इसके पुरातात्विक साक्ष्य पाए गये हैं।

4. वैज्ञानिकों के अनुसार दुनिया में पहली बार सेब हजारों साल पहले मध्य एशियाई देश कज़ाख़िस्तान में पैदा हुए थे।

5. आम और केले के बाद सेब दुनिया का तीसरा सबसे लोकप्रिय फल है।

6. नींद भगाने के लिए कॉफ़ी की तुलना में एक सेब अधिक कारगर है इसकी प्राकृतिक चीनी कैफीन की तुलना में अधिक शक्तिशाली है।

7. दुनिया का सबसे बड़ा सेब जापान में पाया गया था जिसका वजन 1.849 किलोग्राम था

8. दुनियाभर में सेब की 7500 से भी ज्यादा किस्में (प्रजातियाँ) पायी जाती हैं।

9. सेब तीन रंगों में पाए जाते हैं - पीला, हरा और लाल।

10. सेब (apple) सबसे ज्यादा कहाँ पाया जाता है? चीन, U.S, टर्की, पोलैंड और इटली सबसे ज्यादा सेब उत्पादक देश हैं।

11. एक सेव में औसतन 10 बीज होते हैं।

12. भारत में सेब का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य कौन है? जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड राज्य सेब उत्पादन में सबसे आगे हैं।

13. सेब (Apple) के पेड़ 100 से अधिक वर्षों तक जीवित रह सकते हैं।

14. सेब के पेड़ों को अपना पहला फल देने में चार से पांच साल लगते हैं।

15. दरअसल सेब का पेड़ गुलाब की प्रजाति का ही एक हिस्सा है।

16. सेब के फलने से पहले इसपर फूल लगते हैं जो की गर्मी के मौसम में फूलते हैं।

17. इसके फूल बहुत ही खूबसूरत होता है जिसका रंग सफ़ेद, गुलाबी और पीला होता है।

18. पेड़ पर एक सेब के फल के लिए लगभग 50 पत्तियों से उर्जा संग्रहित करने की जरूरत पड़ती है।

19. जंगली सेब के पेड़ों पर फल कांटेदार शाखाओं द्वारा संरक्षित होते हैं।

20. सेब के पेड़ अलग-अलग ऊंचाइयों तक बढ़ते हैं, जो पेड़ की प्रजाति के आधार पर 5 से 30 फीट तक हो सकते हैं

21. सेब में कौनसा विटामिन पाया जाता है? इसमें विटामिन C भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं, इसके अलावा इसमें फाइबर और एंटीऑक्सीडेंट तत्व भी पाए जाते हैं।

22. सेब कभी भी छील कर नही खाने चाहिए, क्योंकि इसके छिलके में दो-तिहाई फाइबर और बहुत सारे एंटीऑक्सीडेंट पाए जाते हैं जो की हमारे शरीर के लिए बहुत लाभकारी हैं।

23. सेब वजन कम करने के लिए फायदेमंद है।

24. रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढाता है।

25. इसमें आयरन की मात्रा भी पाई जाती है जिससे एनीमिया की बीमारी में लाभ मिलता है।

26. यह आपके दांतों को स्वस्थ और चमकदार बनाता है।

27. दिल की बिमारी के खतरे को कम करता है।

28. रिसर्च में यह भी पाया गया है की सेव खाने से कैंसर का खतरा भी कम होता है।

29. अल्जाइमर से बचाता है।

30. इससे टाइप-2 मधुमेह का खतरा भी कम हो जाता है।

31. पाचन क्रिया को ठीक करता है।

32. कब्ज और दस्त जैसी समस्याओं से बचाता है।

33. गुर्दे की पथरी (स्टोन) को बनने से रोकता है।

34. हड्डियों को मजबूत करता है।

35. यह मस्तिष्क के लिए भी बहुत ही लाभदायक है। यह एकाग्रशक्ति और याददाश्त को बढ़ाने में मदद करता है।

36. शरीर से कोलेस्ट्रोल लेवल को कम करता है।

37. आँखों से जुडी समस्याएं जैसे ग्लूकोमा, आखों की रौशनी कम होना आदि को भी ठीक कर सकता है।

38. त्वचा (स्किन) के लिए भी फायदेमंद है, चेहरे की झुर्रियां, दाग-धब्बे को दूर करता है।

39. एप्पल जूस को बालों पर लगाने से रुसी (dandruff) खत्म हो जाते हैं।

40. इसमें एंटीओक्सिडेंट की भरपूर मात्रा होती है जो की शरीर के लिए बहुत ही उपयोगी है।
एसिडिटी चुटकी में गायब

स्वस्थ भारत की और छोटा सा कदम ।

क्या आप जानते हैं, एसिडिटी की दवा से हो सकती है आपकी किडनी खराब ।
जब हम खाना खाते हैं तो इस को पचाने के लिए शरीर में एसिड बनता है । जिसकी मदद से ये भोजन आसानी से पच जाता है । ये ज़रूरी भी है । मगर कभी कभी ये एसिड इतना ज़्यादा मात्रा में बनाता है कि इसकी वजह से
सर दर्द, सीने में जलन और पेट में अल्सर और अल्सर के बाद कैंसर तक होने की सम्भावना हो जाती है ।
ऐसे में हम नियमित ही घर में इनो या पीपीआई (प्रोटॉन पंप इनहिबिटर्स) दवा का सेवन करते रहते हैं । मगर आपको जान कर आश्चर्य होगा के ये दवाएं सेहत के लिए बहुत खतरनाक है । पीपीआई ब्लड में मैग्नीशियम की कमी कर देता है । अगर खून पर असर पड़ रहा है तो किडनी पर असर पड़ना लाज़मी है । जिसका सीधा सा अर्थ की ये दवाएं हमारी सेहत के लिए खतरनाक हैं ।
हमने कई ऐसे मूर्ख लोग भी देखे हैं जो एसिडिटी होने पर कोल्ड ड्रिंक पेप्सी या कोका कोला पीते हैं ये सोच कर कि इससे एसिडिटी कंट्रोल होगा । ऐसे लोगों को भगवान ही बचा सकता है ।
तो ऐसी स्थिति में कैसे करें इस एसिडिटी का इलाज
आज हम आपको बता रहे हैं भयंकर से भयंकर एसिडिटी का चुटकी बजाते आसान सा इलाज ।
ये इलाज आपकी सोच से कई गुना ज़्यादा कारगार है । तो क्या है ये उपचार ।
ये हर रसोई की शान है । हर नमकीन पकवान इसके बिना अधूरा है  ये है आपकी रसोई में मौजूद जीरा । जी हाँ जीरा ।
कैसे करें सेवन :
जब भी आपको एसिडिटी हो जाए कितने भी भयंकर से भयंकर एसिडिटी हो आपको बस जीरा कच्चा ही चबा चबा कर खाना है । एसिडिटी के हिसाब से आधे से एक चम्मच (ढाई से पांच ग्राम) जीरा खाए । इसके 10 मिनट बाद गुनगुना पानी पी लें । आप देखेंगे कि आपकी समस्या ऐसे गायब हो गयी जैसे गधे के सिर से सींग ।
ये उपरोक्त नुस्खा मैंने बहुत लोगों पर आजमाया है, और उनका अनुभव ऐसा है कि जैसे जादू । तो आप भी ये आजमाए ।
धन्यवाद ।
कृपया अपनी इस पोस्ट को व्हाट्स एप्प ,फेसबुक और ट्विटर पर शेयर करते रहें । इस से हमारा होंसला बढ़ता रहेगा । और आपकी सेवा में नए नए अनुभव ले कर फिर से उपस्थित रहेंगे ।

आओ स्वस्थ भारत के निर्माण मेंसहयोग प्रदान करें ।
ज़रूरी नही….
हमेशा बुरे कर्मों की वजह से ही
दर्द सहने को मिले...
कई बार हद से ज़्यादा अच्छे होने की भी क़ीमत चुकानी पड़ती है...
एक सत्य से अवगत कराना चाहते है। लेख थोड़ा लम्बा है पर पढ़े जरूर ।🙏
*कभी आपने सोचा कि*.......
१. जिस सम्राट के नाम के साथ संसार भर के इतिहासकार “महान” शब्द लगाते हैं......

२. जिस सम्राट का राज चिन्ह अशोक चक्र भारत देश अपने झंडे में लगता है.....

३.जिस सम्राट का राज चिन्ह चारमुखी शेर को भारत देश
 राष्ट्रीय प्रतीक मानकर सरकार चलाती है......

४. जिस देश में सेना का सबसे बड़ा युद्ध
 सम्मान सम्राट अशोक के नाम पर अशोक चक्र दिया जाता है.....

५. जिस सम्राट से पहले या बाद में कभी कोई ऐसा राजा या सम्राट नहीं हुआ, जिसने अखंड भारत (आज का नेपाल, बांग्लादेश, पूरा भारत, पाकिस्तान और अफगानिस्तान) जितने बड़े भूभाग पर एक छत्रीय राज किया हो......

६. जिस सम्राट के शासन काल

 को विश्व के बुद्धिजीवी और इतिहासकार

 भारतीय इतिहासका सबसे स्वर्णिम काल मानते हैं.....

७.जिस सम्राट के शासन काल में भारत विश्व गुरु था, सोने

 की चिड़िया था, जनता खुशहाल और भेदभाव रहित

 थी......

८. जिस सम्राट के शासन काल

 जी टी रोड जैसे कई हाईवे रोड बने, पूरे रोड पर

 पेड़ लगाये गए, सराये बनायीं गईं इंसान तो इंसान जानवरों के लिए

 भी प्रथम बार हॉस्पिटल खोले गए, जानवरों को मारना बंद कर

 दिया गया.....

ऐसे महन सम्राट अशोक कि जयंती उनके

 अपने देश भारत में

 क्यों नहीं मनायी जाती, न ही कोई

 छुट्टी घोषित कि गई है??

अफ़सोस जिन लोगों को ये

 जयंती मनानी चाहिए, वो लोग अपना इतिहास

 ही नहीं जानते और जो जानते हैं

 वो मानना नहीं चाहते ।

1. जो जीता वही चंद्रगुप्त ना होकर…

जो जीता वही सिकन्दर “कैसे” हो गया… ???

 (जबकि ये बात सभी जानते हैं कि…. सिकंदर

 की सेना ने चन्द्रगुप्त मौर्य के प्रभाव को देखते

 हुये ही लड़ने से मना कर दिया था.. बहुत

 ही बुरी तरह मनोबल टूट गया था…. जिस

 कारण , सिकंदर ने मित्रता के तौर पर अपने

 सेनापति सेल्युकश कि बेटी की शादी चन्द्रगुप्त से की थी)

2. महाराणा प्रताप “”महान””” ना होकर………

अकबर “””महान””” कैसे हो गया…???

जबकि, अकबर अपने हरम में

 हजारों लड़कियों को रखैल के तौर पर

 रखता था…. यहाँ तक कि उसने

 अपनी बेटियो और बहनो की शादी तक पर

 प्रतिबँध लगा दिया था जबकि..

महाराणा प्रताप ने अकेले दम पर उस अकबर के

 लाखों की सेना को घुटनों पर

 ला दिया था)

3. सवाई जय सिंह को “””महान वास्तुप्रिय”””

राजा ना कहकर शाहजहाँ को यह

 उपाधि किस आधार मिली …… ???

जबकि… साक्ष्य बताते हैं कि…. जयपुर के

 हवा महल और कई किले ….

महाराजा जय सिंह ने ही बनवाया था)

4. जो स्थान महान मराठा क्षत्रिय वीर

 शिवाजी को मिलना चाहिये वो………. क्रूर

 और आतंकी औरंगजेब को क्यों और कैसे मिल

 गया ..????

5. स्वामी विवेकानंद और आचार्य चाणक्य

 की जगह… ….. गांधी को महात्मा बोलकर ….

हिंदुस्तान पर क्यों थोप दिया गया…??????

6. तेजोमहालय- ताजमहल……… ..लालकोट-

लाल किला……….. फतेहपुर सीकरी का देव

 महल- बुलन्द दरवाजा…….. एवं सुप्रसिद्ध

 गणितज्ञ वराह मिहिर की

 मिहिरावली(महरौली) स्थित वेधशाला-

कुतुबमीनार….. ……… क्यों और कैसे

 हो गया….?????

7. यहाँ तक कि….. राष्ट्रीय गान भी…..

संस्कृत के "वन्दे मातरम" की जगह

 गुलामी का प्रतीक” ”जन-गण-मन हो गया””

कैसे और क्यों हो गया….??????

8. और तो और…. हमारे अराध्य भगवान् राम..

कृष्ण तो इतिहास से कहाँ और कब गायब

 हो गये……… पता ही नहीं चला……….आखिर

 कैसे ????

9. यहाँ तक कि…. हमारे अराध्य भगवान राम

 की जन्मभूमि पावन अयोध्या …. भी कब और

 कैसे विवादित बना दी गयी… हमें पता तक

 नहीं चला….!

कहने का मतलब ये है कि….. हमारे दुश्मन सिर्फ….

बाबर , गजनवी , लंगड़ा तैमूरलंग…..ही नहीं हैं…… बल्कि आज के

 सफेदपोश सेक्यूलर भी हमारे उतने ही बड़े दुश्मन हैं…. जिन्होंने हम हिन्दुओं के अन्दर हीन

 भाबना का उदय कर सेकुलरता का बीज उत्पन्न किया। ----------------------------------------
धर्मो रक्षति रक्षित: के अर्थ को अब पहचानो तुम
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जब याद गोधरा आता है आँखों में आँसू आते हैं,

कश्मीरी पंडितों की पीड़ा कुछ हिंदू भूल क्यों जाते हैं।

 हर बार विधर्मी शैतानों ने धर्म पर हैं प्रहार किये,

हर बार सहिष्णू बन कर हमने जाने कितने कष्ट सहे। …

 … अब और नहीं चुप रहना है अब और नहीं कुछ सहना है,

जैसा आचरण करेगा जो, वो सूद समेत दे देना है।

 क्या भूल गये राजा प्रथ्वी ने गौरी को क्षमा-दान दीया,

और बदले में उसने राजा की आँखों को निकाल लीया।

 ये वंश वही है बाबर का जो राम का मंदिर गिरा गया,

और पावन सरयू धरती पर बाबरी के पाप को सजा गया।

 अकबर को जो कहते महान क्या उन्हें सत्य का ज्ञान नहीं,

या उनके हृदय में जौहर हुई माताओं के लिए सम्मान नहीं।

 औरंगज़ेब की क्रूरता भी क्या याद पुन: दिलवाऊँ मैं,

टूटे जनेऊ और मिटे तिलक के दर्शन पुन: कराऊँ मैंh

 तुम भाई कहो उनको लेकिन तुमको वो काफ़िर मानेंगे,

और जन्नत जाने की खातिर वो शीश तुम्हारा उतारेंगे।

 धर्मो रक्षति रक्षित: के अर्थ को अब पहचानो तुम,

धर्म बस एक ‘सनातन’ है, कोई मिथ्या-भ्रम मत पालो तुम।
जय माँ भारत
दादू दुनिया बावरी कबरे पूजे ऊत
जिनको कीड़े खा चुके उनसे मांगे पूत

कब्र मे मुर्दे को खाने वाले कीड़े भी कुछ सालो मे नष्ट हो जाते हैं। परन्तु  हिन्दू उनपर सिर रगड़ते हैं।
पूर्वी उत्तर प्रदेश में एक शहर है,बहराइच ।बहराइच में हिन्दू समाज का मुख्य पूजा स्थल है गाजी बाबा की मजार। मूर्ख हिंदू लाखों रूपये हर वर्ष इस पीर पर चढाते है। इतिहास का जानकार हर व्यक्ति जानता है,कि महमूद गजनवी के उत्तरी भारत को १७
बार लूटने व बर्बाद करने के कुछ समय बाद उसका भांजा सलार गाजी भारत को दारूल इस्लाम बनाने के उद्देश्य से भारत पर चढ़ आया । वह पंजाब ,सिंध, आज के उत्तर प्रदेश को रोंद्ता हुआ बहराइच तक जा पंहुचा। रास्ते में उसने लाखों हिन्दुओं का कत्लेआम कराया, लाखों हिंदू औरतों के बलात्कार हुए, हजारों मन्दिर तोड़ डाले।
राह में उसे एक भी ऐसा हिन्दू वीर नही मिला जो उसका मान मर्दन कर सके। इस्लाम की जेहाद की आंधी को रोक सके। परंतु बहराइच के राजा सुहेल देव पासी ने उसको थामने का बीडा उठाया । वे अपनी सेना के साथ सलार गाजी के हत्याकांड को रोकने के लिए जा पहुंचे। महाराजा व हिन्दू वीरों ने सलार गाजी व उसकी दानवी सेना को मूली गाजर की तरह काट डाला । सलार गाजी मारा गया। उसकी भागती सेना के एक एक हत्यारे को काट डाला गया। हिंदू ह्रदय राजा सुहेल देव पासी ने अपने धर्म का पालन करते हुए, सलार गाजी को इस्लाम के अनुसार कब्र में दफ़न करा दिया।

कुछ समय पश्चात् तुगलक वंश के आने पर फीरोज तुगलक ने सलारगाजी को इस्लाम का सच्चा संत सिपाही घोषित करते हुए उसकी मजार बनवा दी। आज उसी हिन्दुओं के हत्यारे, हिंदू औरतों के बलातकारी ,मूर्ती भंजन दानव को हिंदू समाज एक देवता की तरह पूजता है। सलार गाजी हिन्दुओं का गाजी बाबा हो गया है और हिंदू वीर शिरोमणि सुहेल देव पासी सिर्फ़ पासी समाज का हीरो बनकर रह गएँ है और सलार गाजी हिन्दुओं का भगवान बनकर हिन्दू समाज का पूजनीय हो गया है। अब गाजी की मजार पूजने वाले ,ऐसे हिन्दुओं को मूर्ख न कहे तो क्या कहें ।

ख्वाजा गरीब नवाज़, अमीर खुसरो, निजामुद्दीन औलिया की दरगाह पर
जाकर मन्नत मांगने वाले सनातन धर्मी (हिन्दू) लोगो के लिए विशेष :--

पूरे देश में स्थान स्थान पर बनी कब्रों,मजारों या दरगाहों पर हर वीरवार को जाकर शीश झुकाने व मन्नत करने वालों से कुछ प्रश्न  :-

 1.क्या एक कब्र जिसमे मुर्दे की लाश मिट्टी में बदल चुकी है वो किसी की मनोकामना पूरी कर सकती हैं?
2. ज्यादातर कब्र या मजार उन मुसलमानों की हैं जो हमारे पूर्वजो से लड़ते हुए मारे गए
थे, उनकी कब्रों पर जाकर मन्नत मांगना क्या उन वीर पूर्वजो का अपमान नहीं हैं जिन्होंने अपने प्राण धर्म की रक्षा करते हुए बलि वेदी पर समर्पित कर दियें थे?
3. क्या हिन्दुओ के राम, कृष्ण अथवा ३३ प्रकार देवी देवता शक्तिहीन हो चुकें हैं जो मुसलमानों की कब्रों पर सर पटकने के लिए जाना आवश्यक हैं?
4. जब गीता में श्री कृष्ण जी महाराज ने कहाँ हैं की कर्म करने से ही सफलता प्राप्त होती हैं तो मजारों में दुआ मांगने से क्या हासिल होगा?

"यान्ति देवव्रता देवान्
पितृन्यान्ति पितृव्रताः
भूतानि यान्ति भूतेज्या यान्ति
मद्याजिनोऽपिमाम्"

 श्री मद भगवत गीता में भी भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि भूत प्रेत, मुर्दा, पितृ (खुला या दफ़नाया हुआ अर्थात् कब्र,मजार अथवा समाधि) को सकामभाव से पूजने वाले स्वयं मरने के बाद भूत- प्रेत व पितृ की योनी में ही विचरण करते हैं व उसे ही प्राप्त करते हैं l
5. भला किसी मुस्लिम देश में वीर शिवाजी, महाराणा प्रताप, हरी सिंह नलवा आदि वीरो की स्मृति में कोई स्मारक आदि बनाकर उन्हें पूजा जाता हैं तो भला हमारे ही देश पर आक्रमण करनेवालो की कब्र पर हम क्यों शीश झुकाते हैं?
6. क्या संसार में इससे बड़ी मूर्खता का प्रमाण आपको मिल सकता हैं?
7. हिन्दू कौनसी ऐसी अध्यात्मिक प्रगति मुसलमानों की कब्रों की पूजा कर प्राप्त
कर रहे  हैं जो वेदों- उपनिषदों मेंकहीं नहीं गयीं हैं?
8. कब्र, मजार पूजा को हिन्दू मुस्लिम सेकुलरता की निशानी बताना हिन्दुओ
को अँधेरे में रखना नहीं तो क्या हैं ?

आशा हैं इस लेख को पढ़ कर आपकी बुद्धि में कुछ प्रकाश हुआ होगा l अगर आप आर्य
राजा श्री राम और श्री कृष्ण जी महाराज की संतान हैं तो तत्काल इस मुर्खता पूर्ण अंधविश्वास को छोड़ दे और अन्य हिन्दुओ को भी इस बारे में बता कर उनका अंधविश्वास दूर करे| अपने धर्म को जानिए l इस अज्ञानता के चक्र में से बाहर
निकलिए l

नोट : पृथ्वी राज चौहान की समाधि पर कंधार अफगानिस्तान में जूतियां झाड़ी जाती थी ।
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टाटा बिड़ला ओर डालमिया ये तीन नाम बचपन से सुनते आए ह मगर डालमिया घराना न कही व्यापार में नजर आया और न ही कहि ओर ,
डालमिया घराने के बारे में जानने की बहुत इच्छा थी
लीजिए आप भी पढ़िए की नेहरू के जमाने मे भी 1 लाख करोड़ के मालिक डालमिया को साजिशो में फंसा के नेहरू ने कैसे बर्बाद कर दिया
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ये तस्वीर है राष्ट्रवादी खरबपति सेठ रामकृष्ण डालमिया की ,जिसे नेहरू ने झूठे मुकदमों में फंसाकर जेल भेज दिया तथा कौड़ी-कौड़ी का मोहताज़ बना दिया ।दरअसल डालमिया जी ने स्वामी करपात्री जी महाराज के साथ मिलकर गौहत्या एवम हिंदू कोड बिल पर प्रतिबंध लगाने के मुद्दे पर नेहरू से कड़ी टक्कर ले ली थी । लेकिन नेहरू ने हिन्दू भावनाओं का दमन करते हुए गौहत्या पर प्रतिबंध भी नही लगाई तथा हिन्दू कोड बिल भी पास कर दिया और प्रतिशोध स्वरूप हिंदूवादी सेठ डालमिया को जेल में भी डाल दिया तथा उनके उद्योग धंधों को बर्बाद कर दिया ।

इतिहास इस बात का साक्षी है कि जिस व्यक्ति ने नेहरू के सामने सिर उठाया उसी को नेहरू ने मिट्टी में मिला दिया.

देशवासी प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद और सुभाष बाबू के साथ उनके निर्मम व्यवहार के बारे में वाकिफ होंगे मगर इस बात को बहुत कम लोग जानते हैं कि उन्होंने अपनी ज़िद के कारण देश के उस समय के सबसे बड़े उद्योगपति सेठ रामकृष्ण डालमिया को बड़ी बेरहमी से मुकदमों में फंसाकर न केवल कई वर्षों तक जेल में सड़ा दिया बल्कि उन्हें कौड़ी-कौड़ी का मोहताज कर दिया.

जहां तक रामकृष्ण डालमिया का संबंध है, वे राजस्थान के एक कस्बा चिड़ावा में एक गरीब अग्रवाल घर में पैदा हुए थे और मामूली शिक्षा प्राप्त करने के बाद अपने मामा के पास कोलकाता चले गए थे.

वहां पर बुलियन मार्केट में एक salesman के रूप में उन्होंने अपने व्यापारिक जीवन का शुरुआत किया था. भाग्य ने डटकर डालमिया का साथ दिया और कुछ ही वर्षों के बाद वे देश के सबसे बड़े उद्योगपति बन गए.

उनका औद्योगिक साम्राज्य देशभर में फैला हुआ था जिसमें समाचारपत्र, बैंक, बीमा कम्पनियां, विमान सेवाएं, सीमेंट, वस्त्र उद्योग, खाद्य पदार्थ आदि सैकड़ों उद्योग शामिल थे.

डालमिया सेठ के दोस्ताना रिश्ते देश के सभी बड़े-बड़े नेताओं से थी और वे उनकी खुले हाथ से आर्थिक सहायता किया करते थे.

इसके बाद एक घटना ने नेहरू को डालमिया का जानी दुश्मन बना दिया. कहा जाता है कि डालमिया एक कट्टर सनातनी हिन्दू थे और उनके विख्यात हिन्दू संत स्वामी करपात्री जी महाराज से घनिष्ट संबंध थे.

करपात्री जी महाराज ने 1948 में एक राजनीतिक पार्टी राम राज्य परिषद स्थापित की थी. 1952 के चुनाव में यह पार्टी लोकसभा में मुख्य विपक्षी दल के रूप में उभरी और उसने 18 सीटों पर विजय प्राप्त की.

हिन्दू कोड बिल और गोवध पर प्रतिबंध लगाने के प्रश्न पर डालमिया से नेहरू की ठन गई. पंडित नेहरू हिन्दू कोड बिल पारित करवाना चाहते थे जबकि स्वामी करपात्री जी महाराज और डालमिया सेठ इसके खिलाफ थे.

हिन्दू कोड बिल और गोहत्या पर प्रतिबंध लगाने के लिए स्वामी करपात्रीजी महाराज ने देशव्यापी आंदोलन चलाया जिसे डालमिया जी ने डटकर आर्थिक सहायता दी.

नेहरू के दबाव पर लोकसभा में हिन्दू कोड बिल पारित हुआ जिसमें हिन्दू महिलाओं के लिए तलाक की व्यवस्था की गई थी. कहा जाता है कि देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद हिन्दू कोड बिल के सख्त खिलाफ थे इसलिए उन्होंने इसे स्वीकृति देने से इनकार कर दिया.

ज़िद्दी नेहरू ने इसे अपना अपमान समझा और इस विधेयक को संसद के दोनों सदनों से पुनः पारित करवाकर राष्ट्रपति के पास भिजवाया. संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार राष्ट्रपति को इसकी स्वीकृति देनी पड़ी.

इस घटना ने नेहरू को डालमिया का जानी दुश्मन बना दिया. कहा जाता है कि नेहरू ने अपने विरोधी सेठ राम कृष्ण डालमिया को निपटाने की एक योजना बनाई.

नेहरू के इशारे पर डालमिया के खिलाफ कंपनियों में घोटाले के आरोपों को लोकसभा में जोरदार ढंग से उछाला गया. इन आरोपों के जांच के लिए एक विविन आयोग बना. बाद में यह मामला स्पेशल पुलिस इस्टैब्लिसमेंट को जांच के लिए सौंप दिया गया.

नेहरू ने अपनी पूरी सरकार को डालमिया के खिलाफ लगा दिया. उन्हें हर सरकारी विभाग में प्रधानमंत्री के इशारे पर परेशान और प्रताड़ित करना शुरू किया. उन्हें अनेक बेबुनियाद मामलों में फंसाया गया.

नेहरू की कोप दृष्टि ने एक लाख करोड़ के मालिक डालमिया को दिवालिया बनाकर रख दिया. उन्हें टाइम्स ऑफ़ इंडिया और अनेक उद्योगों को औने-पौने दामों पर बेचना पड़ा. अदालत में मुकदमा चला और डालमिया को तीन साल कैद की सज़ा सुनाई गई.

तबाह हाल और अपने समय के सबसे धनवान व्यक्ति डालमिया को नेहरू की वक्र दृष्टि के कारण जेल की कालकोठरी में दिन गुज़ारने पड़े.

व्यक्तिगत जीवन में डालमिया बेहद धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे. उन्होंने अच्छे दिनों में करोड़ों रुपये धार्मिक और सामाजिक कार्यों के लिए दान में दिये. इसके अतिरिक्त उन्होंने यह संकल्प भी लिया था कि जबतक इस देश में गोवध पर कानूनन प्रतिबंध नहीं लगेगा वे अन्न ग्रहण नहीं करेंगे. उन्होंने इस संकल्प को अंतिम सांस तक निभाया. गौवंश हत्या विरोध में 1978 में उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए।
पिछले 70 सालों में कश्मीर में गंगा जमुनी तहजीब की ऐसी बयार चली की 5000 मंदिरो को खण्डर बना दिया गया,पूरे कश्मीर में जब हिन्दू आबादी ही 10 लाख से नीचे पहुँच गई तो फिर मंदिर की ही रक्षा कौन करता,अपनी जान ओर महिलाओं का सम्मान बचाने की खातिर हिन्दू धर्म को बचाने की खातिर कश्मीरी पंडितों ने कश्मीर छोड़ा,किसने किया ये सब क्या पाकिस्तान ने जी नही ये सब उसी विचारधारा ने किया जिसका जिक्र ट्रम्प ने हॉउदी मोदी में किया इस्लामी आतंकवाद,जो कुफ,, शिर्क ओर अल्लाह के आदेश के अलावा किसी चीज में यकीन नही रखते,धारा 370 इस मजहबी जुनून को संरक्षण देती थी पूरे देश मे अल्पसंख्यक हितों का रोना रोने वाले कश्मीरी पंडितों के निष्काशन के बारे में जानते ही नही थे,मजहबी जुनून ओर अपनी सोच दुसरो पर थोपने की प्रवत्ति दुनिया के अस्तित्व के लिए सबसे बड़ा खतरा है,71 के बांग्लादेश युद्ध मे मारे गए लाखो लोगो के हत्यारों पर वहां की अदालते मुकदमे चला रही हैं उनके पापो का हिसाब हो रहा है शेख हसीना के आने के बाद सैंकड़ो को फांसी हो चुकी है,कश्मीर में भी यही होना चाहिए,बिट्टा कराटे,यासीन मलिक,मकबूल भट्ट,,लोन, परवेज आलम बहुत लंबी लिस्ट है इन हत्यारो को बख्शना नही चाहिए,एक एक कश्मीरी पंडित  का बदला लिया जाना चाहिए घाटी में घंटे बजेंगे मंदिरो मे शंख बजेंगे आरतियां सुनाई पड़ेगी तो शांति अपने आप आएगी,

Thursday, June 20, 2019

"क्षितिज अपने-अपने" -- लघुकथा
लोहे के बड़े फाटक को खोलकर हरीराम अंदर दाखिल हुआ ही था कि बूंदा-बांदी शुरू हो गई। तेज चलने के बाद भी फाटक से बंगले के बरामदे तक पहुंचते-पहुंचते वह थोड़ा भीग गया।
अवकाश होने के कारण साहब घर पर ही थे। हरीराम को भीगा देख उन्होंने बारिश के बारे में पूछा। उसके हाँ कहते ही उनके चेहरे पर प्रसन्नता आ गई। अंदर से मेमसाब भी खुश होकर बारिश होने की सूचना देती हुई आयीं।
बरामदे में बच्चे भी धामा-चौकड़ी करने लगे। 
- हरी राम, आज तो खाने की जगह पालक के पकौड़े और धनिया की चटनी बना लो। मौसम बहुत सुहावना है। हम लोग बाहर बगीचे में छतरी के नीचे जा रहे है। तुम पकौड़े और चटनी वहीं ले आना। - मेमसाब चहकती हुई आदेश देकर बाहर निकल गईं।
साहब ने घर के बाहर बने बगीचे में छतरी बनवाई हुई है। बारिश के दिनों में मौसम का लुत्फ उठाने के लिए वहां लगीं टेबिल-कुर्सियों पर ही पार्टी होती थी।
हरीराम पकौड़े बनाने की तैयारी में लग गया। सारा परिवार छतरी के नीचे आ गया। परिवार हंसी-ठिठोली करते हुए मौसम का मजा लेने लगा। बच्चें भीगे बिना कहां मानने वाले हैं। मना करने के बावजूद वे थोड़े-थोड़े समय बाद कभी हाथ तो कभी पैर छतरी के बाहर बारिश के नीचे कर देते और पानी के छींटे दूसरे पर फैंक कर खिलखिला उठते। सभी बहुत खुश थे।
हरीराम अंदर रसोई से गरम-गरम पकौड़े तलकर देता रहा। अब तक बारिश भी मूसलाधार हो चुकी थी।
- अब तुम जाओ, हरीराम - मेमसाब ने जूंठे बर्तन उठाते हरीराम से कहा।
- और सुनो। जो पकौड़े बच गये हैं, उन्हें अपने बच्चों के लिए ले जाना - मेमसाब ने दयानतदारी दिखाते हुए कहा।
बारिश तेज देख मेमसाब ने उसे एक छाता भी दे दिया था।
दोपहर के दो बज रहे थे। आधे भीगे हुए हरीराम ने अपने कच्चे मकान में प्रवेश किया।
टपक रहे छप्पर से गृहस्थी के सामान को बचाने के लिए पत्नी बच्चों सहित जद्दो-जहद कर रही थी।
हरीराम बहुत खुश था। नीचे जमीन पर बैठकर उसने प्यार से बच्चों को अपने पास बुलाया और साथ में लाये पकौड़ों को बीच में अखबार पर फैला लिया।
बच्चे और पत्नी चटकारे ले-लेकर पकौड़े खाने लगे।
आसपास छप्पर से टपक रहे पानी में बच्चे अपने हाथ गीले कर एक-दूसरे पर छींटे फैंकने लगे।
उन्हें अठखेलियां करते देख हरीराम के चेहरे पर तृप्ति फैल गई।
-कमलेश झा/झांसी

Tuesday, June 18, 2019


बच्चे जब मर रहे थे
वे शपथ ग्रहण कर रहे थे
बच्चे जब मर रहे थे
वे मैच का स्कोर पूछ रहे थे
बच्चे जब मर रहे थे
बच्चे जब मर रहे थे
वे जय श्रीराम के नारे लगा रहे थे .
तब चुनाव ख़त्म हो गया था
वे वन्दे मातरम गा रहे थे बच्चे जब मर रहे थे
बच्चे नही मर रहे थे
वे बच्चे की लाशों पर अब तिरंगा फहरा रहे थे . यह पूरा देश मर रहा था यह एक नया इंडिया था
जो मरते हुए देश मे इस तरह जन्म ले रहा था.
लगातार पिछले एक हफ्ते डेढ़ हफ्ते से रेप और सैकड़ो बच्चों के हुई मौतों से सारा सोशल मीडिया पटा पड़ा है. सरकार सो रही है. लोग आंसू बहा रहे हैं. सच बताएं तो मुझे तनिक भी फर्क नहीं पड़ा. मैं ऐसे पोस्ट उसी स्पीड में हटा देता हूँ जैसे सड़क पर पेशाब करते आदमी से लोग नजरें! ये व्यवस्था, ये सरकार आपने चुनी हैं. इस देश में या किसी देश में सही या गलत जो भी कुछ घटता है उसमें सरकार कम से कम 60 फीसदी जिम्मेदार होती है. वो ऐसी व्यवस्था, कानून, नीति बना नही पाई कि उस पर कुछ अंकुश हो. ये मौते नई नहीं हैं. गोरखपुर में भी ऐसे ही दर्जनो बच्चे मरे थे. सरकार सोती रही थी. आपने फिर उसी सरकार को चुना. उस सरकार पर पहले से ज्यादा भरोसा जताया तो मौतों पर रुदन क्यों? आपने अपनी अपने बच्चों की मौते खुद चुनी हैं. आपने अपने संसद में ऐसे सांसद को भेजा है जो खुलेआम रेप को सपोर्ट करती है. और फिर रेप होने पर रोते हैं? क्यों भाई? आपने तो खुद अपने बच्चियों के लिए रेप चुना है. तो फिर ये विलाप क्यों? पहले की सरकारों में नहीं होते थे? होते थे. बहुत होते थे. पर वो अच्छी ही कहां थी? उनने भला ही क्या किया? साठ साल में साफ पीने का पानी, सड़क, घर तक न दे पाई. शिक्षा, स्वास्थ्य, जीवन स्तर जैसी और चीजों की बात ही दूर। बौद्धिक स्तर जितना हमारा नीचे गया है शायद ही दुनिया में किसी का गया हो. मूत पीते हैं दूध बहाते हैं! सरकार के तीन बड़े मंत्री जब पत्रकारों से कितने विकेट गिरे पूछते हैं तो आपको बुरा लगता है. क्यों भाई? आपने ही तो एक महीने पहले इनसे ऐसे गम्भीर सवाल पूछने के लिए चुना है, फिर आज क्यों भड़क रहे! ये मुस्कुराहट ये सवाल आपका औक़ात बोध है! आप पात्र ही इसी के हैं कि आपके बच्चे कीड़े मकोड़ो की तरह मरते रहें, रेप होते रहे, और आपके मुखिया मुस्कुराते रहें. प्रेस कॉन्फ्रेंस में सोते रहें. आपने अपने बच्चों की मौतों और रेप के बदले इसी खिलखिलाती मुस्कुराहट को ही तो चुना है. एन्जॉय कीजिये इसका! जश्न मनाइए अपनी इस उम्दा सेलेक्शन का. क्यों अपने रुदन भरे पोस्टों से फेसबुक को पाट रहे हैं? ठंड रखिये और पकाइये मत!

Sunday, June 16, 2019

#घोंसला
बात  कुछ दिन  पहले की है हम सब परिवार के साथ धूप सेंक रहे थे।अचानक ,मेरी नज़र भूरी रंग की चिड़िया पर गयी।वो मुझे देख कर सहम गई। मैंने कहा  अरे  डर क्यू रही हो।मै कुछ  नुकसान नहीं करूँगी तुम्हारा। तुम  आराम से  मेरे  आँगन मे रहो।
और जो  बिखरे दाना पडे ।वो सिर्फ तेरे लिये है ।
ठहर  मै पानी का भी इन्तजाम करती हूँ।
तू ठहर मेरे  आँगन  मै अभी आयी वो मुझे दाना
छोड़ कर  देख रही थी मैंने  फिर कहा  डरो मत यहाँ कोई नहीं आयेगा। तू खूब उछल कूद मचा  आँगन मे मेरे ।कोई कुछ नही बोलेगा। तू समझ रही हो ना ।
मै जो कह रही हू। अभी भी वो देख रही है।ऐसा महसूस हो रहा था कि मेरे शब्द उसे पसंद न हो।
मै अन्दर से  कुछ और दाने ले कर आयी।
अब वो अपने पंख फैला रही थी उड़ने के लिये।
मानो वो कह रही हो नहीं  चाहिये  तेरा दाना पानी।
नहीं  कैद होना मुझे। मेरे भी माँ पिता भाई बहन है ।
सब करते  है  मेरा  इन्तजार। पर अफसोस तुम मानव नहीं  समझते। अपनी खुशी के लिये कैद कर लेते हो।
तनिक नहीं  सोचते कोई  करता होगा मेरा इन्तजार।
मै जा रही हू इस जहाँ को छोड़ कर तेरे  आँगन को छोड़ कर। तेरे आँगन मे पडे बिखरे दाने को छोड़ कर।
उस जहाँ  पर ।जहाँ  हमे समझने वाला होगा। माना मेरे पंख  बहुत सुन्दर है।पर ये पंख उड़ने के लिये है।
पिंजरे के लिये नहीं। कभी सोचा है छोटे से पिंजरे में हम कैसे रहते हैं। अपने माता-पिता भाई बहन को छोड़ कर। अरे मै भूल गयी मै किससे  अपने मन की बात कह रही हू। न जाने तू कब जाल फैला कर मुझे कैद कर ले।अपनी खुशी के लिये। मुझे अब जाना होगा ऐसे जहाँ,जहां हमे समझने वाला हो मै अब
मौन हो गयी मेरी पलकें भी नम हो गयी। और देखते  देखते  वो पंख फैला कर मेरे आँगन
से हमेशा हमेशा के लिये चली गयी। 

Saturday, June 15, 2019

Rejection से डरो नही, उसके बाद जो जीत मिलती है ना, वो एहसास जिंदगी भर रहता है। 
सुखी होने के बहुत सारे रास्ते हैं,
मगर
औरों से ज्यादा,
सुखी होने का,
कोई रास्ता नहीं है.....
चार दिन है जि़न्दगी,हंसी खुशी में
                      काट ले
मत किसी का दिल दुखा ,दर्द सबके
                      बाँट ले

कुछ नही हैं साथ जाना,एक नेकी
                     के सिवा,
कर भला होगा भला, गाँठ में ये
                     बांध ले!
कैकेई ने भगवान राम के लिए 14 वर्ष का ही वनवास क्यों मांगा 13 या 15 वर्ष का क्यों नहीं ??

13. 8 बिलियन ईयर वर्ष पुराना हमारा ब्रह्माण्ड हैं क्योंकि बिग बैंग तभी हुआ था। यही माप प्रकाश वर्ष में परिवर्तित होने पर समय की वो सबसे बड़ी इकाई हैं, जिसमें मनुष्य को समय यात्रा और अंतरिक्ष की यात्रा करना विज्ञान के अनुसार चरम रुप से सम्भव हैं।

हिंदु समय गणना में मन्वन्तर सबसे बड़ी समय इकाइयों में से एक हैं। इससे ऊपर ब्रह्मा का एक दिन और फिर ब्रह्मा के 100 वर्ष का चक्र ही होता है।

एक मन्वन्तर में 71 महायुग होतें हैं (चार युगों को मिलाकर एक महायुग होता है) अर्थात 306,720,000 प्रकाश वर्ष ।

सृष्टि कि कुल आयु : 4294080000 वर्ष हैं इसे कुल 14 मन्वन्तरों मे बाँटा गया है. 14 मन्वन्तर सृष्टि की सबसे बड़ी या पूर्ण कालावधि हो गई तो सांकेतिक रूप से समय की सबसे बड़ी इकाई के लिए रामजी को वनवास दिया गया था।

7 वर्ष में मानव के शरीर की प्रत्येक कोशिका या सेल बदल जाता है, शारीरक रूप से पूरे ढंग से एक नया व्यक्ति बन जाता हैं और 14 वर्षों में व्यक्ति के मनोवैज्ञानिक रूप से पूरी तरह बदलने की सम्भावना रहती हैं। इतने लंबे समय में व्यक्ति नई जगहों से अपने को जोड़ लेता है। तो यह एक मनोवैज्ञानिक चाल भी थीं। यह अलग बात है कि रामजी का जननी व जन्मभूमि के प्रति प्रेम इस चाल पर भारी पड़ा।

जब विभीषण को लंका सौंपकर अयोध्या वापिस जाने का निर्णय उन्होंने लिया । लक्ष्मण इससे सहमत नहीं हुए । लक्ष्मणने भगवान श्रीरामसे कहा, ‘‘ हमने अपने पराक्रमसे रावणपर विजय प्राप्त किया है । लंकामें स्वर्गीय सुख है । लंका स्वर्णमयी है । अयोध्यामें क्या रखा है ? हम अयोध्या वापिस क्यों जाएं ? हम लंकामें ही रहेंगे ।''

उस समय भगवान श्रीरामने उत्तर दिया,

अपि स्वर्णमयी लंका न मे लक्ष्मण रोचते ।
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरियसी ।।

अर्थ : हे लक्ष्मण, लंका स्वर्णमयी है, यह मैं जानता हूं; किंतु मेरी मां तथा मेरी जन्मभूमि मेरे लिए स्वर्गसे भी श्रेष्ठ है ।

हम अवश्य वापस जाएंगे ।

तो इतने लंबे काल में भी मनोवैज्ञानिक रूप से रामजी स्थिर रहे।

वैसे नाथ योगी परम्परा में और शिव सूत्र में श्रेष्ठ तपस्या का काल 14 वर्ष का बताया गया है। 14 वर्ष की समय अवधि को तपोकाल कहते हैं। तो यह एक तपस्या पूर्ण करने की अवधि हैं। इसमें रामजी की तपस्या पूर्ण होती हैं, उन्होंने वनवास में उन सभी नियमों का पालन किया जो एक तपस्वी को करने होते हैं और उनकी स्थायी वर्त्ती भी तपस्वी को हो जाती जो कैकयी की इच्छा थी, इससे भरत का राज्य सदा के लिए निष्कण्टक हो जाता। कैकेयी उन्हें राजसी वर्त्ति की तुलना में तपस्वी वर्त्ति का बनाना चाह रही थीं और जानती थी कि वे स्वाभाविक रूप से भी थोड़े तपस्या की ओर झुके व्यक्तित्व थे। रामजी ने अपने स्वाभाविक झुकाव को भी जीता और एक राजा के उत्तरदायित्व को निभाने के लिए अपने वचन के अनुसार वापस आयें।

पर इसी अवधि की वजह से रामजी को तपस्वी राजा की उपाधि भी मिली थी।

सब पर राम तपस्वी राजा।

💐आज का विचार💐






कच्चे धागे की गाँठ लगाकर ही पक्के रिश्तों की प्रार्थना की जाती है !

कभी हँसते हुए छोड़ देती है ये जिंदगी, कभी रोते हुए छोड़ देती है ये जिंदगी, न पूर्ण विराम सुख में, न पूर्ण विराम दुःख में, बस जहाँ देखो वहाँ अल्पविराम छोड़ देती है ये जिंदगी।

बोधकथा -- सन्यासी बनने का अर्थ








सन्यासी बनना एक राजकुमार वृक्ष के नीचे ईंट का तकिया लगा कर सो रहा था। उधर से गुजर रही एक पनिहारिन ने दूसरी से कहा ' साधु बन गया पर राजसी ठाठ अभी नहीं छूटा। ईंट का तकिया लगा कर सो रहा है ।'राजकुमार को बात लग गई वह ईंट हटा कर सो गया।

पनिहारिनें जब लौटी तो उसे देखकर एक बोली ' साधु बन गया तो क्या हुआ अभिमान तो छूटा नहीं हमने इतना सा कहा और ईंट का तकिया हटा दिया।'
सन्यासी ने उठकर उनसे पूछा -तो मुझे क्या करना चाहिए? एक पनिहारिन बोली -'जो करो अपनी सूझबूझ से करो दूसरे के कहने से चलोगे तो साधना कैसे होगी।'?


राजकुमार को सन्यासी बनने का अर्थ समझ आ गया।

आंखें




आँखों ने तुझे देखा था,और दिल ने पसंद किया…
बता,आँखे निकाल दूँ, या  सीने से दिल..